स्वराज्य करुण
खतरे की घंटी बज रही है और आशंकाओं का भयानक शंखनाद भी हो रहा है. इतने ज़ोरदार शोर में भी अगर हम आँखे बंद कर चैन की नींद ले रहे हैं ,तो हमें कुम्भकर्ण के अलावा और क्या कहा जा सकता है ? देश में खतरे की घंटी बजे , या संकट के कर्ण-भेदक धमाके हों , हमे क्या फर्क पड़ेगा ? हमें तो हर हाल में बेखबर और बेफिक्र होकर सोते रहने की आदत हो गयी है. कुछ दिनों पहले एक ऐसी खबर भी आयी ,जो देश को एक गंभीर खतरे का संकेत देने के बावजूद अखबारों की सुर्खियाँ नहीं बन सकी. खबर यह थी कि देश में हर साल सड़क हादसों का शिकार हो कर कम से कम सवा लाख लोग असमय ही मौत के मुंह में समा जाते हैं. इन हादसों में सालाना पचास लाख लोग घायल होते हैं .इनमे से कई लोग तो जिंदगी भर के लिए विकलांग हो जाते हैं. मानव जीवन अनमोल होता है, धन-दौलत से या रूपए -पैसों से उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता फिर भी एक आंकलन के अनुसार इन सड़क-दुर्घटनाओं में देश को हर साल लगभग पचहत्तर हजार करोड़ रूपयों का नुकसान उठाना पड़ता है.
भारत सरकार के सड़क-परिवहन और राज मार्ग विभाग के मंत्री कमलनाथ ने 25 नवम्बर को स्वयं नयी दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय सड़क संगठन के दो दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत करते हुए देश में हो रहे सड़क-हादसों के इन भयावह आंकड़ों का खुलासा किया . उन्होंने यह भी कहा कि देश में चार-लेन और छह -लेन के राज-मार्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और उन पर वाहनों की रफ्तार भी तेजी से बढ़ेगी . इसके फलस्वरूप दुर्घटनाओं में और उनकी भयावहता में भी तेजी आने की आशंका है. इस भयंकर परिदृश्य का वर्णन करते हुए केन्द्रीय सड़क-परिवहन मंत्री ने एक राहत पहुंचाने वाली घोषणा भी की . उन्होंने कहा कि सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोर्ड बनाया जाएगा .देश में लगातार बढ़ते सड़क-हादसों को देखते हुए उनकी यह घोषणा स्वागत-योग्य है .
इस बीच देश के नए राज्य छत्तीसगढ़ में भी उसकी स्थापना के ग्यारहवें साल में एक स्वागत योग्य कदम उठाया जा रहा है, जहाँ मुख्य मंत्री डॉ.रमन सिंह ने यह घोषणा की है कि राज्य में पुलिस की हेल्प-लाईन के 100 नंबर के टोल-फ्री टेलीफोन की तरह स्वास्थ्य विभाग द्वारा 108 नंबर की निः शुल्क टेलीफोन सेवा आगामी जनवरी माह से चालू की जाएगी .किसी भी गंभीर आकस्मिक बीमारी अथवा सड़क दुर्घटना की स्थिति में इस हेल्प-लाईन पर फोन करते ही सभी जीवन-रक्षक दवाइयों और आधुनिक चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित एम्बुलेंस मात्र बीस मिनट के भीतर ज़रूरतमंदों तक पहुँच जाएगी . इसके लिए राजधानी रायपुर के सरकारी डेंटल-कॉलेज के नव-निर्मित भवन में कॉल-सेंटर खोला जा रहा है ,जहाँ चालीस प्रशिक्षित लोगों के स्टाफ को बारी-बारी से प्रति-दिन तैनात किया जाएगा .यह कॉल-सेंटर चौबीसों घंटे सप्ताह के सातों दिन खुला रहेगा ,जहाँ डॉक्टरों और पैरा-मेडिकल कर्मचारियों के अलग-अलग समूह भी अलग-अलग पालियों में तैनात रहेंगे.जिला स्तर पर भी कॉल-सेंटर बनाए जा रहे हैं ,जो राजधानी के कॉल-सेंटर से जुड़े रहेंगे . इस आपात सेवा के लिए राज्य-सरकार दो करोड़ 31 लाख रूपए की लागत से 136 एम्बुलेंस खरीद रही है. पहले चरण में यह सेवा रायपुर और बस्तर जिलों में जनवरी माह से शुरू की जाएगी .दोनों जिलों को छत्तीस एम्बुलेंस दिए जाएंगे. ये एम्बुलेंस वाहन जिलों के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और थानों में तैनात किए जाएंगे .तमिलनाडु ,गजरात ,आंध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश में यह सेवा शुरू हो चुकी है.अब छत्तीसगढ़ जनवरी से शुरू करने जा रहा है,जहां इसके लिए लगभग अस्सी प्रतिशत तैयारी पूरी हो चुकी है. राजस्थान और असम भी इसकी तैयारी कर रहे हैं .
