दरख्तों पर
अब नहीं
गाएगी कोई चिड़िया ,
इस वीरान पेड़ पर
बैठना मना है,
गाने का तो सवाल ही नहीं उठता /
पहाड़ की बांहों से
अंकुरित होकर
बेहद खामोशी से
बहने लगेगा झरना ,
तरंगित नहीं होंगी नदियाँ ,
इस जंगल में संगीत प्रतिबंधित है /
भौंरे नहीं गुनगुनाएंगे और
तितलियाँ नहीं कर पाएंगी
फूलों से मासूम मुलाक़ात,
इस फुलवारी में प्रवेश वर्जित है /
सूरज उगेगा ज़रूर ,
लेकिन परदे के पीछे ,
क्योंकि रौशनी के नाम है वारंट और
उसे ढूंढ रहे हैं -अँधेरे के सिपाही /
हम कैसे जान सकेंगे
कि हो गयी है सुबह ,
जबकि चिड़ियों ने चहकना और
फूलों ने महकना बंद कर दिया है /
कौन हमें बताएगा कि
हो गया है सवेरा ?
सामने तो सिवाय
एक अपरिचित सन्नाटे के
और कोई भी नहीं है !
- स्वराज्य करुण
@रौशनी के नाम है वारंट और
ReplyDeleteउसे ढूंढ रहे हैं -अँधेरे के सिपाही.
वाह वाह कमाल हो गया, गजब का बिंब है।
आभार
क्या खूब बात बनी है. आपकी ऐसी ही रचनाओं के लिए यहां बार-बार आना चाहता हूं.
ReplyDeleteप्रकृति के बिम्ब लिए सुंदर अभिव्यक्ति.....
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