लोकतंत्र में किसी भी सार्वजनिक विषय को लेकर आम जनता के बीच हमेशा व्यापक बहस की गुंजाइश रहती है. ये नहीं कि एक विचार मेरे या आपके मन में आया और मैंने या आपने यह सोच लिया कि सिर्फ हमारे इस इकलौते विचार से ही देश और दुनिया का भला हो सकता है. फिर मेरा या आपका अगर कोई संगठन हो, तो अपने इस विचार को मै या आप किसी भी हालत में अपने संगठन के ज़रिये जनता पर थोपने की कोशिश करने लगते हैं . हो सकता है कि मेरा या आपका कोई विचार जनता की भलाई के लिए अच्छा हो .फिर भी जनता की सलाह लिए बिना उसे कहीं भी कैसे लागू किया जा सकता है ? यह भी तो संभव है कि कोई हमसे भी अच्छा सोच रहा हो ! किसी के पास हमसे भी बेहतर विचार हों और उसकी सलाह हमारे विचार को व्यवहार में लाने में सहायक साबित हो. इसलिए हम अपने ही विचार को अंतिम क्यों मानें ? हाँ , किसी विचार -विशेष को लेकर सर्व-सम्मति बनाने की कोशिश ज़रूर की जानी चाहिए . आम -राय से ही किसी भी सार्वजनिक महत्व के विचार को ज़मीन पर साकार किया जा सकता है .
भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए सहज-सरल गांधीवादी समाज सेवी अन्ना हजारे साहब के प्रस्तावित जन-लोकपाल क़ानून को लेकर हुए चार- पांच दिवसीय जन-आंदोलन के प्रसंग में भी यह विचारणीय है. इसमें दो राय नहीं कि उनके नेतृत्व में हुए महात्मा गांधी शैली के इस अनोखे अनशन और ऐतिहासिक सत्याग्रह को अच्छी सफलता मिली . उनके साथ देश के और खास तौर पर दिल्ली के नागरिक-समाज के अनेक विचारवान और विवेकवान लोग भी अनशन पर बैठे. वास्तव में भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को अन्ना हजारे के इस शांतिपूर्ण सत्याग्रह में उम्मीदों की नयी रौशनी नज़र आयी और वह तेज गति से उनकी ओर दौड़ने लगी . केन्द्र सरकार ने भी उनकी इस इकलौती मांग पर विचार करने और जन-लोकपाल क़ानून का मसौदा तैयार करने के लिए कमेटी का गठन कर दिया और अन्ना साहब का सत्याग्रह समाप्त हुआ .कमेटी में पांच सरकारी मंत्री शामिल हैं और पांच प्रतिनिधि नागरिक समाज से नामांकित हुए हैं. हालांकि समिति में नागरिक समाज से हुए नामांकन को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं .
मुझे लगता है कि विवादों से बचने के लिए इसमें दोनों तरफ से कुछ और सदस्य लिए जाने चाहिए .जैसे समाज सुधारक के रूप में बाबा रामदेव को , जो विगत कई वर्षों से भ्रष्टाचार के खिलाफ . खास तौर पर कालेधन के खिलाफ जन-जागरण अभियान चला रहे हैं . महिला प्रतिनिधि के रूप में श्रीमती किरण वेदी को लिया जा सकता है .वह देश की प्रथम महिला आई.पी. एस. अधिकारी रह चुकी हैं . समाज-सेवा और जेल -सुधारों के क्षेत्र में उन्होंने काफी काम किया है. सरकार की ओर से एक और मंत्री तथा केन्द्रीय सूचना आयोग के एक प्रतिनिधि को नामांकित किया जा सकता है .खैर , ये केवल एक नागरिक की हैसियत से मेरा सुझाव है . कोई माने तो ठीक , और न माने तो मैं कर भी क्या सकता हूँ ?