इससे यह भी महसूस होता है कि हालात को लेकर और जनता के जान-माल की सुरक्षा को लेकर केन्द्र और राज्यों की सरकारें स्वयं चिंतित है . सड़क-हादसों में हर साल देश के तकरीबन एक लाख ,२५ हजार नागरिकों का मारा जाना और पचास लाख लोगों का घायल होना प्रत्येक भारतीय के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. समुद्री-सुनामी और इराक पर अमेरिकी हमले जैसी भयंकर घटनाओं को छोड़ कर विचार करें तो महसूस होगा कि .मानव-जीवन को इतना भयानक नुकसान शायद बड़े से बड़े युद्ध में भी नहीं होता केन्द्रीय सड़क परिवहन .मंत्री श्री कमाल नाथ ने चार-लेन और छह -लेन की सड़कों में भी अगर निकट-भविष्य में हादसों की तादाद बढ़ने का संकेत दिया है , तो समझ लीजिए कि अब हमें अपनी कुम्भकर्णी निद्रा से जागना पड़ेगा.सरकार अकेली क्या -क्या करेगी ? नागरिक होने नाते आखिर हमारा भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है .
विज्ञान और टेक्नालॉजी जहाँ हमारे जीवन को सहज-सरल और सुविधाजनक बनाने के सबसे बड़े औजार हैं , वहीं उनके अनेक आविष्कारों ने आधुनिक समाज के सामने कई गंभीर चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं . बहुत पहले वाष्प और बाद में डीजल और पेट्रोल से चलने और दौड़ने वाली गाड़ियों का आविष्कार इसलिए नहीं हुआ कि लोग उनसे कुचल कर या टकरा कर अपना बेशकीमती जीवन गँवा दें , लेकिन अगर हम अपने ही देश में देखें तो अखबारों में हर दिन सड़क हादसों की दिल दहला देने वाली ख़बरें कहीं सिंगल ,या कहीं डबल कॉलम में या फिर हादसे की विकरालता के अनुसार उससे भी ज्यादा आकार में छपती रहती हैं .कितने ही घरों के चिराग बुझ जाते हैं , सुहाग उजड़ जाते हैं और कितने ही लोग घायल होकर हमेशा के लिए विकलांग हो जाते है .सड़क हादसों की दिनों-दिन बढ़ती संख्या अब एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है.आंकड़ों पर न जाकर अपने आस-पास नज़र डालें , तो भी हमें स्थिति की गंभीरता का आसानी से अंदाजा हो जाएगा .हर इंसान की ज़िंदगी अनमोल है. सड़क पर तो अमीर-गरीब, राजा-रंक, पीर-फ़कीर .सभी चला करते हैं. इसलिए सबके सुरक्षित जीवन की चिंता सबको होनी चाहिए .
