हमारे समय के दूसरे
महात्मा गांधी ने
सादगी ,सच्चाई और नेकी
के रास्ते पर चलते हुए
देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ
जैसे ही उठाया सवाल,
सड़क से संसद तक
मच गया बवाल !
साफ़ नज़र आ रही है
दहशत रिश्वतखोरों ,टैक्स चोरों में ,
जो छुपा कर रखते हैं
जनता की दौलत अपने गुप्त बोरों में !
मगरमच्छ के आंसू बहाकर
फिर गंगा में नहाकर
नोट के बदले वोट खरीदकर
पहुँचते हैं जो देश की
सबसे बड़ी पंचायत में ,
उनके माथे पर भी आयी सलवटें
जो लगे रहते हैं दिन-रात
धन-बल और बाहुबल से मिलकर
कुर्सी बचाने की कवायद में !
जनता का धन लूट कर
भरते हैं जो अपना खजाना
विदेशी बैंकों में ,
पोल न खुल जाए इस डर से
बनाते हैं जो क़ानून अपनी सुविधा से ,
वो निकल नहीं पा रहे हैं आज
अपनी दुविधा से !
इसीलिए तो सारे
भ्रष्टाचारियों ने
बिछाया है अपना माया जाल ,
चलने लगे हैं तरह-तरह की चाल,
ताकि उसमें फँस कर
दम तोड़ दे जन-लोकपाल ,
और उन पर
न उठा सके कोई
ऐसा -वैसा सवाल !
दरअसल धन-पशुओं को
नहीं चाहिए कोई जन-लोकपाल
उन्हें चाहिए सिर्फ और सिर्फ
एक ऐसा धन-लोकपाल
जो हर वक्त दे सिर्फ
लूट-खसोट की आज़ादी ,
भले ही होती रहे देश की बर्बादी !
जनता भले ही चिल्लाती रहे
जन-लोकपाल ! जन-लोकपाल !!
धन-पशुओं को चाहिए
केवल और केवल धन-लोकपाल !
- स्वराज्य करुण
महात्मा गांधी ने
सादगी ,सच्चाई और नेकी
के रास्ते पर चलते हुए
देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ
जैसे ही उठाया सवाल,
सड़क से संसद तक
मच गया बवाल !
साफ़ नज़र आ रही है
दहशत रिश्वतखोरों ,टैक्स चोरों में ,
जो छुपा कर रखते हैं
जनता की दौलत अपने गुप्त बोरों में !
मगरमच्छ के आंसू बहाकर
फिर गंगा में नहाकर
नोट के बदले वोट खरीदकर
पहुँचते हैं जो देश की
सबसे बड़ी पंचायत में ,
उनके माथे पर भी आयी सलवटें
जो लगे रहते हैं दिन-रात
धन-बल और बाहुबल से मिलकर
कुर्सी बचाने की कवायद में !
जनता का धन लूट कर
भरते हैं जो अपना खजाना
विदेशी बैंकों में ,
पोल न खुल जाए इस डर से
बनाते हैं जो क़ानून अपनी सुविधा से ,
वो निकल नहीं पा रहे हैं आज
अपनी दुविधा से !
इसीलिए तो सारे
भ्रष्टाचारियों ने
बिछाया है अपना माया जाल ,
चलने लगे हैं तरह-तरह की चाल,
ताकि उसमें फँस कर
दम तोड़ दे जन-लोकपाल ,
और उन पर
न उठा सके कोई
ऐसा -वैसा सवाल !
दरअसल धन-पशुओं को
नहीं चाहिए कोई जन-लोकपाल
उन्हें चाहिए सिर्फ और सिर्फ
एक ऐसा धन-लोकपाल
जो हर वक्त दे सिर्फ
लूट-खसोट की आज़ादी ,
भले ही होती रहे देश की बर्बादी !
जनता भले ही चिल्लाती रहे
जन-लोकपाल ! जन-लोकपाल !!
धन-पशुओं को चाहिए
केवल और केवल धन-लोकपाल !
- स्वराज्य करुण
दरअसल धन-पशुओं को नहीं चाहिए कोई जन-लोकपाल
ReplyDeleteउन्हें चाहिए सिर्फ और सिर्फ एक ऐसा धन-लोकपाल
जो हर वक्त दे सिर्फ लूट-खसोट की आज़ादी ,
भले ही होती रहे देश की बर्बादी !......vaah...sateek
सटीक और सार्थक लेखन ...भ्रष्टाचार पर रोक लग गयी तो नेता बनने का क्या लाभ ?
ReplyDeleteशानदार, बधाई.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
मीडिया की दशा और दिशा पर आंसू बहाएं
भले को भला कहना भी पाप
धन की दुनिया धन के लोग नही चाहिये इश्वर बस करने दो भोग
ReplyDeleteघन पशु जो चाहे वो कर सकते हैं।
ReplyDeleteसबसे बड़ी ताकत तो धन ही है।