बहरहाल , दस सदस्यों वाली कमेटी घोषित हो चुकी है . अब कमेटी के लोग जन-लोकपाल क़ानून के प्रारूप पर विचार कर अंतिम ड्राफ्ट तैयार करेंगे ,जिसे केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद में अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाएगा . अनुमोदन के बाद यह लोक सभा में और राज्य सभा में पेश होगा , जहां सदस्यों के बहुमत या आम सहमति से पारित होने के बाद सरकार की ओर से यह अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा . उनके हस्ताक्षर के बाद ही यह क़ानून देश में लागू हो पाएगा . मेरे कहने का आशय यह है कि अभी तो जन-लोकपाल क़ानून के प्रारूप को एक और लंबा सफर तय करना है . केन्द्र सरकार भी अपने कोल्ड स्टोरेज में चालीस साल से रखे हुए पुराने लोकपाल क़ानून के प्रस्ताव को निकालेगी और उसके कुछ प्रावधानों को अन्ना साहब के प्रस्तावित जन- लोकपाल क़ानून में ज़रूर मिलाना चाहेगी . फिर केन्द्रीय केबिनेट में मंजूरी और संसद के दोनों सदनों में इस पर संभावित बहस के दौरान क्या कुछ नए तथ्य इसमें शामिल हो पाएंगे , या अन्ना साहब और उनके सत्याग्रही अपने जन-लोकपाल क़ानून को यथावत लागू करवाने पर अडिग रहेंगे , यह तो वक्त ही बताएगा. अगर ऐसा कोई क़ानून बनता है तो जन-लोकपाल कौन होगा? उसके चयन की प्रक्रिया क्या होगी ? केन्द्र से लेकर राज्यों तक पूरे देश में उसका कैसा प्रशासनिक ढांचा होगा ? उसकी क्या भूमिका होगी ? उसके न्यायिक-प्रशासनिक अधिकार किस तरह के होंगे ? क्या लोकतंत्र के चारों अंग - विधायिका , न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया समान रूप से जन-लोकपाल क़ानून के दायरे में आएँगे ? अगर जन-लोकपाल के खिलाफ कोई शिकायत हो, तो उसकी जांच और सुनवाई कौन करेगा ? ऐसे कई अहम सवाल हैं, जिनके जवाब जनता जानना चाहती है ,लेकिन कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा है .
इसलिए मेरा सुझाव है कि जन-लोकपाल क़ानून का प्रारूप बनाने के लिए गठित कमेटी इसका जो भी ढांचा तैयार करे , पारदर्शिता के लिहाज से उसे व्यापक बहस के लिए जनता के बीच ज़रूर प्रस्तुत करे .आम जनता से एक निश्चित समय -सीमा में सुझाव आमंत्रित कर उनमें से उपयोगी सुझावों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए . इसके लिए आकाशवाणी , दूरदर्शन और समाचार पत्रों में इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए . सूचना -प्रौद्योगिकी के इस युग में इसके लिए वेबसाईट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अन्ना साहब की संस्था चाहे तो अपनी ओर से प्रस्तावित जन-लोकपाल क़ानून के ड्राफ्ट को तत्काल वेबसाईट पर प्रदर्शित कर सकती है. अभी इसके बारे में मेरे जैसे अधिकाँश लोगों के पास अखबारों और कुछ -कुछ टेलीविजन समाचारों के ज़रिये जो भी जानकारी है , वह लगभग आधी-अधूरी है ,जो 'अधजल गगरी छलकत जाए ' की तरह हास्यास्पद और कभी खतरनाक भी हो सकती है. अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया सहित वेबसाईट में प्रकाशित -प्रसारित और प्रदर्शित होने पर करोड़ों लोगों तक इस क़ानून का प्रारूप पहुंचेगा और जनता अपनी राय दे सकेगी . इसके अलावा सरकारी कमेटी जब इसका प्रारूप अंतिम रूप से तय कर ले ,तो वह भी इन प्रचार माध्यमों के ज़रिये इसे आम जनता के सामने पेश कर सकती है .देश के सभी राज्यों में विकास खंड , तहसील जिला और राज्य स्तर पर इसके बारे में वकीलों और आम नागरिकों की विचार-गोष्ठियों का आयोजन कर उनमें भी जनता से सुझाव लिए जा सकते हैं.
सच तो यह है कि जन-जीवन से सीधे जुड़े किसी भी विषय पर जनता की सलाह के बिना कोई भी फैसला किसी भी स्तर पर अकेले-अकेले या कुछ ही लोगों के बीच नहीं होना चाहिए . यह लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है . - स्वराज्य करुण
@जन-जीवन से सीधे जुड़े किसी भी विषय पर जनता की सलाह के बिना कोई भी फैसला किसी भी स्तर पर अकेले-अकेले या कुछ ही लोगों के बीच नहीं होना चाहिए .
ReplyDeleteआपसे सहमत
बिलकुल आपसे सहमत हूँ। आलेख बहुत अच्छा है। धन्यवाद।
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ।
ReplyDeleteगंभीर और महत्वपूर्ण.
ReplyDeletesahi farmaya aapne raay sabki lee jaanee chahie
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