तीव्र औद्योगिक-विकास , तेजी से बढ़ती जनसंख्या, तूफानी रफ्तार से हो रहे शहरीकरण और आधुनिक उपभोक्तावादी जीवन शैली की सुविधाभोगी मानसिकता से समाज में मोटर-चालित गाड़ियों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ रही है . औद्योगिक-प्रगति से जैसे -जैसे व्यापार-व्यवसाय बढ़ रहा है , माल-परिवहन के लिए विशालकाय भारी वाहन भी सड़कों पर बढते जा रहे हैं. ट्रकें सोलह चक्कों से बढ़कर सौ-सौ चक्कों की आने लगी हैं. दो-पहिया ,चार-पहिया वाहनों के साथ-साथ यात्री-बसों और माल-वाहक ट्रकों की बेतहाशा दौड़ रोज सड़कों पर नज़र आती है. सड़कें भी इन गाड़ियों का वजन सम्हाल नहीं पाने के कारण आकस्मिक रूप से दम तोड़ने लगती हैं . त्योहारों , मेले-ठेलों , और जुलूस-जलसों के दौरान भी बेतरतीब यातायात के कारण हादसे हो जाते हैं . कई हादसे दूसरों की गलतियों के कारण ,तो कुछ हमारी अपनी गलतियों के कारण हो जाते है. सड़कों के किनारे टेलीफोन केबल बिछाने या फिर पानी की पाईप-लाईन डालने के लिए गड्ढा खोद कर लापरवाही से छोड़ जाने वाले मजदूरों और उनके अधिकारियों की वजह से भी सड़क-हादसे होते हैं . खुली सड़क पर स्वछन्द विचरण करते गाय, बैल ,भैंस और बिंदास घूमते आवारा कुत्तों के कारण भी बहुत से बेगुनाह लोग हादसों का शिकार हो जाते है. कई दुर्घटनाएं नशेबाज वाहन-चालकों के कारण होती हैं . देश भर में राष्ट्रीय राज-मागों के किनारे कई ढाबों में शराब , अफीम , डोडा जैसे मादक-द्रव्य आसानी से मिल जाते हैं. लम्बी दूरी के वाहन, खास तौर पर माल-वाहक ट्रकों के अनेक ड्रायवर इनका सेवन कर नशे की हालत में गाड़ी चलाते हैं .
शहरों में ट्राफिक-जाम और वाहनों की बेतरतीब हल-चल देख कर मुझे तो कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि इंसानी आबादी से कहीं ज्यादा मोटर-वाहनों की जन-संख्या तो नहीं बढ़ रही है ? कभी-कभी तो लगता है कि बेकारों की बढ़ती बेतरतीब फौज की तरह हमारी सड़कों पर कारों की फौज भी बेहिसाब बढ़ रही है. सरकारें जनता की सुविधा के लिए सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने का कितना भी प्रयास क्यों न करे , लेकिन गाड़ियों की भीड़ और उनकी बेहिसाब रेलम-पेल से सरकारों की तमाम कोशिशें बेअसर साबित होने लगती हैं . वाहनों के बढ़ते दबाव की वजह से सरकार सिंगल-लेन की डामर की सड़कें डबल लेन ,में और डबल-लेन की सड़कों को फोर-लेन में बदलती हैं . फोर-लेन की सड़कें सिक्स -लेन में तब्दील की जाती हैं . इस प्रक्रिया में सड़कों के किनारे की कई बस्तियों को हटना या फिर हटाना पड़ता है . उन्हें मुआवजा भी दिया जाता है .सड़क-चौड़ीकरण और मुआवजा बांटने में ही सरकारों के अरबों -खरबों रूपए खर्च हो जाते हैं . यह जनता का ही धन है. लेकिन सरकारें आखिर करें भी तो क्या ? जिस रफ्तार से सड़कों पर वाहनों की आबादी बढ़ रही है , आने वाले वर्षों में अगर हमें सिक्स-लेन और आठ-लेन की सड़कों को बारह-लेन , बीस-लेन और पच्चीस -पच्चास लेन की सड़कों में बदलने के लिए मजबूर होना पड़ जाए , तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
