बाबा ने नौ दिनों से जारी अपना अनशन जूस पी कर तोड़ दिया अन्ना भाऊ ने जन लोकपाल विधेयक तैयार करने के लिए १५ अगस्त तक का वक्त देते हुए राजघाट पर बापू की समाधि पर अपना एक दिन का अनशन यह कह कर तोड़ा है कि अगर १५ अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस तक इस क़ानून की स्पष्ट घोषणा नहीं होगी तो वे अगले दिन १६ तारीख से फिर अनशन शुरू कर देंगे . बाबा का आमरण अनशन काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ था, उन्होंने अनशन तोड़ते हुए यह घोषणा भी की है कि राष्ट्र-हित के इन मुद्दों पर उनका आंदोलन जारी रहेगा ,लेकिन फिलहाल तो उन्होंने एक विराम लिया है ,जो स्वाभाविक है. आगे वे कब दोबारा ऐसी कोई शुरुआत करेंगे ,इस बारे में अभी उनकी तरफ से कुछ भी नहीं कहा गया है . अन्ना साहब ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए जन-लोकपाल क़ानून बनाने दो माह का वक्त दिया .है.
काला धन बटोरने वाले और भ्रष्टाचार करने वाले खुश हैं कि चलो कुछ दिनों के लिए ही सही ,बला तो टली . ऐसे लोग राहत की सांस ले रहे हैं . वे बहुत प्रसन्न हैं कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है . लेकिन मेरा दिल कहता है किआज की दुनिया में यह उनकी भारी गलतफहमी है . बाबा और अन्ना के आंदोलनों का स्वरुप चाहे जैसा भी रहा हो, दोनों इस मायने में कामयाब कहे जा सकते हैं कि इन सत्याग्रहों के जरिये देश के हर गाँव और हर शहर के प्रत्येक घर-परिवार तक इनका सन्देश तो पहुँच ही गया.. देशवासी समझने लगे हैं कि देश की दौलत को लूट कर देश-विदेश में अपने गुप्त बैंक-खातों को लबालब करने वाले देशद्रोही आखिर कौन हैं . सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भले ही उनका नाम बताने से परहेज़ किया जा रहा हो, लेकिन जनता को यह संकेत तो मिल ही गया है कि ये सफेदपोश डाकू आखिर हैं कौन ? पहले की तुलना में आज शिक्षा और साक्षरता काफी बढ़ गयी है .इससे जनता में समझदारी भी काफी विकसित हो चुकी है. इसलिए सफेदपोश डाकुओं को भी यह समझ लेना चाहिए कि उनके सर से बला अभी टली नहीं है,बल्कि वह तो इन डाकुओं के लिए शामत बनकर अभी आने वाली है.
दुनिया में जहां अच्छाई और सच्चाई का साथ देने वालों की संख्या बहुत विशाल है, वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं , जो किसी भी अच्छे और सच्चे मकसद से किए जाने वाले कार्यों का मजाक उड़ाने से नही चूकते भले ही उनकी संख्या मुट्ठी भर क्यों न हो, पर उन्हें हर नेक इरादे में खोट नज़र आता है. क्या बाबा रामदेव और अन्ना साहब अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए सत्याग्रह कर रहे थे ? क्या देशवासियों की मेहनत की कमाई को मुट्ठी भर लुटेरों के हाथों में जाने से रोकने और काले धन की वापसी की बाबा रामदेव की मांग अनुचित है ? क्या काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की उनकी मांग राष्ट्र-हित में नहीं है ? क्या अन्ना साहब जन-लोकपाल विधेयक में देश के शीर्ष पदों को भी इस प्रस्तावित क़ानून के दायरे में लाने की मांग करके कोई गुनाह कर रहे हैं ? क्या शीर्ष पदों को सुशोभित करने वाले लोग ऐसे आसमानी फ़रिश्ते हैं ,जो इस धरती पर कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकते ? अगर वे इतने पाक-साफ़ हैं तो जन-लोकपाल के दायरे में आने में संकोच क्यों कर रहे हैं ? जब देश की १२१ करोड़ जनता संविधान के अनुरूप हर प्रकार के क़ानून के दायरे में है, तो इन ऊंचे पदों पर काबिज इक्का-दुक्का लोग स्वयम को जनता से अलग क्यों मानते हैं ? फिर वे जनता के मतों से जीतकर शीर्ष पदों को धारण करने से पहले उस संविधान की शपथ क्यों लेते हैं, जिसकी नज़रों में राजा हो , या रंक, लोकतंत्र में क़ानून सबके लिए एक बराबर है !
