Wednesday, December 3, 2025

(आलेख ) वे आज भी मौज़ूद हैं अपनी रचनाओं में /लेखक -स्वराज्य करुण


वे आज भी मौज़ूद हैं अपनी रचनाओं में 

(आलेख -स्वराज्य करुण )

छत्तीसगढ़ के सामाजिक ,सांस्कृतिक  साहित्यिक और राजनीतिक  इतिहास पर लोग आज  जो कुछ भी लिख रहे हैं ,उसकी बुनियाद संदर्भ सामग्री के विशाल ख़ज़ाने के रूप में , हमारे पूर्वज कई  विद्वान पहले ही तैयार कर गए हैं।   हरि ठाकुर भी उन्हीं  विद्वानों में से थे ।    आज 3 दिसम्बर को उनकी पुण्यतिथि है। उन्हें विनम्र नमन । इस भौतिक संसार से उन्हें गए हुए, 24 साल हो चुके हैं , लेकिन लगता है कि वे आज भी हमारे बीच मौज़ूद हैं । ख़ामोश रह कर देख रहे हैं कि उनके इस देश में, उनके इस प्रदेश में उनके जाने के बाद क्या -क्या हो रहा है! वैसे भी कवि, लेखक और कलाकार इस भौतिक जगत से जाने के बाद भी अपनी रचनाओं में हमेशा जीवित रहते हैं ।स्वर्गीय हरि ठाकुर भी अपनी रचनाओं में हमारे बीच आज भी मौज़ूद हैं। उनकी कविताओं में, उनके लेखों में उनके दिल की धड़कनों को आज भी हम महसूस कर सकते हैं । उनकी साहित्यिक परम्परा को उनके सुपुत्र आशीष सिंह अपने लेखों और अपनी किताबों के माध्यम से लगातार आगे बढ़ा रहे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश दो महीने पहले 7सितम्बर 2025 को उनका भी निधन हो गया । 


                                               

            



व्यक्ति एक, लेकिन भूमिकाएँ अनेक 

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   व्यक्ति एक ,लेकिन भूमिकाएँ अनेक - स्वर्गीय हरि ठाकुर के संदर्भ में यह बात बिल्कुल सटीक  बैठती है । सोच रहा हूँ -आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें किस रूप में याद करें ?हरि ठाकुर क्या -क्या नहीं थे  ?छत्तीसगढ़ी और हिन्दी के विद्वान साहित्यकार तो वे थे ही, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वकील,पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के लिए बने सर्वदलीय मंच के संयोजक के रूप में भी उनकी यादगार भूमिकाएँ थीं. एक व्यक्ति अपने जीवन में तमाम तरह के संघर्षों के बीच  कितनी -कितनी भूमिकाओं में देश और समाज की सेवा कर सकता है ,यह देखना हो तो हरि ठाकुर की ज़िन्दगी के सफ़र को देखें ।

         

कविताओं में माटी -महतारी की 

मुक्ति के लिए बेचैन अभिव्यक्ति

   हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के वह   एक ऐसे कवि थे  ,जिनकी कविताओं में और जिनके गीतों में  अन्याय और शोषण की जंजीरों से माटी -महतारी  की मुक्ति की बेचैन अभिव्यक्ति मिलती है । वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , इतिहासकार , पत्रकार , लेखक, वकील ,  सामाजिक कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के अग्रणी नेता भी थे । छत्तीसगढ़ के इतिहास और यहाँ की कला -संस्कृति , बोली और भाषा का उन्होंने गहन अध्ययन करते हुए कई गंभीर आलेख भी लिखे ।  छत्तीसगढ़ में  वर्ष 1857 के  अमर शहीद वीर नारायण सिंह सहित यहाँ की अनेक  महान विभूतियों की प्रेरणादायी जीवन गाथा उनकी लेखनी से जनता के सामने आयी ।  उनका जन्म 16 अगस्त 1927 को रायपुर में हुआ था ।निधन 3 दिसम्बर 2001 को नई दिल्ली में हुआ।उनके पिता स्वर्गीय प्यारेलाल सिंह ठाकुर   त्यागमूर्ति के नाम से लोकप्रिय एक महान श्रमिक नेता ,आज़ादी के आंदोलन के महान योद्धा , सहकारिता आंदोलन के कर्मठ नेता , पत्रकार , विधायक और रायपुर नगरपालिका के तीन बार निर्वाचित अध्यक्ष रह चुके थे ।  

