Sunday, December 7, 2025

(स्मृति शेष ) तपस्वी साहित्यकार और पत्रकार पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी / आलेख -स्वराज्य करुण

 तपस्वी साहित्यकार और पत्रकार पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी 

  ( आलेख : स्वराज्य करुण )

पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित पण्डित श्याम लाल चतुर्वेदी  ने  लगभग 92 साल की अपनी जीवन -यात्रा में 77साल साहित्य को और 70 साल पत्रकारिता को समर्पित कर दिए । चतुर्वेदी जी ने साहित्य और पत्रकारिता को एक तपस्वी की तरह जिया ।चतुर्वेदी जी छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष भी रहे ।छत्तीसगढ़ी और हिंदी ,दोनों ही भाषाओं में उन्होंने ख़ूब लिखा। 

वे  एक ऐसे साहित्यकार और पत्रकार थे, जिनके व्यक्तित्व में  छत्तीसगढ़ के सहज -सरल किसान की छवि झलकती थी ,वे आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन किसानों और मज़दूरों की भावनाओं से जुड़ी अपनी कविताओं और ग्राम्य जीवन से जुड़ी अपनी कहानियों में हमेशा हमारे साथ हैं । छत्तीसगढ़ी एक मीठी भाषा है,जिसकी मधुरता उनकी वाणी में हमेशा महसूस की जा सकती थी । छत्तीसगढ़ का बिलासपुर उनका गृहनगर था, जहाँ नगर निगम ने एक प्रमुख रास्ते का नामकरण उनके नाम पर किया है, जो साहित्यकार और पत्रकार के रूप में पण्डित जी की लोकप्रियता का प्रतीक है । 

   हमें अपने उन पूर्वज साहित्यकारों और पत्रकारों को उनके जन्म दिवस या उनकी पुण्यतिथि पर याद करके उनके प्रति नतमस्तक होना  चाहिए , जिनका हृदय  आजीवन  देश ,दुनिया और मानव समाज की भलाई के लिए धड़कता रहा, जिन्होंने कलम को औजार बनाकर समाज को अपनी रचनाओं के अनमोल रत्नों से समृद्ध किया ,जिन्होंने साहित्य और पत्रकारिता को तपस्वियों की तरह जिया।   चतुर्वेदी जी की सातवीं पुण्यतिथि पर 7 दिसम्बर 2025 को उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी जीवन यात्रा के अनेक महत्वपूर्ण प्रसंग याद आ रहे हैं। सहजता ,सरलता और सौम्यता  , कृषक पृष्ठभूमि के साहित्यकार पण्डित चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व की  सबसे बड़ी पहचान थी ।  

छत्तीसगढ़ ही नहीं ,बल्कि तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश के साहित्यकारों और पत्रकारों के बीच भी वे काफी लोकप्रिय थे।छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का अध्यक्ष मनोनीत किया था ।  वे  इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष थे । एक  समर्पित साहित्य साधक और छत्तीसगढ़ी भाषा के कवि के रूप में पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी को  राज्य के सभी क्षेत्रों में भरपूर लोकप्रियता मिली । 


                                    

भारत सरकार द्वारा उन्हें 2 अप्रैल 2018 को नई दिल्ली में पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया गया था।  राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में तत्कालीन  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें देश के इस प्रतिष्ठित अलंकरण से नवाज़ा था ।  पण्डित चतुर्वेदी जी  को साहित्य के क्षेत्र में उनके सुदीर्घ और महत्वपूर्ण योगदान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने वर्ष 2004 में पण्डित सुन्दरलाल शर्मा राज्य अलंकरण से सम्मानित किया था। राज्योत्सव 2004 के अवसर पर मुख्य अतिथि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के हाथों  यह सम्मान पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी  और स्वर्गीय लाला जगदलपुरी को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था।      

कोटमी से शुरु हुआ ज़िन्दगी का सफ़र

 पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन ,2 फरवरी 1926 को छत्तीसगढ़ के ग्राम कोटमी (वर्तमान जिला -जांजगीर ) में हुआ था। उनका देहावसान 7 दिसम्बर 2018 को अपने  गृहनगर बिलासपुर में हुआ। 

 पाँचवीं से एम. ए. तक  प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण हुए 