लेकिन क्या सड़क-दुर्घटनाओं का इकलौता कारण वाहनों की बढ़ती जन-संख्या है ? मेरे विचार से यह समस्या का सिर्फ एक पहलू है. इसके दूसरे पहलू के साथ और भी कई कारण हैं ,जिन पर संजीदगी से विचार करने की ज़रूरत है. आर्थिक-उदारीकरण के माहौल ने देश में धनवानों के एक नए आर्थिक समूह को भी जन्म दिया है. कारपोरेट-सेक्टर के अधिकारियों सहित सरकारी -कर्मचारियों और अधिकारियों की तनख्वाहें पिछले दस-पन्द्रह साल में कई गुना ज्यादा हो गई हैं. बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों में इंजीनियर और अन्य तकनीकी स्टाफ अब मासिक वेतन पर नहीं , लाखों रूपयों के सालाना 'पैकेज' पर रखे जाते हैं .इससे समाज में उपभोक्तावादी मानसिकता लेकर एक नए किस्म का मध्य-वर्ग तैयार हो रहा है . जिसके बच्चे भी अब दो-पहिया वाहन नहीं , बल्कि चार-चक्के वाली कार को अपना 'स्टेटस' मानने लगे हैं . सरकारी -बैंकों के साथ अब निजी बैंक भी अपने ग्राहकों को वाहन खरीदने के लिए उदार-नियमों और आसान-किश्तों पर क़र्ज़ लेने की सुविधा दे रहे है . कई बैंक तो गली-मुहल्लों में लोन-मेले आयोजित करने लगे हैं .इन सबका एक नतीजा यह आया है कि जिसके घर में चार-चक्के वाली गाड़ी रखने की जगह नहीं है , वह भी उसे खरीद कर अपने घर के सामने वाली सार्वजनिक-सड़क .या फिर मोहल्ले की गली में खड़ी कर रहा है और सार्वजनिक रास्तों को सरे-आम बाधित कर रहा है . उधर आधुनिक-तकनीक से बनी गाड़ियों में 'पिक-अप ' और रात में आँखों को चौंधियाने वाली हेड-लाईट की एक अलग महिमा है .ट्राफिक-नियमों का ज्ञान नहीं होना , हेलमेट नहीं पहनना , नाबालिगों के हाथों में मोटर-बाईक के हैंडल और गाड़ियों की स्टेयरिंग थमा देना , शराब पीकर गाड़ी चलाना जैसे कई कारण भी इन हादसों के लिए जिम्मेदार होते होते हैं .अब तो गाँवों की गलियों में भी मोटर सायकलों का फर्राटे से दौड़ना कोई नयी बात नहीं है.
उत्तरप्रदेश के एक अखबार में वाराणसी से छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल जितनी मौतें आपराधिक घटनाओं में होती हैं , उनसे औसतन पांच गुना ज्यादा जानें सड़क हादसों में चली जाती हैं . रिपोर्ट में इसके जिलेवार आंकड़े भी दिए गए है और कहा गया है कि कहीं बदहाल सड़कों के कारण तो कहीं काफी अच्छी चिकनी सड़कों के कारण भी हादसे हो रहे हैं . इसमें यह भी कहा गया है कि अधिकतर हादसे ऐसी सड़कों पर हो रहे हैं , जिनकी हालत काफी अच्छी हैं .ऐसी सड़कों पर वाहन फर्राटे भरते निकलते हैं . फिर इन सड़कों पर यातायात संकेतक भी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं . इससे वाहन चलाने वालों को खास तौर पर रात में अंधा-मोड़ या क्रासिंग का अंदाज नहीं हो पाता और हादसे हो जाते हैं . बहरहाल पूरे भारत में देखें तो सड़क -हादसों के प्रति-दिन के और सालाना आंकड़े निश्चित रूप से बहुत डराने वाले और चौंकाने वाले हो सकते हैं.एक चौंकाने वाली बात यह भी है कि इतने डरावने हालात में भी हमारे यहाँ जन-चेतना का भारी अभाव साफ़ देखा जा रहा है .
