आसमान में बजे ढोल और बूंदों की झंकार हुई !
कुदरत का संगीत सुनाते
काले-काले बादल ,
इस धरती से उस अम्बर तक
उड़ने वाले बादल !
खेत-खेत और पर्वत-जंगल ,बारिश की बौछार हुई !
दूर कहीं छुप गयी जाकर
उमस भरी वह गर्मी ,
बैसाख-जेठ के सूरज ने
छोड़ी अपनी हठधर्मी !
मेहनत के मौसम की फिर से आज मधुर पुकार हुई !
हँसते-झूमते मस्ती में
निकल पड़े खेतों की ओर ,
ये किसान हैं श्रम -सिंचन से
जोडेंगे नव-युग की डोर !
हल और बैलों की अब देखो , फिर तेज रफ़्तार हुई !
- स्वराज्य करुण
छाया चित्र google से साभार
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सुंदर वर्षा गीत और गांव की खुशबू भी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteसबको इसी संगीत का तो इन्तजार है!
दूर कहीं छुप गयी जाकर
ReplyDeleteउमस भरी वह गर्मी ,
बैसाख-जेठ के सूरज ने
छोड़ी अपनी हठधर्मी !
मेहनत के मौसम की फिर से आज मधुर पुकार हुई
aaj varsha ke hone par aapki ye kaita aur bhi sundar prateet hui.badhai.
बहुत अच्छी और प्यारी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
मौसम के अनुकूल मनभावन कविता.
ReplyDeletebadhiya prastuti
ReplyDeleteसमसामयिक सुन्दर रचना
ReplyDeleteभर भर नयना बदरा आये
प्यासी धरती की प्यास बुझाने
झूमें गायें मस्ती मे सारे
बूढे बच्चे और सयाने।
शुभकामनायें।
हँसते-झूमते मस्ती में
ReplyDeleteनिकल पड़े खेतों की ओर ,
ये किसान हैं श्रम -सिंचन से
जोडेंगे नव-युग की डोर !
मनभावन रचना ...आपका आभार
is sangeet me jeewan ras hai
ReplyDeletehai kuchh saachaa to bas yhi hai
करुणजी,
ReplyDeleteवर्षा ऋतु का ऐसा सुन्दर चित्रण?! अद्भुत है....
बारिश का अनुपम संगीत समेटे खूबसूरत प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .
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