Thursday, April 7, 2011

अब 'स्वास्थ्य का अधिकार' क़ानून भी ज़रूरी

                                         (विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष )
      

         जान है तो जहान है,लेकिन यह भी सच है कि शरीर है तो किसी इंजन की तरह इसमें भी हमेशा टूट-फूट और रिपेयरिंग की गुंजाइश बनी रहती है . फिर भी कोशिश यह होनी चाहिए कि यह  हमेशा चुस्त-दुरुस्त रहे. कहते हैं कि स्वस्थ  शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास रहता है और मानव का शरीर और मन स्वस्थ रहे तो समाज देश और विश्व भी स्वस्थ रह सकता है. चिकित्सा-विज्ञान  दुनिया में लगातार तरक्की करता जा रहा है. उसके नए -नए आविष्कारों ने अनेक  गंभीर  बीमारियों के कठिन इलाज को बहुत आसान बना दिया है. एक्स-रे ,ई.सी.जी. सोनोग्राफी ,एम.आर.आई और सी.टी. स्केन जैसी मशीनें शरीर के भीतर झाँक कर बीमारी को  पहचान लेती हैं ,जिससे डाक्टरों के लिए उनका इलाज कर पाना बहुत आसान हो जाता है.अनेक ऐसी दवाएं भी बाज़ार में आ चुकी हैं , जिनसे कई बड़ी बीमारियाँ जल्द से जल्द ठीक हो सकती हैं .  हमें इलाज के इन  बेहतरीन और आधुनिकतम साधनों और दवाइयों के लिए चिकित्सा-वैज्ञानिकों का आभारी होना चाहिए जिन्होंने मानवता की भलाई के लिए इनका आविष्कार किया .  फिर भी सवाल यह उठता है कि क्या इलाज की ये अत्याधुनिक मशीनी सुविधाएं और दवाएं आज हर इंसान को बिना किसी आर्थिक भेदभाव के, आसानी से मिल पाती है ?किसी भी देश के  मानव-संसाधन को उसकी सबसे अनमोल पूंजी माना जाता है. अगर मानव शरीर ही स्वस्थ न हो ,तो मानव-संसाधन कैसे स्वस्थ रह सकता है ? अगर किसी देश का मानव-संसाधन स्वस्थ न रहे तो वह देश कैसे स्वस्थ होगा और कोई देश स्वस्थ न हो तो दुनिया कैसे स्वस्थ होगी ?
           विश्व स्वास्थ्य दिवस के सन्दर्भ में  यह सवाल और भी ज्यादा ज़रूरी हो जाता है. यह अंतर्राष्ट्रीय दिवस
आज  सात अप्रैल को  मनाया जा रहा है. दरअसल यह विश्व स्वास्थ्य संगठन का स्थापना दिवस है. आज ही के दिन सन 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सहयोगी और संबद्ध संस्था के रूप में  दुनिया के 193 देशों ने मिल कर स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में इसकी बुनियाद रखी थी  . दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा उठाना इसका मुख्य उद्देश्य है .हर इंसान की सेहत अच्छी हो , और उसे बीमार होने पर हर प्रकार के इलाज की अच्छी सुविधा मिल सके .  दुनिया भर में मलेरिया ,फायलेरिया , सिकल सेल एनीमिया , पोलियो, अंधत्व , कुष्ठ , क्षय रोग और एड्स जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम , इनके मरीजों को समुचित इलाज की सुविधा ,और इन व्याधियों के बारे में वैज्ञानिक नज़रिए से समाज में जन-जागरण भी इसके नेक इरादों में शामिल है.    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव-स्वास्थ्य की परिभाषा है .  इसके लिए संगठन द्वारा अपने सदस्य देशों की केन्द्रीय सरकारों के ज़रिये और वहाँ की राज्य सरकारों के सहयोग से कई प्रकल्प चलाए जाते हैं.शहरों से  लेकर  दूर-दराज गाँवों तक छोटे-बड़े हजारों-लाखों सरकारी अस्पतालों में विश्व-स्वास्थ्य संगठन की योजनाओं पर अमल  किया जा रहा  है. चिकित्सा-विज्ञान  के नए आविष्कारों का फायदा विश्व-स्वास्थ्य संगठन अपने प्रकल्पों के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाने का प्रयास करता आ रहा है. इसके अच्छे नतीजे भी सामने आ रहे हैं .कई जटिल और गम्भीर बीमारियों की प्रसार दर काफी कम हो गयी है. लेकिन  गंदगी और गंदे पानी से फैलने वाली विषाणु -जनित बीमारियाँ आज भी एक बड़ी चुनौती है. ह्रदय रोग , मधुमेह और कैंसर जैसी जटिल बीमारियों के  महंगे इलाज का खर्च उठा पाना भारत जैसे देशों में कम आमदनी वाले अधिकाँश परिवारों के लिए बहुत कठिन है. किसी को रीढ़ की हड्डी में तकलीफ है और डाक्टर की सलाह से उसे एम.आर. आई . कराना है , तो एक बार में  कम  से कम पांच हजार रूपए की चपत लगना समर्थ व्यक्ति के लिए तो मामूली बात  है ,पर गरीबों  के लिए ?
