- स्वराज्य करुण
देश में गली-मुहल्लों के दुःख-दर्द को लेकर आवाज़ उठाने वाला कोई 'चवन्नी छाप ' अब कहीं नजर नहीं आएगा . किसी भी पार्टी में कोई 'चवन्नी सदस्य' नहीं होगा . अब किसी चुनावी मौसम में लोग 'एक चवन्नी तेल में - अमुक जी गए जेल में ' जैसा दिलचस्प नारा सुनने को भी तरस जाएंगे . किसी भिखारी को दया भावना से चवन्नी देने पर वह लेने से साफ़ इनकार कर देगा ,हालांकि भिखारी अब तो अठन्नी भी नहीं लेना चाहते .फिर चवन्नी भला क्यों लेने लगे ?
अब कोई किसी को चवन्नी छाप कहकर उसका मजाक नहीं उड़ा पाएगा . यहाँ तक तो करीब-करीब सब ठीक -ठाक रहेगा ,लेकिन उस वक्त क्या होगा ,जब हम अपने नन्हें बेटे-बेटियों को यह नहीं बता पाएंगे कि एक रूपए का चौथाई हिस्सा कितना होता है ? बाज़ार में पचहत्तर पैसे का कोई सामान नहीं खरीदा जा सकेगा . सीधे-सीधे या तो एक रूपए का नोट दीजिए, या नहीं तो आगे रस्ता नापिए!
इस तरह की बहुत सी बेतरतीब आशंकाओं के बादल दिल के आकाश में उमड़ने -घुमड़ने लगे हैं,जब से भारतीय रिजर्व बैंक ने यह ऐलान किया है कि वह पच्चीस पैसे यानी चवन्नी और उससे कम कीमत के सिक्कों को आगामी ३० जून २०११ से बंद करने जा रहा है. इस तारीख के बाद ये सिक्के कानूनी मुद्रा के रूप में मान्य नहीं होंगे . आर.बी आई. ने इस घोषणा के साथ ये भी ऐलान किया है कि आम जनता के पास अगर ऐसे सिक्के हैं ,तो वह छोटे सिक्के रखने वाली बैंक-शाखाओं से २९ जून तक उनका विनिमय करवा ले .इस समय-सीमा में रिजर्व बैंक अपनी शाखाओं में भी इनका विनिमय करेगा.लेकिन उसके बाद क्या होगा ?नन्हें-मुन्नों की गुल्लकों में संचित सिक्कों में अगर चवन्नी और पांच-दस पैसे के सिक्के भी हों ,तो वे भी बहुत ज़ल्द अजायब घर में रखने लायक हो जाएंगे .
पहले एक नया पैसा भी हुआ करता था . वह गायब हो गया . फिर पांच पैसे , दस पैसे और बीस पैसे के सिक्के गायब हुए और अब तो बाज़ार में चवन्नी और अठन्नी तक विलुप्त होने लगे हैं. सरकार ने पांच रूपए और दस रूपए के सिक्के जारी किए ,लेकिन सिक्का गलाकर चांदी काटने के धंधे में लगे चोरों की बुरी निगाहें उन्हें भी गलाने लगीं .लिहाजा ये भी अब नजरों से ओझल होने लगे हैं. सिक्कों के गायब होने के कई और भी कारण होंगे ! सबसे बड़ा कारण तो बढ़ती महंगाई है.
आज से दस-पन्द्रह साल पहले तक गुमटियों में अठन्नी यानी पचास पैसे में एक कप और चवन्नी मतलब पच्चीस पैसे में हाफ चाय आसान से मिल जाती थी . अब उन्हीं गुमटियों में बिकने वाली चाय पाच रूपए कप से नीचे नहीं है. आखिर ये बेचारे गुमटी वाले करें भी तो क्या ? चायपत्ती और शक्कर की कीमत बढ़ गयी ,तो चाय बनाने की लागत बढ़ना भी स्वाभाविक है . शहरों की झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर हों, या गाँवों के खेतिहर श्रमिक और चरवाहे, समाज की अंतिम पंक्ति के लोग अपने मोहल्ले में छोटी-सी दुकान में चवन्नी की चायपत्ती और चवन्नी की शक्कर लेने जाते ,तो दुकानदार खुशी-खुशी उन्हें पुडिया में बांधकर ये सामान दे देता था. इस दुकान में चवन्नी का सरसों तेल या फल्ली तेल भी आसानी से मिल जाता था. गरीबों की छोटी-छोटी ज़रूरतें चवन्नी, और पांच,दस या बीस पैसे के सिक्कों से भी पूरी हो जाती थी . बढ़ती महंगाई ने उनसे यह भी छीन लिया .
