Wednesday, April 6, 2011

कौन उठाएगा पहला पत्थर ?

                                                                                                      

                                                                                                               
                    वे एक सेवा-निवृत फौजी हैं . सेना से  रिटायर होने पर गुज़ारे के लिए  उन्हें भी  सरकारी  ज़मीन मिली. एकदम बंजर .पथरीली और पहाड़ी भूमि.  .लेकिन उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया . उस इलाके में शायद ज्यादातर ज़मीन ऐसी ही थी .खेती ठीक से हो नहीं पाती थी .किसान गरीब और परेशान  थे . उन्होंने  किसानों  को साथ लेकर पहाड़ी ढलानों पर बरसात के पानी को रोकने के सहज-सरल उपाय किए . चमत्कार हुआ . गाँव की तस्वीर और किसानों की तकदीर बदलने लगी .
     मैंने सुना है कि  बंजर ज़मीन को हरा-भरा बनाने  के लिए महाराष्ट्र के रालेगांव में  उनके इस  शानदार और सफल प्रयोग की वज़ह से उन्हें देश भर में ख्याति मिली . उनका यह प्रयोग एक मॉडल बना और वाटर-शेड अथवा जल-ग्रहण क्षेत्र विकास मिशन के नाम से केन्द्र सरकार ने भी इसे अपनाया . अनेक राज्यों में हरियाली और कृषि-उत्पादन बढ़ाने में इस मिशन की भूमिका को सबने स्वीकार भी किया . केन्द्र सरकार की योजना के तहत कई राज्य-सरकारें वाटर शेड मिशन की कामयाबी दिखाने के लिए अपने -अपने राज्यों के किसानों को रालेगांव के शैक्षणिक भ्रमण पर भी भेजा करती थीं  .
       कौन हैं वो ,जिनके एक छोटे से प्रयोग की उपयोगिता को समझ कर  केन्द्र सरकार  ने वाटर-शेड मिशन के लिए उनके रालेगांव मॉडल को तो अपनाया लेकिन  भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लोकपाल  क़ानून बनाने में उनके सुझाव के अनुरूप नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने में आज उसे संकोच क्यों  हो रहा है ?  अन्ना हजारे को देख कर मुझे तो  'जय जवान -जय किसान' का नारा देने वाले हमारे पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की याद आती है. अन्ना हजारे  भी लगभग उन्हीं की कद -काठी के हैं . उन्हीं के जैसा सादगीपूर्ण जीवन है उनका . उन्हीं की तरह बुलंद हौसले हैं उनमें .
     अन्ना साहब जन-लोकपाल विधेयक का  प्रारूप बनाने के काम में नागरिक समाज से  पचास प्रतिशत  प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग को लेकर नयी दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठ गए हैं .उनका कहना है कि वर्तमान लोकपाल विधेयक का प्रारूप सरकारी तौर पर बनाया गया है ,जिसमे कई गलतियां हैं,जिनका लाभ उठाकर भ्रष्टाचारी आसानी से बच सकते हैं.  भ्रष्टाचार ने देश को खोखला बना दिया है. इसकी रोकथाम के लिए कठोर क़ानून की ज़रूरत है.  उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को व्यापक जन-समर्थन भी मिल रहा है.
        यह तो समय ही बताएगा कि आज के भौतिक चकाचौंध की मायावी दुनिया में भ्रष्टाचारियों का मायाजाल जीतेगा ,या अन्ना हजारे की सच्चाई  जीतेगी ? हजारे कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि नहीं हैं, राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी भी कोई चुनावी नेता नही थे  . राष्ट्र-हित,समाज-हित और जन-हित में जनता को साथ लेकर काम करने के लिए यह कोई अनिवार्य शर्त भी  नहीं है.
          फिलहाल हजारे साहब के समर्थन में हजारों -हजार  लोग सामने आ रहे हैं . समय आ गया है कि अब  महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हज़ारों-लाखों  लोग हजारे के साथ खड़े हों,भौतिक रूप से अगर न आ सकें तो नैतिक रूप से तो आएं ! महंगाई और बेरोजगारी की गम्भीर समस्याओं के लिए भी आखिर  भ्रष्टाचार ही तो ज़िम्मेदार  है .उस पर एक वैचारिक प्रहार तो करें. ,लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर पहला पत्थर उठाएगा कौन और निशाना कौन किस पर लगाएगा ?                  ---  स्वराज्य करुण                                                                       

7 comments:

  1. एक ही हैं हजारों-हजार के बराबर.

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. दूसरों के भ्रष्टाचार का विरोध सभी करते दिखते हैं और अपनी बारी आने पर सब कुछ भूल जाते हैं । भ्रष्टाचार का एक नाम दुनियादारी रखा है हमने । जब हम कहते हैं कि हम तंग हो चुके भ्रष्टाचार से तो मुझे आश्चर्य होता है । बहुत से लोग मजबूरी, परिस्थिति , जरूरत , जल्दी ,परेशानी, नहीं तो भाई-चारे के नाम पर हर दिन भ्रष्टाचार का साथ देते हैं और भ्रष्टाचार करते हैं । और लालच किसके अंदर नहीं ? अन्ना हजारे इस ज्वलंत समस्या पर समाज का ध्यानाकर्षण कर रहे हैं लोकपाल बिल के माध्यम से । एक अत्यंत सराहनीय कदम , समाज की निस्वार्थ सेवा है ये । राष्ट्रिय स्तर पर होने वाले इस तरह के अराजनैतिक आंदोलनों के माध्यम से है लोगों में जागृति आएगी ।

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  4. upyogi lekh .
    hum bhi is ladai me Anna ji ke saath hain .

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  5. Har koi apne aap se ye sawaal imaandaari se kare to jawaab mil jaayga ...

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  6. ( व्यथित लोकतंत्र )

    अब तो प्रशाशन का ,यही मूलमंत्र है
    भ्रष्ट सारा तंत्र यहाँ, व्यथित लोकतंत्र है

    जांच कमेटी बने,आंच नहीं आये पर
    जनता के नाम का,ये कैसा प्रजातंत्र है

    जीत जाती बेईमानी,हारती इमानदारी
    आदमी के हाथो अब,आदमी परतंत्र है

    कैसे सुराज आये,कैसे रामराज्य आये
    नेताओं के हाथो की,संसद बनी यन्त्र है


    ye panktiyaan bani hai sir ji aashirwaad chhahunga

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  7. धार्मिक मुद्दों पर परिचर्चा करने से आप घबराते क्यों है, आप अच्छी तरह जानते हैं बिना बात किये विवाद ख़त्म नहीं होते. धार्मिक चर्चाओ का पहला मंच , धर्मनिरपेक्ष नहीं धार्मिक बनिए.
    यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
    आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये...
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    समय मिले तो इस पोस्ट को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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