   लोकतन्त्र में निर्वाचित सरकारें जनता के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर निश्चित रूप से काफी ध्यान देती हैं . अस्पतालों की स्थापना करती हैं , वहाँ डाक्टरों और पैरा-मेडिकल कर्मचारियों की नियुक्ति कर उनके वेतन-भत्तों पर करोड़ों रूपए खर्च करती हैं. मरीजों के लिए सरकारी खर्च पर करोड़ों रूपए की दवाइयां इन सरकारी अस्पतालों को दी जाती हैं.महंगे चिकित्सा उपकरण दिए जाते हैं .गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए कई सरकारी योजनाएं भी  हैं ,लेकिन सरकारों की इन तमाम अच्छी कोशिशों के बावजूद आज भी मरीज वहाँ जाने से घबराता है .सरकारी  अफसरों  और कर्मचारियों की आलस्य-जनित लापरवाही, ,गंदगी, कुप्रबंधन  और  लाखों रूपयों का वेतन पाने वाले डाक्टरों में अतिरिक्त आमदनी के लिए  निजी प्रेक्टिस की अमानवीय आदत और मरीजों तथा  उनके परिजनों से अशोभनीय व्यवहार भी काफी हद तक इसके लिए ज़िम्मेदार हैं    .अनेक   सरकारी डाक्टर प्रायवेट अस्पतालों को भी अपनी सेवाएं देते हैं.इससे उन्हें अच्छी अतिरिक्त आमदनी हो जाती है. फलस्वरूप उनका मन सरकारी काम में नही लगता है निजी अस्पतालों को फायदा पहुंचाने के लिए ये सरकारी डाक्टर सरकारी अस्पतालों में  उपलब्ध उपकरणों को चोरी -चोरी चुपके-चुपके बेच देते हैं ,या नहीं तो किराए पर आवंटित कर देते हैं. मरीजों को कई सरकारी डाक्टर अपने घर बुला  कर और पैसे लेकर इलाज करते हैं . सरकारी अस्पतालों के वातावरण में मानवता का अभाव साफ़ नज़र आता है.
  यही कारण है कि  जिस व्यक्ति के पास थोड़े  भी पैसे हों , वह बीमार हो जाने पर वहाँ  नहीं जाना चाहता . दूसरी तरफ निजी क्षेत्र के अस्पतालों में भी गरीब मरीजों के लिए परेशानियां कुछ कम नहीं हैं . चमक -दमक से भरे निजी अस्पतालों में  मरीजों को   सैकड़ों-हज़ारों रूपए प्रति दिन के हिसाब  से  कमरे का किराया  लगता है. ,डाक्टरों की ऊंची फीस लगती है . एक से बढ़ कर एक मेडिकल टेस्ट लिख दिए जाते हैं .अगर ज़रूरत नहीं है ,तब भी खून की जांच , सी.टी. स्केन , ई.सी. जी. और भी न जाने क्या -क्या टेस्ट ? हर टेस्ट का खर्च अलग .यह राशि दे पाना गरीबों के बूते के बाहर की बात होती है. ऐसे कई कारण हैं  जो यह साबित करते हैं कि आज की दुनिया में गरीबों का बीमार होना  किसी कठोर कारावास की सजा से कम नही है.
      ये हालात तब हैं ,जब विश्व-स्वास्थ्य संगठन ने मानव के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होने को ही स्वास्थ्य की परिभाषा माना है. विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन हर साल किसी एक ज्वलंत विषय को केन्द्र में रख कर मनाया जाता है. चालू वर्ष 2011 में यह आयोजन  सूक्ष्म जीव प्रतिरोधियों के फैलाव के खतरों के प्रति जन-जागरण पर केंद्रित है. पिछले साल  2011  इसे 'शहरीकरण और स्वास्थ्य विषय पर केंद्रित किया गया था. इसके पहले वर्ष 2008 में यह 'जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य ' को लेकर मनाया गया . बीमारी चाहे सामान्य हो, या गंभीर, प्रत्येक मरीज को इलाज की सस्ती और अच्छी सुविधा मिले, एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद , होम्योपैथी ,यूनानी ,  प्राकृतिक चिकित्सा और योग-चिकित्सा जैसी कम खर्चीली लेकिन अधिक उपयोगी  प्रणालियों को भी इस संगठन के सहयोग से  जन-जन तक पहुंचाया जाए , तभी तो विश्व-स्वास्थ्य दिवस की सार्थकता साबित होगी. भारत सरकार ने देश की नयी पीढ़ी के हित में शिक्षा के अधिकार का क़ानून लागू किया  है ,जो स्वागत योग्य है . अब ज़रूरत इस बात की है कि नागरिकों के लिए 'स्वास्थ्य का अधिकार ' क़ानून भी जल्द बनाया जाए ,यह प्रत्येक नागरिक का मौलिक और संवैधानिक अधिकार   हो , ताकि किसी भी  गरीब मरीज को  किसी भी अस्पताल के दरवाजे  से  निराश न लौटना पड़े .                                                         -----  स्वराज्य करुण

   

2 comments:

  1. फिलहाल तो हम अपने राज्‍य के 108 सेवा से ही अभिभूत हैं.

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  2. बहुत सार्थक पोस्ट...

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