अब कहाँ मिलते हैं ऐसे लोग ?
ऐतिहासिक संयोग : आज दो महान विभूतियों की जयंती ;
पंडित सुन्दर लाल शर्मा और त्याग मूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह को विनम्र नमन.
(आलेख- स्वराज करुण )
भारत माता के पवित्र आँचल को अनेक महान पुण्यात्माओं ने अपने जन्म और कर्म से धन्य किया है। लेकिन अब कहाँ मिलते हैं ऐसे लोग ,जिन्होंने सादगीपूर्ण और महान उद्देश्यों से परिपूर्ण अपने सार्वजनिक जीवन से देश और दुनिया के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है। देश और समाज के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की एक लम्बी सूची है।
आज 21 दिसम्बर को भारत के छत्तीसगढ़ प्रदेश की ऐसी दो महान विभूतियों को याद करने का दिन है। यह एक ऐतिहासिक संयोग है कि दोनों का जन्म आज ही के दिन हुआ था। यहाँ के सामाजिक ,सांस्कृतिक साहित्यिक और राजनीतिक इतिहास में उनकी शानदार भूमिकाओं को भी आज याद करने का दिन है । यह एक यादगार संयोग का दिन है .
पंडित सुन्दरलाल शर्मा और ठाकुर प्यारेलाल सिंह को उनकी जयंती पर विनम्र नमन करते हुए देश और समाज की बेहतरी के लिए उनके द्वारा किए गए कठिन संघर्षों को भी आज याद किया जाएगा। स्वतंत्रता संग्राम , अछूतोद्धार , किसानों और मज़दूरों के कल्याण से सम्बंधित कार्यो में छत्तीसगढ़ के दोनों महान सपूतों का ऐतिहासिक योगदान अतुलनीय और अविस्मरणीय है। दोनों की गरिमापूर्ण जीवन यात्रा में याद करने लायक अनेक महत्वपूर्ण प्रसंग हैं जिन्हें बहुत विस्तार से लिखा जा सकता है। इस आलेख में उनमें से कुछ प्रसंगों का उल्लेख किया गया है।
पंडित सुन्दरलाल शर्मा -ठाकुर प्यारेलाल सिंह
पंडित सुन्दरलाल शर्मा
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पंडित सुन्दरलाल शर्मा का जन्म तीर्थ नगरी राजिम में 21 दिसम्बर 1881 को हुआ था। उनका निधन 28 दिसम्बर 1940 को हुआ। राजिम के पास चमसूर (चन्द्रसूर )उनका पैतृक गाँव है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजिम में हुई। घर पर ही उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत ,बांग्ला ,ओड़िया , मराठी ,अंग्रेजी और उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान हासिल किया।। वह छत्तीसगढ़ी और हिन्दी के उच्च कोटि के साहित्यकार थे। किशोरावस्था से ही उनमें साहित्यिक रूझान विकसित होने लगा था। वर्ष 1898 में उनकी रचनाएं 'रसिक मित्र ' नामक पत्रिका में छपने लगी थी। उन्होंने पंडित विश्वनाथ दुबे के साथ मिलकर राजिम में 'कवि समाज ' के नाम से साहित्यिक संस्था का भी गठन किया था।
वर्ष 1906 में प्रकाशित शर्माजी की कृति दानलीला ' को छत्तीसगढ़ी भाषा का पहला प्रबंध -काव्य माना जाता है। इसका दूसरा संस्करण वर्ष 1915 में प्रकाशित हुआ था। कवि होने के अलावा वह अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की थी। वर्ष 1904 में उनका लिखा नाटक ' भक्त प्रह्लाद' भी काफी लोकप्रिय हुआ था। उन्होंने राजिम में वर्ष 1904 में सार्वजनिक वाचनालय की भी स्थापना की थी। राजिम से उन्होंने 'श्री राजीव प्रेम पीयूष ' नामक पत्रिका की भी शुरुआत की थी ,तब उनकी आयु मात्र 17 वर्ष थी। अपने निधन से कुछ पहले वर्ष 1940 में उन्होंने 'दुलरुआ ' नामक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया था।पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने तत्कालीन समाज में अछूत समझी जाने वाली जातियों के लोगों में स्वाभिमान जगाने के साथ -साथ राजिम में मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक वर्ष की जेल हुई तो जेल से ही 'श्रीकृष्ण जन्म स्थान ' शीर्षक से हस्तलिखित पत्रिका निकालते रहे। वर्तमान धमतरी जिले के कण्डेल में वर्ष 1920 में बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में किसानों का नहर सत्याग्रह हुआ।,जिसमें शामिल होने के लिए सत्याग्रहियों ने महात्मा गाँधी को आमंत्रित किया।
