देश है अपना ,धरा है अपनी , अपना यह आकाश है !
ये लहराती बलखाती नदियाँ ,
झूमती ,नाचती, गाती नदियाँ !
खेतों में जहाँ फसलों की हलचल ,
हरियाली के कानों में धानी कुंतल !
सतरंगे वन-उपवन अपने, फूलों की मधुर हर सांस है !
मेहनत के गीत गाते किसान ,
स्वर्ण-रत्नों से भरे खलिहान !
ये खपरैलों वाले सुंदर गाँव ,
तालाब-किनारे पेड़ों की छाँव !
भोले-भाले लोगों के दिलों में ईश्वर का ही निवास है !
कहीं दूर नीले पर्वतों के शिखर ,
झरनों के मोहक-मीठे स्वर !
सिंदूरी साँझ , केसरिया-प्रभात ,
ये रजत-सुनहरे जल-प्रपात !
जी-भर पियो सुधामय धारा ,बुझती ही नहीं कभी प्यास है !
नदियों के किनारे मंदिर -कलश
वेद-मंत्र मिटाते ह्रदय-कलुष !
अतीत का वैभव लिए इकतारा ,
कहता अपना देश है प्यारा !
सूरज,चाँद, सितारों का जहाँ उज्जवल, धवल प्रकाश है !
- स्वराज्य करुण
यह तो बहुत सुन्दर कविता है.
ReplyDeleteपाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.
साफ कवि मन की दृघ्टि ही यह उजास देख और दिखा पाती है.
ReplyDeletehariyali our prkriti ke prati aap ka pyara bahut hi sundar roop mai kavita ke madhyam se uthra hai .
ReplyDeleteदेश है अपना ,धरा है अपनी , अपना यह आकाश है !
ReplyDeleteये लहराती बलखाती नदियाँ ,
झूमती ,नाचती, गाती नदियाँ !
खेतों में जहाँ फसलों की हलचल ,
हरियाली के कानों में धानी कुंतल !
सतरंगे वन-उपवन अपने, फूलों की मधुर हर सांस है !
देशप्रेम से ओतप्रोत सुन्दर रचना
सुन्दर गीत ! कम्प्यूटर महाशय नाराज़ थे सो आपकी पिछली कुछ पोस्ट देख नहीं पाया !
ReplyDeleteदेशप्रेम से ओतप्रोत सुन्दर रचना॥
ReplyDeletedeshprem ke bhavon se bhri -bharat kee prakritik sundarta ko shabdon me aapne bahut hi sundarta ke sath utara hai .badhai.
ReplyDeleteनदियों के किनारे मंदिर -कलश
ReplyDeleteवेद-मंत्र मिटाते ह्रदय-कलुष ....
behatreen panktiyaan.
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वाह सुंदर गीत भाई साहब
ReplyDeleteराहुल भैया की टि्प्पणी से सहमत।