बहरहाल सड़क दुर्घटनाओं को रोकने और सड़क-यातायात को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए मेरे विचार से कुछ उपाय हो सकते हैं . इनमे से मेरा पहला सुझाव है कि देश में कम से कम पांच साल के लिए हल्के मोटर वाहनों का निर्माण बंद कर दिया जाए.यह सुझाव आज के माहौल के हिसाब से लोगों को हास्यास्पद लग सकता है ,लेकिन मुझे लगता है कि इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है ,क्योकि अब हमारे देश की सड़कों पर ऐसे वाहनों की भीड़ इतनी ज्यादा हो गयी है कि नए वाहनों के लिए जगह नहीं है .मेरा दूसरा सुझाव है कि मोटर-चालित वाहन खास तौर पर चौपाये वाहन खरीदने की अनुमति सिर्फ उन्हें दी जाए ,जो अदालत में यह शपथ-पत्र दें कि उनके घर में वाहन रखने के लिए गैरेज की सुविधा है और वे अपनी गाड़ी घर के सामने की सार्वजनिक गली अथवा सड़क पर खड़ी नहीं करेंगे . तीसरा सुझाव यह है कि राष्ट्रीय -राज मार्गों पर ढाबों में शराब और अन्य नशीली वस्तुओं के कारोबार पर कठोरता से अंकुश लगाया जाए .मेरा चौथा सुझाव है कि सड़कों पर आवारा घूमने वाले चौपाया पशुओं के दोपाया मालिकों पर कड़ी कार्रवाई की जाए . अगर अपने घर में गाय -भैंस पालने की जगह नहीं है, तो पशु-पालन का शौक क्यों पालते हैं और उन्हें सड़कों पर लावारिस घूमने क्यों छोड़ देते हैं ? टेलीफोन-केबल और पानी की पाईप-लाईन बिछाने के लिए सड़क खोदने वाले अगर काम पूरा होने के बाद सड़क पर गड्ढों को खुला छोड़ कर चले जाएँ ,तो उन पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए .स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों और छात्र-छात्राओं का मोटर-बाईक या कार से आना-जाना प्रतिबंधित होना चाहिए . वे चाहें तो सायकल का इस्तेमाल करें या उनके लिए सार्वजनिक- वाहन सेवा उपलब्ध कराई जा सकती है . कई निजी स्कूल-कॉलेज अपने स्टाफ और विद्यार्थियों के लिए बस-सेवाएं भी संचालित करते हैं .एक उपाय यह भी हो सकता है कि मोटर-चालित वाहनों यानी कार , बाईक आदि की बैंक-फायनेंसिंग के नियमों कठोर बनाया जाए.
एक महत्वपूर्ण कार्य यह हो सकता है कि बड़े लोग भी आम-जनता की तरह यातायात के सार्वजनिक साधनों का इस्तेमाल करने की आदत बनाएँ ,या फिर सायकलों का इस्तेमाल करें .सायकल एक पर्यावरण हितैषी वाहन है. इसके इस्तेमाल से हम धुंआ प्रदूषण को भी काफी हद तक कम कर सकते हैं .सायकल पर दफ्तर आने-जाने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को सरकार चाहे तो पर्यावरण-मित्र के रूप में विशेष प्रोत्साहन- राशि देकर सम्मानित कर सकती है. इससे सड़कों पर सायकल संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा औरमोटर-गाड़ियों की तुलना में दुर्घटनाएं कम होंगी.और यातायात भी अपेक्षाकृत ज्यादा सुगम और सुरक्षित होगा . सड़कें तो अमीर-गरीब , हर किसी के चलने के लिए है . राजा हो या रंक , हर इंसान की जिंदगी किसी भी कीमती चीज से बढ़ कर है. .सड़क-हादसों से उसे बचाना भी इंसान होने के नाते हम सबका कर्तव्य है. अपने इस कर्तव्य को हम कैसे निभाएं ,इस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है .
स्वराज्य करुण
विचारोत्तेजक आलेख्।
ReplyDeleteअच्छे सुझावों को दिया है ...अच्छा लेख
ReplyDeletesamyochit samasya ki or dhyan kendrit karti aapki post .cycle ka ghatta prayog bahut chintajanak hai .das se barah saal ke bachche bhi bike hi chalana chahte hai .abhibhavakon ko is or dhyan dena chahiye .
ReplyDeleteसड़क दुर्घटनाओं में देश के युवाओं की अकाल मृत्यु हो रही है। मेरे 27 किलो मीटर हाईवे पर रोज तीन दुर्घटनाएं होती है और औसत एक की मृत्यु तय है। ट्रैफ़िक के नियमों को कड़ाई से लागु करने के लिए उसकी जानकारी वाहन चालकों को भी होना चाहिए। ओवरटेक करने की अंधाधुंध दौड़ में एक्सीडेंट हो जाते हैं।
हाईवे पोलिस का गठन होना चाहिए, जो हाईवे पर चलने वाले वाहनों की गति नियंत्रित रखे एवं यातायात के नियमों को तोड़ने वाले के तत्काल कार्यवाही करे। इससे पहले वाहन चालकों में जागरुकता लाना आवश्यक है।
सार्थक पोस्ट के लिए आभार
एंजिल से मुलाकात
चिंतन परक !
ReplyDeleteचिंतनीय विषय , जागरूकता आवश्यक है । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
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