        पिता से मिली देश के लिए 

         कुछ कर गुजरने की प्रेरणा 

           स्वर्गीय हरि नारायण सिंह ठाकुर (हरि ठाकुर ) को देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा अपने क्रांतिकारी पिता जी से विरासत में मिली थी।   अपने इस आलेख के साथ मैं स्वर्गीय डॉ. राजेन्द्र सोनी द्वारा सम्पादित साहित्यिक पत्रिका 'पहचान -यात्रा ' के   जून 2002 के 'हरि ठाकुर विशेषांक 'में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर साहित्यकारों और पत्रकारों के आलेख शामिल हैं ।  इसी विशेषांक में छत्तीसगढ़ी भाषा मे  हरि ठाकुर द्वारा रचित दो नाटक भी प्रकाशित किए गए हैं ।इनमें से एक नाटक का  शीर्षक है ' पर बुधिया ' ।दूसरा नाटक स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में छत्तीसगढ़ में हुए  'तमोरा सत्याग्रह'  पर आधारित है । 

         उनके देहावसान  के अगले  दिन 4 दिसम्बर 2001 को राजधानी रायपुर के मारवाड़ी श्मशान घाट में सैकड़ों लोगों ने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अंतिम बिदाई दी । तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी सहित विधान सभा के कई सदस्य भी  उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए ।


        विधानसभा में श्रद्धांजलि -शोक प्रस्ताव 

  हरि ठाकुर  विधायक या सांसद नहीं थे ,लेकिन देश और प्रदेश के लिए उनके अतुलनीय  साहित्यिक और सामाजिक योगदान को देखते हुए उस दिन छत्तीसगढ़ विधानसभा ने अपने शीतकालीन सत्र की बैठक में  उन्हें विशेष रूप से श्रद्धांजलि अर्पित की और शोक प्रस्ताव पारित किया। उनके निधन का  विशेष रूप से उल्लेख करते हुए  सदन में पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों ने उन्हें श्रद्धाजंलि दी  तब के विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय  राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने हरि ठाकुर के निधन का उल्लेख करते हुए उनका जीवन परिचय प्रस्तुत किया । तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष  नन्द कुमार साय समेत अनेक सदस्यों ने स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर की  संघर्षपूर्ण और गौरवपूर्ण जीवन यात्रा पर प्रकाश डाला । उन सभी के वक्तव्य भी 'पहचान यात्रा' के  इस विशेषांक में संकलित हैं। 

      एक युग का पटाक्षेप 

  अजीत जोगी ने सदन में अपने शोक उदगार कुछ इन शब्दों में व्यक्त किए थे -  "माननीय अध्यक्ष महोदय , आज प्रातः 10 बजे जब कंचन की काया को चंदन की चिता पर लिटाकर अग्नि दी गयी ,तो उस चिता के सामने खड़ा मैं स्वर्गीय हरि ठाकुर को प्रणाम करते हुए यह याद कर रहा था  कि उनके रूप में मानो एक युग का अंत हो गया  , पटाक्षेप हो गया ।एक ऐसे छत्तीसगढ़ के सपूत को हमने खोया ,जो एक साथ न जाने क्या -क्या था ? कवि था ,साहित्यकार था ,इतिहासकार था और छत्तीसगढ़ के संदर्भ में ,छत्तीसगढ़ के  इतिहास के संदर्भ में ,छत्तीसगढ़ के गौरवशाली रत्नों के संदर्भ में एक चलते फिरते ग्रन्थ थे । लिविंग इनसाइक्लोपीडिया थे ,यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी ।...श्री हरि ठाकुर ने छत्तीसगढ़ की अस्मिता से हम  छत्तीसगढ़ियों को अवगत कराया । मेरा अनेक संदर्भो में उनके साथ सम्पर्क रहा ,सानिध्य रहा ।  मुझे याद आ रहा है एक दिन मैंने दुःखी होकर उनसे पूछा था -" छत्तीसगढ़ के इतने आंदोलन चलते हैं ।आप सबमें शामिल हो जाते हैं । आप वास्तव में हैं किसके साथ ? उन्होंने जवाब दिया - " मैं तो छत्तीसगढ़ राज्य बनाने वाले के साथ हूँ। कोई भी आंदोलन चलाएगा ...हरि ठाकुर उसके साथ रहेगा,तब तक साथ रहेगा ,जब तक छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बन जाता ।"