किसानों की ओर से पंडित सुन्दरलाल शर्मा कोलकाता से 20 दिसम्बर 1920 को महात्मा जी को रायपुर लेकर आए। यह महात्मा गाँधी की पहली छत्तीसगढ़ यात्रा थी। नगरी -सिहावा में हुए आदिवासियों के जंगल सत्याग्रह में भी पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने सक्रिय सहयोग दिया। इस आंदोलन में वह गिरफ्तार भी हुए।
भारत सरकार ने वर्ष 1990 में शर्माजी के सम्मान में विशेष आवरण और डाक टिकट भी जारी किया। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद उनके नाम पर बिलासपुर में ओपन यूनिवर्सिटी की स्थापना की गयी। उनके नाम पर साहित्य के क्षेत्र में राज्य अलंकरण भी घोषित किया गया ,जो हर साल एक चयनित साहित्यकार को राज्योत्सव के अवसर पर प्रदान किया जाता है।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह
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त्यागमूर्ति के नाम से लोकप्रिय समाजवादी चिन्तक और श्रमिक नेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह तीन बार ,क्रमशः वर्ष 1936 , 1940 और 1944 में रायपुर नगरपालिका परिषद के निर्वाचित अध्यक्ष रहे। । रायपुर से ही उन्होंने चार सितम्बर 1950 को अर्ध साप्ताहिक समाचार पत्र 'राष्ट्रबन्धु ' का सम्पादन और प्रकाशन शुरू किया था। उनका जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनांदगांव के पास ग्राम दैहान में हुआ था। विनोबा जी के सर्वोदय आंदोलन में भूदान यज्ञ की पदयात्रा के दौरान ठाकुर साहब का निधन जबलपुर में 20 अक्टूबर 1954 को हुआ। ठाकुर साहब की मिडिल स्कूल तक पढ़ाई राजनांदगांव में हुई। उन्होंने रायपुर के शासकीय हाई स्कूल (वर्तमान में जे.एन. पाण्डेय शासकीय बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक शाला ) से मेट्रिक उत्तीर्ण होने के बाद हिस्लाप कॉलेज नागपुर और जबलपुर से बी.ए. और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत की शिक्षा प्राप्त की थी।
उनके निधन के लगभग 9 वर्ष बाद विनोबा जी ने रायपुर प्रवास के दौरान ठाकुर साहब की जयंती पर 21 दिसम्बर 1963 को छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ के कार्यालय के सामने उनकी प्रतिमा का अनावरण किया था। यह प्रतिमा त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह स्मारक -समिति द्वारा स्थापित की गयी थी। उल्लेखनीय है कि ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन के भी प्रमुख नेता थे । बुनकरों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बुनकर सहकारी संघ का गठन 5 जुलाई 1945 को उनके द्वारा किया गया था।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन के विस्तार के लिए और भी कई सहकारी समितियों का गठन किया । इनमें उपभोक्ता सहकारी संघ , मध्यप्रदेश पीतल धातु निर्माता सहकारी संघ ,स्वर्णकार सहकारी संघ ,विश्वकर्मा औद्योगिक सहकारी संघ आदि उल्लेखनीय हैं। श्रमिक नेता के रूप में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को आज भी याद किया जाता है।
*छत्तीसगढ़ कॉलेज की स्थापना -ठाकुर प्यारेलाल सिंह की अध्यक्षता में वर्ष 1937 में छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसायटी का गठन हुआ। सोसायटी द्वारा उन्हीं दिनों रायपुर में छत्तीसगढ़ कॉलेज की स्थापना की गयी ,जो इस अंचल का पहला कॉलेज था। जे.योगनन्दम इस कॉलेज के प्रथम प्राचार्य थे। ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने वर्ष 1920 में राजनांदगांव में राष्ट्रीय विद्यालय की भी स्थापना की थी।
