- स्वराज्य करुण
रिश्वत-खोरों,टैक्स-चोरों ,
और हत्यारों की
तिजोरियों से,
रसोई घरों और बाथरूमों में
छुपा कर रखी गयी बोरियों से ,
शयन-कक्ष के बिस्तरों से ,
बैंक-लॉकरों से ,
लुटेरों और तस्करों से
लगातार निकलते करोड़ों -अरबों
रूपयों के हरे-गुलाबी नोटों में
छपी अपनी तस्वीर देख कर
आज अगर होते इस खुदगर्ज़
दुनिया में -
सच्चाई और अहिंसा के पुजारी
महात्मा गांधी,
तो क्या गुजरती उनके दिल पर
तब शायद ज़रूरत नहीं होती किसी
किसी हत्यारे की ,
महात्मा स्वयं कर लेते आत्म-ह्त्या !
शराब की लबालब नदियों से शर्मसार है
गंगा -यमुना की धारा ,
इसलिए हे मेरे देश के कर्णधारों !
मत लगाओ बापू का जयकारा /
अब मत छापो अपने नोटों पर
राष्ट्र-पिता की हँसती-मुस्कुराती कोई तस्वीर,
वे जहां भी होंगे इस वक्त
रो रहे होंगे चुपचाप
देख कर देश की ऐसी बदरंग तकदीर ,
जहां खेत-खलिहानों में ,
सड़कों ,खदानों और कारखानों में ,
गरीब परेशान और बदहाल है
और उसे लूटकर कुछ लोग
मालामाल हैं /
मिलावट और ठगी के खुले बाज़ार में ,
जमाखोरी और मुनाफे के
और कुर्सियों के काले कारोबार में ,
डाकुओं के आपसी लेन-देन
और व्यवहार में,
आखिर कब तक नापाक
हाथों में रखे नोटों में
कैद रहेंगे महात्मा ?
सब कुछ देख कर बेचैन है उनकी आत्मा /
दिल ही दिल में
कह रही है अंतरात्मा -
अच्छा हुआ जो मुझे मार दी गयी गोली ,
वरना लोकतंत्र के स्वघोषित ठेकेदार
मेरे ही खून से खेला करते होली /
आज भी तो मै
हर रोज बार -बार मरता हूँ/
आज़ादी की लंबी लड़ाई में विदेशियों से
कभी नहीं डरा ,
लेकिन आज कुछ अपने ही
देशवासियों से डरता हूँ,
जिन्हें मुझसे नहीं बस
मेरी तस्वीरों वाले कड़क नोटों से प्यार है ,
जिनके लिए लोकतंत्र सेवा नहीं ,व्यापार है /
- स्वराज्य करुण
रिश्वत-खोरों,टैक्स-चोरों ,
और हत्यारों की
तिजोरियों से,
रसोई घरों और बाथरूमों में
छुपा कर रखी गयी बोरियों से ,
शयन-कक्ष के बिस्तरों से ,
बैंक-लॉकरों से ,
लुटेरों और तस्करों से
लगातार निकलते करोड़ों -अरबों
रूपयों के हरे-गुलाबी नोटों में
छपी अपनी तस्वीर देख कर
आज अगर होते इस खुदगर्ज़
दुनिया में -
सच्चाई और अहिंसा के पुजारी
महात्मा गांधी,
तो क्या गुजरती उनके दिल पर
तब शायद ज़रूरत नहीं होती किसी
किसी हत्यारे की ,
महात्मा स्वयं कर लेते आत्म-ह्त्या !
शराब की लबालब नदियों से शर्मसार है
गंगा -यमुना की धारा ,
इसलिए हे मेरे देश के कर्णधारों !
मत लगाओ बापू का जयकारा /
अब मत छापो अपने नोटों पर
राष्ट्र-पिता की हँसती-मुस्कुराती कोई तस्वीर,
वे जहां भी होंगे इस वक्त
रो रहे होंगे चुपचाप
देख कर देश की ऐसी बदरंग तकदीर ,
जहां खेत-खलिहानों में ,
सड़कों ,खदानों और कारखानों में ,
गरीब परेशान और बदहाल है
और उसे लूटकर कुछ लोग
मालामाल हैं /
मिलावट और ठगी के खुले बाज़ार में ,
जमाखोरी और मुनाफे के
और कुर्सियों के काले कारोबार में ,
डाकुओं के आपसी लेन-देन
और व्यवहार में,
आखिर कब तक नापाक
हाथों में रखे नोटों में
कैद रहेंगे महात्मा ?
सब कुछ देख कर बेचैन है उनकी आत्मा /
दिल ही दिल में
कह रही है अंतरात्मा -
अच्छा हुआ जो मुझे मार दी गयी गोली ,
वरना लोकतंत्र के स्वघोषित ठेकेदार
मेरे ही खून से खेला करते होली /
आज भी तो मै
हर रोज बार -बार मरता हूँ/
आज़ादी की लंबी लड़ाई में विदेशियों से
कभी नहीं डरा ,
लेकिन आज कुछ अपने ही
देशवासियों से डरता हूँ,
जिन्हें मुझसे नहीं बस
मेरी तस्वीरों वाले कड़क नोटों से प्यार है ,
जिनके लिए लोकतंत्र सेवा नहीं ,व्यापार है /
- स्वराज्य करुण
बढ़िया है ! हमारी चिंतायें भी देखियेगा !
ReplyDeletehttp://ummaten.blogspot.com/2008/10/blog-post.html
http://ummaten.blogspot.com/2008/07/blog-post_30.html
@मेरी तस्वीरों वाले कड़क नोटों से प्यार है ,
ReplyDeleteजिनके लिए लोकतंत्र सेवा नहीं ,व्यापार है.
सत्य है वर्तमान का, नोट खाने वालों की संख्या बढते जा रही है।
नोट, साधन मात्र है, जिससे ढेरों सत्कर्म भी सधते हैं.
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति ....
ReplyDeleteबहुत ही अर्थपूर्ण,सुन्दर और सार्थक कविता
ReplyDeleteतब शायद ज़रूरत नहीं होती किसी
ReplyDeleteकिसी नाथूराम की
महात्मा स्वयं कर लेते आत्म.ह्त्या !
सच्चाई का बेबाक चित्रण किया है आपने।
एक दमदार रचना के लिए आभार।
आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
हृदय की व्यथा का सुंदर चित्रण।
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