छत्तीसगढ़ी भाषा का प्राचीन नाम 

कोसली या महाकोसली?

        साहित्यिक पत्रिका 'पहचान यात्रा ' के इस विशेषांक में  छत्तीसगढ़ी भाषा के क्रमिक विकाश पर भी स्वर्गीय श्री  हरि ठाकुर का एक आलेख शामिल है ,जिसका शीर्षक है  'छत्तीसगढ़ी का प्राचीन नाम कोसली या महाकोसली ?' इस विषय पर उनका विद्वतापूर्ण विश्लेषण उनके इस आलेख में मिलता है।

        विशाल संदर्भ ग्रंथ 

      'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा' के   रचनाकार 

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उनके निधन के बाद रायपुर में गठित हरि ठाकुर स्मारक संस्थान ने   छत्तीसगढ़ के इतिहास और राज्य की संस्कृति तथा महान विभूतियों से जुड़े उनके विभिन्न आलेखों का एक वृहद संकलन 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ' शीर्षक से प्रकाशित किया । यह विशाल संदर्भ ग्रंथ  उनके जन्म दिन 16 अगस्त 2003 को प्रकाशित हुआ । ग्रंथ  का सम्पादन डॉ. विष्णुसिंह ठाकुर, डॉ. देवीप्रसाद वर्मा 'बच्चू जाजगीरी ' और स्वर्गीय हरि ठाकुर के सुपुत्र आशीष सिंह ने किया है ।

         असहयोग आंदोलन में भी योगदान 

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     हरि ठाकुर अपने विद्यार्थी जीवन में सन 1942 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गांधीजी के आव्हान पर असहयोग आन्दोलन में भी शामिल हुए । तब उनकी उम्र महज 15 वर्ष थी।। इस आंदोलन में उनके दोनों भाई जेल में थे । उन दिनों हरि ठाकुर रायपुर के गवर्नमेंट स्कूल के छात्र थे । स्कूल में झण्डा फहराने के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था,हालांकि शाम को छोड़ दिए गए ,लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी सक्रियता बनी रही  वह छत्तीसगढ़ कॉलेज रायपुर में पढ़ाई के दौरान वर्ष 1950 में छात्रसंघ के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए थे ।इसी कॉलेज से उन्होंने कला और विधि स्नातक की उपाधियाँ प्राप्त की । वर्ष 1956 से 1966 तक उन्होंने रायपुर में वकालत की ।

  गोवा मुक्ति आंदोलन में भी हुए शामिल 

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       देश की आज़ादी के बाद वर्ष 1955 में उन्होंने पुर्तगाली शासन के विरुद्ध गोवा मुक्ति आन्दोलन में भी  हिस्सा लिया .इसके पहले वह  विनोबाजी के सर्वोदय और भूदान आन्दोलन से जुड़े और 1954  में  उन्होंने नागपुर से  प्रकाशित भूदान आन्दोलन की पत्रिका '  साम्य  योग ' का सम्पादन किया । वर्ष 1960  में वह छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के  अध्यक्ष चुने गए । इसके पहले वर्ष 1956 में वह डॉ. खूबचन्द बघेल द्वारा राजनांदगांव में आयोजित छत्तीसगढ़ी महासभा की  बैठक में शामिल हुए ,जहाँ उन्हें इस संगठन का संयुक्त सचिव बनाया गया ।

