Monday, December 22, 2025

(समाचार ) एक साथ मनाई गई छत्तीसगढ़ की तीन महान विभूतियों की जयंती

 एक साथ मनाई गई छत्तीसगढ़ की तीन महान विभूतियों की जयंती 

            विचार-गोष्ठी का भी हुआ आयोजन

 छत्तीसगढ़ प्रदेश की तीन महान विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर राजधानी रायपुर के हाँडीपारा स्थित छत्तीसगढ़ी भवन में कल 21 दिसम्बर को स्थानीय प्रबुद्धजनों की विचार -गोष्ठी आयोजित की गई.इसमें वक्ताओं ने स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक जागरण के  कार्यों में  तीनों विभूतियों की ऐतिहासिक भूमिका को याद किया. इन विभूतियों में से छत्तीसगढ़ के गांधी के नाम से लोकप्रिय  पंडित सुन्दरलाल शर्मा का जन्म 21दिसम्बर 1881 को राजिम में और त्यागमूर्ति के नाम से प्रसिद्ध ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21दिसम्बर 1891 को ग्राम -दैहान (जिला -राजनांदगांव ) में हुआ था, जबकि संविधान सभा के सदस्य रहे,संविधान पुरुष के नाम से प्रसिद्ध घनश्याम सिंह गुप्त का जन्म 22दिसम्बर 1885 को दुर्ग में हुआ था. स्वतंत्रता संग्राम में भी तीनों विभूतियों की सक्रिय भूमिका थी.विचार -गोष्ठी में तीनों की जयंती  एक साथ मनाई गई.

     तीनों विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर इतिहासकार डॉ. के. के. अग्रवाल, वरिष्ठ रंगकर्मी और लेखक अरविन्द मिश्रा,  संस्कृति कर्मी अशोक तिवारी, साहित्यकार और पत्रकार स्वराज्य करुण और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सेनानी, किसान नेता और साप्ताहिक 'किसान वीर 'के सम्पादक  गोवर्धन प्रसाद चंद्राकर ने प्रकाश डाला.सर्वप्रथम तीनों विभूतियों के चित्र पर माल्यार्पण किया गया. लोकतंत्र सेनानी और राज्य निर्माण सेनानी जागेश्वर प्रसाद ने स्वागत भाषण देने के बाद कार्यक्रम का संचालन भी किया.उन्होंने ही आभार प्रदर्शन भी किया. राज्य निर्माण आंदोलनकारी संस्था छसपा द्वारा आयोजित इस विचार -गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए इतिहासकार डॉ. के. के. अग्रवाल ने  स्वतंत्रता संग्राम और अछूतोद्धार के लिए छत्तीसगढ़ में पंडित सुन्दरलाल शर्मा की ऐतिहासिक भूमिका का उल्लेख किया. डॉ. अग्रवाल ने कहा कि उस दौर में पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने एक साथ तीन बड़े कार्य किए. उन्होंने समाज में जन -जागरण के लिए खण्ड -काव्य 'दानलीला ' सहित 18 ग्रंथों की रचना की.राष्ट्रीय विद्यालय का संचालन किया. स्वदेशी आंदोलन, किसान आंदोलन, जंगल सत्याग्रह और नहर सत्याग्रह में भी पंडित सुन्दरलाल शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका थी. वे छत्तीसगढ़ में   अछूतोद्धार आंदोलन के प्रणेता थे. स्वतंत्रता आंदोलन में  गिरफ्तार होकर उन्हें जेल में भी रहना पड़ा.                     

                                                              

                                        



त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह को याद करते हुए इतिहासकार डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा कि ठाकुर साहब ने वर्ष 1919 में राजनांदगाँव में  लगभग 36 दिनों तक चले छत्तीसगढ़ के प्रथम मज़दूर आंदोलन का नेतृत्व किया. यह आंदोलन उनकी अगुवाई में सूती कपड़ा मिल के मज़दूरों ने किया था.डॉ. अग्रवाल ने कहा कि त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ के इस प्रथम मज़दूर आंदोलन के अग्रदूत और सहकारिता आंदोलन के भी पुरोधा थे.  छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के लिए रायपुर में पहला कॉलेज उन्हीं के प्रयासों से छत्तीसगढ़ कॉलेज के नाम से शुरु हुआ. इसके लिए ठाकुर साहब की अध्यक्षता में 1937 में छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसायटी का गठन किया गया था.