बहरहाल योग ऋषि स्वामी रामदेव और समाजसेवी अन्ना हजारे साहब का सत्याग्रह आंदोलन भले ही अलग-अलग समय में हुआ, कुछ वैचारिक मतभेद भी उभरे , लेकिन मेरा दिल कहता है कि .दोनों के लक्ष्य और दोनों की भावनाएं लगभग एक हैं. दोनों इस महान देश को भ्रष्टाचार और कालेधन की काली छाया से मुक्त करवाना चाहते हैं . अपने इस लक्ष्य तक दोनों अकेले नहीं,बल्कि आम जनता के साथ आगे बढ़ रहे हैं . भले ही अभी उन्होंने थोड़ा विराम लिया है. लेकिन बहुत जल्द उनकी सत्याग्रह यात्रा फिर शुरू होगी. मेरा दिल कहता है कि बाबा और अन्ना अगर एक साथ कदम से कदम मिलाकर और सबको साथ लेकर आगे बढ़ें ,तो उनके इस सात्विक सत्याग्रह को और भी ज्यादा ताकत मिलेगी
कौरवों की भरी सभाओं में कई बार पांडवों का मजाक बनाया गया था . ठीक उसी तर्ज पर आज भले ही कुछ लोग बाबा और अन्ना के अहिंसक आंदोलनों का मजाक उड़ा रहे हैं , लेकिन दुनिया देख रही है कि उन्हें और उनके सत्याग्रह को उपहास का विषय बनाने वालों के चाल.चरित्र और चेहरे बेनकाब हो चुके हैं .जनता ऐसे दागदार चेहरों को नफरत से देख रही है. इन बदनुमा चेहरों को राष्ट्रीय परिदृश्य से अब खुद-ब-खुद ओझल हो जाना चाहिए .नहीं तो अच्छाई और सच्चाई पर आधारित सत्याग्रहों का सैलाब उन्हें दृश्य-पटल से स्वयम ओझल कर देगा . स्वराज्य करुण
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteकुछ चिट्ठे ...आपकी नज़र ..हाँ या ना ...? ?
कौरवों की भरी सभाओं में कई बार पांडवों का मजाक बनाया गया था . ठीक उसी तर्ज पर आज भले ही कुछ लोग बाबा और अन्ना के अहिंसक आंदोलनों का मजाक उड़ा रहे हैं , लेकिन दुनिया देख रही है कि उन्हें और उनके सत्याग्रह को उपहास का विषय बनाने वालों के चाल.चरित्र और चेहरे बेनकाब हो चुके हैं .
ReplyDeleteअब भी यदि जनता नहीं जागती तो कुछ नहीं हो सकता .
लगता है शीर्ष पदों पर बैठने वाले आसमानी फ़रिश्ते ही हैं, तभी भारत की सारी जनता भी मिल कर इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती।
ReplyDeletebahut hi sachchai batati hui saarthak lekh.jantaa abhi bhi naa jaagi to kab jaagegi.itane achche lekh ke liye badhaai,
ReplyDeleteplease visit my blog thanks.
चेहरे बेनकाब हो चुके हैं.
ReplyDeleteकाले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग राष्ट्र-हित में है.देशवासी समझने लगे हैं कि देश की दौलत को लूट कर देश-विदेश में अपने गुप्त बैंक-खातों को लबालब करने वाले देशद्रोही आखिर कौन हैं.
सभी के चेहरे तो बेनकाब हुये काला धन चाहे विदेश मे या देश मे सरकारी खजाने मे आना ही चाहिये जो धन बाबा लोग अपनी गद्दियों के नीचे छुपाये बैठे हैं सोना चांदी हीरे जवाहरात सब कुछ जैसे कल एक और बाबा की पोल खुली। क्या इसे भ्रष्टाचार मे शामिल करेंगे?
ReplyDelete