महंगाई का एक प्रमुख कारण बेलगाम भ्रष्टाचार भी तो है. काला धन भ्रष्टाचार से पैदा होता है . काले धन के धंधे वालों की हैसियत किसी से छिपी नहीं है . इस अथाह काले-अँधेरे महासागर में चवन्नी और उससे कम कीमत के सिक्कों की भला क्या अहमियत होगी ? रिश्वतखोरी और कालेधन के अपराधियों से निबटने के लिए बाबा जी चिल्लाते रह गए कि पांच सौ और हज़ार-हजार के नोटों का चलन तत्काल बंद कर दिया जाए ,ताकि कोई भी लेन-देन इन बड़े नोटों के बजाय अगर छोटे नोटों में हो,तो वह आसानी से सबकी नजरों में आ जाए . इससे भ्रष्टाचारी और रिश्वतबाज लोग आसानी से चिन्हांकित होकर पकड़े जा सकेंगे . सुझाव गलत नहीं था ,लेकिन देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे बड़े नोटों के बड़े खिलाड़ी ऐसा क्यों होने देंगे ?
लिहाजा, उन्होंने हज़ार-पांच सौ के नोटों के प्रचलन को बंद किए बिना पांच पैसे ,दस पैसे और पच्चीस पैसे के सिक्कों को ही बाज़ार से बाहर का रस्ता दिखा दिया है. यह कह कर कि एक जुलाई से इधर देखना भी मत ! वाकई अब इस देश के हम जैसे साधारण नागरिकों की हैसियत चवन्नी जितनी भी नहीं रह गयी है !
- स्वराज्य करुण
चलो अब हम पर तोहमत नहीं लगेगी कि चवन्नी छाप है। यह बढ़ती मंहगाई का ही नतीजा है कि छोटे सिक्के बाजार से गायब हो रहे हैं और बड़े नोटों की भरमार हो रही है। अच्छा आलेख।
ReplyDeleteछोटे सिक्कों का बंद हो जाना मतलब महगांई का चरम सीमा होना है।
ReplyDeleteजिस हिसाब से मंहगाई बढ रही है,कुछ दिन बाद सरकार 5-10 के नोटों को भी बंद कर देगी।
अब लोगों की चवन्नी चलना बंद हो जाएगी। सिक्का ही चल पाएगा :)
chavanni kyaa ab to athanni bhi baajaar se gayab hi hai,nahi chalta hai.
ReplyDeletesahi kah rahe hai swaraj ji,ab chavvani to kya ek rupay ke sikke taq lagbhag bazar se out ho chuke hain.sarthak post.
ReplyDeleteआज कल लोंग चवन्नी - अठन्नी कोई नहीं लेता ..एक बार मैं प्रेस करने वाले को दे रही थी तो उसने कह दिया की यह तो आप मंदिर में चढा दो ..हमसे कोई नहीं लेता ... :) पहले तो सिनेमाघर में भी चवन्नी क्लास होती थी ...
ReplyDeleteविचारणीय लेख
पांच दस के सुन्दर सुन्दर नये नवेले सिक्के आ ही गये हैं, चवन्नी जाये तो जाये पर इंसान को चवन्नी छाप सोच से निजात पानी चाहिये। इंसान को लिमिटेड ओव्हर की जिन्दगी मिलती है.. लोग एक एक रन बनाकर 20 20 को टेस्च मैच बनाने पर तुले रहते हैं ....
ReplyDeleteचवन्नी बिना चुनावी नारो का क्या होगा । मुझे याद है विश्वनाथ सिंग के समय हम लोग नारा लागाया करते थे "चार चवन्नी थाली मे कांग्रेस आई नाली मे" याद आया तो सोचता हूं कि शायद आज भी प्रासंगिक है
ReplyDeleteयह बढ़ती मंहगाई का ही नतीजा है किछोटे सिक्के बाजार से गायब हो रहे हैं|
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट.....
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