   विचार -गोष्ठी में अरविन्द मिश्रा ने पंडित सुन्दर लाल शर्मा के सार्वजनिक जीवन के अनेक अनछुए प्रसंगों का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने अपने खण्ड -काव्य 'दानलीला 'में तत्कालीन समाज में व्याप्त शोषण के खिलाफ़ जन -जागरण का संदेश दिया था. दूध -दही और खेतों में पैदा होने वाली उपज का उपभोग अकेले कंस द्वारा किए जाने का प्रतीकात्मक  विरोध इस खण्ड काव्य में किया गया है,  तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भी भारत की जनता का तरह -तरह से शोषण किया जा रहा था, जिसका प्रतीकात्मक विरोध इस खण्ड काव्य में प्रकट होता है.

                                                       


   स्वराज्य करुण ने कहा कि तीनों विभूतियों  की जीवन यात्रा किसी महाकाव्य से कम नहीं है. ठाकुर साहब तत्कालीन मध्य प्रांत और बरार की विधानसभा सभा में वर्ष 1952 में रायपुर से विधायक निर्वाचित होकर पहुँचे थे और प्रतिपक्ष के नेता भी बनाए गए थे. त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह तीन बार क्रमशः वर्ष 1936,वर्ष 1940 और वर्ष 1944 में रायपुर नगरपालिका परिषद के निर्वाचित अध्यक्ष रहे और शहर के विकास के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ठाकुर साहब पत्रकार भी थे. उन्होंने  रायपुर में वर्ष 1950 से 1952 तक राष्ट्रबंधु 'नामक अर्ध -साप्ताहिक समाचार पत्र का सम्पादन और प्रकाशन किया, लेकिन विधायक बनने और नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद अपनी व्यस्तता के कारण उन्हें इसका  प्रकाशन स्थगित करना पड़ा.सहकारिता आंदोलन में उनकी अग्रणी भूमिका को भी विचार -गोष्ठी में याद किया गया. 

घनश्याम सिंह गुप्त को याद करते हुए विचार -गोष्ठी में बताया गया कि गुप्त जी ने संविधान सभा के सदस्य के रूप में स्वतंत्र भारत के संविधान का हिन्दी अनुवाद तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. वे भारतीय संविधान के हिन्दी रूपांतरण के लिए बनी समिति के अध्यक्ष भी थे.

अशोक तिवारी ने कहा कि ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने वर्ष 1950 के  दौर में आसाम प्रांत में पीढ़ियों से निवास कर रहे प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को जमीन से बेदखल किए जाने की जानकारी मिलते ही तत्काल आसाम का दौरा किया और पचास दिनों तक वहाँ के गाँवों में घूम -घूम कर उनका दुःख -दर्द सुना और उनकी दिक्क़तों को दूर करने के लिए अपनी रिपोर्ट के साथ आसाम तथा तत्कालीन मध्य प्रांत और बरार की सरकारों के स्तर पर सक्रिय पहल की.

 राज्य निर्माण सेनानी गोवर्धन चंद्राकर ने कहा कि  आज़ादी के बाद देश में शिक्षा और संचार सुविधाओं का काफी विकास हुआ है लेकिन किसी न किसी रूप में सामाजिक -आर्थिक शोषण आज भी व्याप्त है. उच्च शिक्षा प्राप्त करके ऊँचे पदों पर पहुँचे अधिकांश लोग अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों से दूर हो गए हैं. गोवर्धन प्रसाद चंद्राकर ने कहा कि हमारी महान विभूतियों ने हमेशा अन्याय और शोषण के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करते हुए समाज को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया है. हमें उनके बताए रास्ते पर चलना होगा.विचार-गोष्ठी में उर्दू शायर सुखनवर हुसैन, छत्तीसगढ़ी गीतकार रामेश्वर शर्मा, रसिक बिहारी अवधिया सहित गोविन्द धनगर, संजीव साहू, डॉ. श्याम लाल साकार, परसराम तिवारी, प् शिवनारायण ताम्रकार,मिनेश चंद्राकर, रघुनंदन साहू, श्यामू राम सेन, गंगाराम साहू, आदर्श चंद्राकर, मुकेश टिकरिहा, हिमांशु चक्रवर्ती, आशाराम देवांगन, उमैर खान, डॉ. छगन लाल सोनवानी ऋतु महंत, रोहित चन्द्रवंशी और रामकुमार देवांगन  आदि उपस्थित थे.


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