  वह 8 वर्ष की उम्र में चौथी कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए ,लेकिन कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों में आगे की पढ़ाई रुक गयी ।इसके बावज़ूद उन्होंने पाँचवीं कक्षा से लेकर एम.ए. तक की प्रत्येक परीक्षा में  स्वाध्यायी छात्र के रूप में उत्तीर्ण  होकर एक नया कीर्तिमान बनाया। वर्ष 1941 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में अकलतरा के मिडिल स्कूल से सर्वाधिक अंकों के साथ  पाँचवीं उत्तीर्ण हुए। प्राइवेट छात्र के रूप में ही वर्ष 1956 में बनारस से मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की ।इस परीक्षा में उन्होंने  संगीत विषय में प्रावीण्यता  हासिल की। पण्डित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से वर्ष 1968 में बी.ए. और वर्ष 1976 में हिन्दी साहित्य में  एम. ए. पास हुए । स्नातक और स्नातकोत्तर की दोनों डिग्रियाँ भी चतुर्वेदी जी ने स्वाध्यायी छात्र के रूप में हासिल की ।  बी.ए. की परीक्षा देते समय वह लगभग 42 वर्ष के थे ,जबकि  एम.ए.की परीक्षा के समय उनकी उम्र 50 वर्ष के आस-पास थी ।   

    एम. ए. की परीक्षा में 

     अपनी ही कविताओं पर आए   

    सवालों का लिखा जवाब

         चतुर्वेदी जी  एम.ए.की परीक्षा का अपना एक दिलचस्प अनुभव कभी -कभार कोई प्रसंग आने पर मुझे  अक्सर सुनाया करते थे । हुआ यह कि  इस परीक्षा के लिए स्वैच्छिक विषय के अंतर्गत छत्तीसगढ़ी के पाठ्यक्रम में स्वयं चतुर्वेदी जी की कुछ कविताएँ भी शामिल थीं और परीक्षा  के प्रश्नपत्र में उनकी इन रचनाओं से जुड़े कुछ सवाल भी किए गए थे। परीक्षार्थी के रूप में  अपनी कविताओं के बारे में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखना उनके लिए एक रोचक अनुभव रहा। देश के किसी भी साहित्यकार के जीवन में ऐसा संयोग बहुत कम देखने में आता है। 

  *वर्ष 1941 से शुरु हुआ था साहित्य सृजन*

   चतुर्वेदी जी का साहित्य सृजन वर्ष 1941 से शुरू हुआ था। वर्ष 1949 में पहली बार आकाशवाणी के नागपुर केंद्र से उनकी छत्तीसगढ़ी कविताओं का प्रसारण हुआ।वर्ष 1963 में जब रायपुर में आकाशवाणी केन्द्र की स्थापना हुई , उनकी रचनाएँ वहाँ से भी नियमित अंतराल पर प्रसारित होने लगी । रायपुर के अलावा भोपाल और बिलासपुर के आकाशवाणी केन्द्रों  से और दूरदर्शन के रायपुर और भोपाल केन्द्रों से  भी समय -समय पर उनके काव्य पाठ  का प्रसारण हुआ। दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र ने  उनके छत्तीसगढ़ी  कहानी -पाठ का प्रसारण किया । 

           प्रकाशित पुस्तकें 

 पण्डित श्याम लाल चतुर्वेदी जी की प्रकाशित पुस्तकों में छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह 'भोलवा भोलाराम बनिस ' और कविता संग्रह 'पर्रा भर लाई ' शामिल है । कविता -संग्रह 'पर्रा भर लाई 'में उनकी वर्ष 1949 से 1965 के बीच लिखी गयी छत्तीसगढ़ी कविताएँ शामिल हैं। इसमें उन्होंने 'बेटी के विदा ','आइस जब बादर करिया', 'धरती रानी हरियागे' सहित अपनी 20 लोकप्रियता रचनाओं को शामिल किया है। भारतेन्दु साहित्य समिति ,बिलासपुर ने अपनी स्वर्ण जयंती के अवसर पर वर्ष 1985 में इस कविता -संग्रह का पहला संस्करण प्रकाशित किया था। समिति ने वर्ष 2000 में तीसरा संस्करण भी प्रकाशित किया।  

