अखबारों में खबर है कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत-रत्न' देने की मांग फिर उठने लगी है . यह हमारी भारत-माता का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि उसकी वर्तमान संतानें अपने उन महानं पूर्वजों को भूल गयी है , जिन्होंने उसे अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद कराने की लम्बी लड़ाई में अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया था . क्या झांसी की रानी लक्ष्मी बाई , अमर शहीद वीर नारायण सिंह , वीर सावरकर , लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक, अमर शहीद भगत सिंह , चन्द्र शेखर आज़ाद , और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे इस धरती के महान सपूत आज अपने ही देश के सबसे बड़े सरकारी सम्मान 'भारत-रत्न' के लायक नहीं हैं ?
सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेटर ने क्या देश के लिए कोई इतना बड़ा त्याग किया है, जिसकी तुलना इन महान स्वतंत्रता संग्रामियों और अमर शहीदों के बलिदानों से की जा सके ? मेरे विचार से एक क्रिकेटर के रूप में सचिन की जो भी उपलब्धियां हैं , वह उसके व्यक्तिगत खाते की हैं. . क्रिकेट में उसने करोड़ों -अरबों रूपए कमाए हैं. क्रिकेट उसके लिए और उस जैसे अनेक नामी-गिरामी क्रिकेटरों के लिए सिर्फ एक व्यवसाय है. , समाज-सेवा का माध्यम नहीं . वह देश को लूट रही बड़ी -बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विज्ञापनों से भी करोड़ों कमा रहा है . राष्ट्र के निर्माण और विकास में आखिर उसका क्या योगदान है ? ऐसे व्यक्ति को अगर 'भारत-रत्न' दिया जाएगा तो मेरे ख्याल से यह भारत-माता का अपमान होगा . क्रिकेट अंग्रेजों का खेल है. उन अंग्रेजों का , जिन्होंने भारत को लम्बे समय तक गुलाम बना कर रखा था , जिन अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग में हमारे हजारों मासूम बच्चों , माताओं और आम नागरिकों को बंदूकों से छलनी कर दिया था .
यह उन अंग्रेजों का खेल है , जिन्होंने इस देश को कम से कम एक सौ वर्षों तक लूटने-खसोटने का खेल खेला और आज भी किसी न किसी रूप में उनका यह निर्मम खेल चल ही रहा है . ऐसे किसी अंगरेजी खेल के खिलाड़ी को आज़ाद मुल्क में 'भारत-रत्न ' से नवाजने का कोई भी प्रयास आज़ादी की लड़ाई के उन लाखों शहीदों का भी अपमान होगा ,जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के महान संघर्षों में जेल की यातनाएं झेलीं , और अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे और जिनकी महान शहादत की बदौलत आज हम लोकतंत्र की खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं .
अब यह विचारणीय है कि हम भारत माता के अमर शहीदों को 'भारत-रत्न' मानते हैं या उन्हें जो किसी खेल को य फिर किसी और विधा को अपने व्यक्तिगत विकास ,व्यक्तिगत शोहरत और व्यक्तिगत दौलत बटोरने का ज़रिया बनाकर ऐश -ओ -आराम की जिंदगी जी रहे हैं ! आज़ाद मुल्क में ऐसे अलंकरण सिर्फ उन लोगों को दिए जाने चाहिए , जिन्होंने वास्तव में निःस्वार्थ भाव से देश और समाज को अपनी सेवाएं दी हैं, जिन्होंने अपनी किसी भी कला या प्रतिभा का इस्तेमाल व्यक्तिगत आर्थिक लाभ के लिए नहीं किया है. चाहे वे कोई साहित्यकार हों ,कवि हों , कलाकार हों , खिलाड़ी हों या फिर कोई और . मेरे विचार से ऐसे ही लोग सच्चे देश-भक्त और असली भारत -रत्न हैं ,जो अपने किसी भी हुनर को, ज्ञान को या अपनी भावनाओं को निजी लाभ-हानि से परे रख कर केवल देश और समाज के हित में काम करते हैं .व्यावसायिक नज़रिए से काम करके शोहरत और दौलत हासिल करने वालों को 'भारत-रत्न' या अन्य किसी राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित करना देश के साथ-साथ इन अलंकरणों की गरिमा के भी खिलाफ होगा .
स्वराज्य करुण
आपकी बातें सोचने के लिए विवश करती हैं।
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आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
वास्तव में रत्न तो भारत माँ के वीर सपूत ही हैं!
ReplyDeleteजिन विभूतियों का उल्लेख आपने किया क्या उन्हें सरकारी सम्मान की दरकार है ?
ReplyDeleteअविवादितों को विवादितों की श्रेणी में क्यों डालना ?
ये कैसी विडम्बना है देश की आजादी की लड़ाई में प्राणोत्सर्ग करने वालों को भारत रत्न से नहीं नवाजा जाता।
ReplyDeleteआपने एक अच्छा विषय उठाया है लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है?
राजनीति जो नकराए - जो न दिखाए कम है । कवि प्रदीप की लाईनें याद आतीं हैं हंस चुनेगा दाना … कौआ मोती खाएगा । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट है!
ReplyDeleteइसे आज के चर्चा मंच पर चर्चा में लिया गया है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/376.html
जितने भी राष्ट्रीय सम्मान होते हैं वे उन लोगों के लिए बने हैं जो देश हित में बिना व्यावसायिकता के कार्य कर रहे हैं। जिन्होंने अपना जीवन देश हित में खपा दिया है। लेकिन जो खिलाडी व्यावसायिक है उसके लिए भारत रत्न की मांग करना, वो भी सत्ता पक्ष के सांसदों के द्वारा, वोट बैंक की राजनीति को दर्शाता है। क्योंकि वे जानते हैं कि सचिन इस वर्ग में नहीं आते, लेकिन उन्होंने जनता की वाहवाही तो लूट ही ली है। यदि सचिन इस वर्ग में आते हैं तो सत्ता पक्ष किस से मांग कर रहा है, बस क्रियान्विति कर दे। जनता को अब कांग्रेस की मानसिकता को समझना चाहिए कि वे आजादी के बाद से ही जनता का भावनात्मक शोषण करती रही है।
ReplyDelete१०० % सहमत ....... बिल्कुल सही कह रहे है आप............. बहुत ही विचारणीय पोस्ट.
ReplyDeleteएक्दम सही बात ....
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