( भोपाल गैस त्रासदी की छब्बीसवीं बरसी पर मृतकों को श्रद्धांजलि सहित )
हे प्रभु ! बचाना मेरे देश को ,
बचाना हमारी दुनिया को,
बचाना हमारे सपनों को
मौत के सौदागरों की स्याह
परछाई से ,
धुंआ उगलती फैक्ट्रियों की
काली धूल से ,चिमनियों की विषैली
फुफकार से , जो छा जाती है -
निर्मल नीले आसमान पर
फ़ैल जाती है जो हमारे
मासूम बच्चों के भोले अरमान पर ,
आशंकाओं का बोझ बन मेहनतकश
किसान पर /
पल भर में फैला देती है जो
कफ़न का मीलों लंबा कपड़ा -
चहल-पहल से भरे किसी भोले भोपाल की
भोली मुस्कान पर /
हे प्रभु ! बचाना हमारी धरती को
काली कार के काले शीशे से
झांकती काले चश्मे की काली नज़र से ,
सड़क किनारे
उतर कर जो दूर तक घूरती है -
हमारे बाप-दादों के
हरे-भरे खेतों को ललचाई आँखों से
शिकार पर झपटने को आतुर
हिंसक जंगली जानवरों की तरह ,
जो चाहती हैं
हरियाली की कोमल बांहों को
साम-दाम ,दंड-भेद के ज़रिए
रौंद कर उगाना उस पर
सीमेंट-कांक्रीट की इमारतों का जंगल /
हे प्रभु ! बचाना मासूम हवाओं को
सियासत और सल्तनत की
ज़हरीली हवाओं से ,
असली बीमारी की नकली दवाओं से /
हे प्रभु ! बचाना मेरे वतन के
ऊंचे पहाड़ों को झुकने और
ज़मींदोज़ होने से,
ताकि शेष रह जाए भौरों की गुंजन
पंछियों का गीत और
झरनों का सुमधुर संगीत
और हम दे सकें हमारी आने वाली पीढ़ियों को
कभी न खत्म होने वाली एक अनमोल विरासत / स्वराज्य करुण
उतर कर जो दूर तक घूरती है -
ReplyDeleteहमारे बाप-दादों के
हरे-भरे खेतों को ललचाई आँखों से
कटु सत्य लगा यहाँ पर..
बहुत सुन्दर इच्छा ……काश! प्रभु सुन लें।
ReplyDeleteयह ज्यादती तो हम ही कर रहे हैं ..बेचारे प्रभु भी क्या कर पायेंगे ....बहुत सार्थक सन्देश देती रचना ...
ReplyDeleteसिक्के के दोनों पहलू, उसी की माया.
ReplyDeleteराहुल सिंह जी से सहमत !
ReplyDeleteप्रार्थनारत भाव !!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!