  पत्रकारिता में 70 वर्षों का योगदान

  पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका लगभग 70 वर्षों का सुदीर्घ योगदान रहा। अपने संस्मरणों को साझा करते हुए वह अक्सर बताया करते थे - वर्ष 1955 तक महज़ पांचवीं पास थे ,लेकिन पत्रकार के रूप में भी पहचाने जाते थे । वर्ष 1948 से ही वह पत्रकारिता में सक्रिय हो गए थे । सबसे पहले 'कर्मवीर ' और  साप्ताहिक 'महाकोशल' के संवाददाता रहे।  बाद के वर्षों में उन्होंने अपने गृहनगर बिलासपुर में नागपुर के दैनिक नवभारत ,लोकमत और युगधर्म , कलकत्ता के दैनिक नवभारत टाइम्स ,दिल्ली के दैनिक जनसत्ता और इन्दौर के दैनिक नईदुनिया  के   पत्रकार के रूप में भी लम्बे समय तक अपनी सेवाएँ दी। ग्रामीण पत्रकारिता में उनकी विशेष दिलचस्पी थी ।उन्होंने  वर्ष 1952 से लगातार कई वर्षों तक राष्ट्रीय समाचार एजेंसी ' हिन्दुस्थान समाचार ' के बिलासपुर जिला प्रतिनिधि  के रूप में भी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना योगदान दिया  । 

ग्राम पंचायत के सरपंच भी रहे                         

    पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी वर्ष 1967 से 1972 तक अपनी ग्राम पंचायत कोटमी सुनार के निर्विरोध निर्वाचित सरपंच भी रहे । उन्होंने सरपंच के रूप में गाँव में मद्य निषेध ,स्वच्छता ,साक्षरता और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ करने का प्रयास किया । उनके नेतृत्व में ग्राम पंचायत कोटमी सुनार को   तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने महात्मा गांधी जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में बिलासपुर जिले की सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत का पुरस्कार से सम्मानित किया था । चतुर्वेदी जी छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष भी रहे। वे अपने गृहनगर बिलासपुर की भारतेन्दु साहित्य समिति सहित अनेक साहित्यिक ,सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए थे

  मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूँ कि  उनके जैसे साहित्य मनीषी के साथ  मेरा भी लगभग तीन  दशकों का लम्बा सम्पर्क रहा । इस आलेख में उनके साथ बिलासपुर में उनके घर 22 नवम्बर 2015 की अपनी मुलाकात की एक तस्वीर भी मैं साझा कर रहा हूँ । सरकारी नौकरी के दौरान जहाँ कहीं भी मेरी पदस्थापना रही , वहाँ लगभग हर साल किसी न  किसी कार्यक्रम में  एक -दो बार उनका आगमन होता ही रहता था। रायगढ़ में महाराजा चक्रधर सिंह की स्मृति में होने वाले नृत्य और संगीत के अखिल भारतीय आयोजन चक्रधर समारोह में भी वह हर साल आते ही थे । सरकारी गेस्ट हाउस को छोड़कर उन्हें मेरे घर पर ही रुकना अच्छा लगता था । वे कहते थे - "मुझे तुम्हारे यहाँ घर जैसी आत्मीयता मिलती है। किसी सरकारी रेस्ट हाउस में ऐसा अपनत्व कहाँ?"मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे अपने घर में   उनके आतिथ्य सत्कार का अवसर मिलता था ।   मेरे दोनों बच्चों के वह प्रिय 'दादाजी' हुआ करते थे । ठण्ड के मौसम में उनके आगमन पर मेरी पत्नी सुप्रिया उनके नहाने के लिए मिट्टी के चूल्हे को फूँकनी से सुलगाकर पानी गरम करके देती थी  वह उन्हें अपनी बेटी जैसा स्नेह और आशीर्वाद  दिया करते थे । मेरा पुत्र विक्की तीन - चार साल का था । वह तखत पर लेटे अपने दादाजी के पैर दबाया करता था ।

     चतुर्वेदी जी अब हमारे बीच नहीं हैं ,लेकिन जब कभी और जहाँ कहीं भी हिन्दी और छत्तीसगढ़ी साहित्य और आंचलिक  पत्रकारिता पर कोई औपचारिक या अनौपचारिक चर्चा होती है या कोई आयोजन होता है ,वहाँ मौज़ूद  हर व्यक्ति की यादों में  वह  अनायास चले आते हैं।

   आलेख  - स्वराज्य करुण 

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