उन्होंने वर्ष 1916 में राजनांदगांव स्थित बी.एन. सी.मिल (बंगाल -नागपुर कॉटन मिल ) में श्रमिकों की 37 दिनों की हड़ताल का नेतृत्व किया था। यह सबसे लम्बे समय तक चली भारत की पहली औद्योगिक हड़ताल थी । काम के घंटों में कमी और वेतन वृद्धि की मांग को लेकर यह आंदोलन हुआ था,जो काफी कामयाब रहा। व्ही. व्ही. गिरि जो आज़ादी के बाद भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए, स्वयं इस आंदोलन में श्रमिकों का मनोबल बढ़ाने राजनांदगांव आए थे. बाद में ठाकुर साहब ने वर्ष 1924 और 1936 में भी राजनांदगांव में श्रमिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। वह वर्ष 1917 से 1936 तक ,19 वर्ष राजनांदगांव के मिल मजदूर संघ के सर्वमान्य अध्यक्ष रहे। वर्ष 1936 में ही वह मध्य प्रान्त और बरार (सी.पी.एंड बरार) की विधान सभा के लिए रायपुर से विधायक निर्वाचित हुए।उन दिनों मध्य प्रान्त की राजधानी नागपुर में हुआ करती थी। कुछ दिनों तक वह मध्य प्रांत की सरकार के शिक्षा मंत्री भी रहे।
आसाम के चाय बागानों में कार्यरत छत्तीसगढ़ के प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं के बारे में ख़बर मिलते ही उन्होंने वर्ष 1950 में वहाँ जाकर 50 दिनों तक गाँवों का सघन दौरा किया। कई गाँवों में पैदल घूमे। वहाँ से लौटकर तत्कालीन सी.पी.एंड बरार (सेंट्रल प्रॉविंस एंड बरार ) शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी और श्रमिकों को विस्थापित होने से बचाया।।
स्वतंत्र भारत में लोकसभा और विधान सभाओं का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। ठाकुर प्यारेलाल सिंह कृषक मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर रायपुर से भारी बहुमत से विधान सभा के सदस्य चुने गए। उन्हें विधान सभा का नेता प्रतिपक्ष भी बनाया गया। स्वतंत्रता आंदोलन में ठाकुर प्यारेलाल सिंह का ऐतिहासिक योगदान रहा। उन्होंने 26 जनवरी 1932 को रायपुर के गांधी चौक मैदान में पंडित रविशंकर शुक्ल की अध्यक्षता में आयोजित आयोजित आम सभा में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ उत्तेजक भाषण दिया ।इस पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ।उन्हें जुर्माने का साथ दो साल की सजा हुई। स्वाभिमानी ठाकुर साहब ने जुर्माना नहीं दिया । इस पर सरकार ने उनकी चल सम्पत्ति कुर्क कर ली। उनकी वकालत का लाइसेंस भी जब्त कर लिया गया। इसे उन्होंने कभी वापस नहीं लिया।
वर्ष 1930 में भूमि बंदोबस्त को लेकर किसानों में अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ गुस्सा फूट पड़ा था। तब ठाकुर साहब ने गाँवों का दौरा किया और किसानों को एक जुट कर 'पट्टा मत लो -लगान मत दो ' आंदोलन चलाया। उन्होंने वर्ष 1930 -31 में सिहावा के प्रसिद्ध जंगल सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया। गाँधीजी के आव्हान पर वर्ष 1942 में ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ देशव्यापी 'भारत छोड़ो आंदोलन ' में भी छत्तीसगढ़ में ठाकुर साहब की सक्रिय भूमिका थी। इस आंदोलन में उनके दो बेटे ठाकुर रामकृष्ण सिंह और ठाकुर सच्चिदानंद सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार का लिया। ठाकुर प्यारेलाल सिंह भूमिगत रहकर आंदोलन का संचालन करते रहे।
ठाकुर साहब उन दिनों रायपुर के हांडी पारा स्थित राजनांदगांव बाड़ा में रहते थे। उनका मकान भूमिगत आंदोलनकारियों की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। वहीं से आज़ादी के आंदोलन के प्रचार प्रसार के लिए ठाकुर साहब द्वारा हस्तलिखित सायक्लोस्टाइल्ड पर्चे निकाले जाते थे।उनके तीसरे पुत्र हरिनारायण सिंह ठाकुर (हरि ठाकुर )भी स्वतंत्रता के इस आंदोलन में सक्रिय थे । उन्होंने भूमिगत रहकर आंदोलन को अपना भरपूर सहयोग दिया।
छत्तीसगढ़ सरकार ने ठाकुर प्यारेलाल सिंह के सम्मान में सहकारिता के क्षेत्र में राज्य अलंकरण की स्थापना की है ,जो हर साल राज्योत्सव के मौके पर चयनित व्यक्ति अथवा संस्था को प्रदान किया जाता है। राजधानी रायपुर के पास ग्राम निमोरा स्थित प्रदेश सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास संस्थान का नामकरण भी ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नाम पर किया गया है।
आलेख -स्वराज्य करुण

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