           साप्ताहिक 'राष्ट्रबन्धु ' का दायित्व 

    रायपुर में उन्होंने वर्ष 1966 में अपने  पिताजी के अर्ध साप्ताहिक समाचार पत्र 'राष्ट्रबन्धु' के पुनः प्रकाशन और सम्पादन का दायित्व संभाला ।नब्बे के दशक में वह  छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आन्दोलन के लिए सर्वदलीय मंच के  संयोजक बनाए गए ।एक नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य बना ,लेकिन अफ़सोस कि वह अपने सपनों के छत्तीसगढ़ को एक राज्य के रूप में विकसित होते ज्यादा समय तक नहीं देख पाए और राज्य बनने के सिर्फ लगभग तेरह  महीने  में 3 दिसम्बर  2001 को उनका देहावसान हो गया। 

        पुरानी -नयी दोनों पीढ़ियों में रहे लोकप्रिय

        स्वर्गीय हरि ठाकुर  छत्तीसगढ़ की पुरानी और नयी ,दोनों ही पीढ़ियों के बीच सामान रूप से लोकप्रिय साहित्यकार थे वर्ष 1995 में उनकी प्रेरणा से रायपुर में नये-पुराने लेखकों और कवियों ने मिलकर साहित्यिक संस्था 'सृजन सम्मान ' का गठन किया . उन्हें इस संस्था का अध्यक्ष बनाया गया था ।

     छत्तीसगढ़ी फ़िल्म 'घर -द्वार ' के गीतकार 

 वर्ष 1970 -72  में बनी दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म 'घर-द्वार ' में लिखे उनके गीतों को  अपार लोकप्रियता मिली .इनमें से  मोहम्मद रफ़ी की दिलकश आवाज़ में  एक गीत ' गोंदा फुलगे मोरे राजा ' तो आज भी कई लोगों की जुबान पर है ।

           कई कविता संग्रह और शोध ग्रंथ 

         हरि ठाकुर के  हिन्दी  कविता संग्रहों में 'लोहे का नगर ' और '  नये विश्वास के बादल ' छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रहों में 'सुरता के चन्दन '   हिन्दी शोध-ग्रन्थों  में 'छत्तीसगढ़  राज्य का प्रारंभिक  इतिहास' ,  'उत्तर कोसल बनाम दक्षिण कोसल' विशेष रूप  से उल्लेखनीय हैं ।उन्होंने   अपनी  कविताओं  में हमेशा आम जनता के दुःख-दर्द  को अभिव्यक्ति दी । उन्होंने गीत विधा के साथ -साथ अतुकांत कविताएँ भी लिखीं । अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने  देश की  सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों पर तीखे प्रहार  किए . बानगी  देखिये -


नदी वही है ,नाव वही है 

लेकिन वह मल्लाह नहीं है ।

धन बटोरने की चिन्ता में ,

जनहित की परवाह नहीं है ।।


  राज्य निर्माण आंदोलन : सर्वदलीय मंच के संयोजक 

 छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के लिए  वर्ष 1992 में गठित सर्वदलीय मंच के लिए उन्हें सर्व -सम्मति से संयोजक बनाया गया। इस  भूमिका में वह राजनीति में तो रहे ,लेकिन ' राजनेता ' नहीं बने । दरअसल कवि हॄदय हरि ठाकुर की  तासीर  'राजनेता' बनने की थी भी  नहीं । वह तो एक संवेदनशील साहित्यकार और  निष्काम कर्मयोगी थे ।   छत्तीसगढ़ राज्य बने ,यह उनका सपना था । सिवाय इसके उनकी कोई निजी महत्वाकांक्षा नहीं थी । अध्ययन -मनन,लेखन  और साहित्य सृजन  उनकी  दिनचर्या  का अनिवार्य हिस्सा था ।

                उनके साहित्य पर पीएच-डी.

       स्वर्गीय हरि ठाकुर के  साहित्य पर शोध कार्य  भी  हुआ है ।  मेरी भांजी श्रीमती अनामिका पाल को 'हरि ठाकुर के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना ' विषय पर वर्ष 2011 में  पण्डित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा पीएचडी की उपाधि प्रदान की गयी है । 

       प्रेरणा का प्रकाश पुंज उनका जीवन 

        वस्तुतः स्वर्गीय हरि ठाकुर का सुदीर्घ साहित्यिक और सार्वजनिक जीवन उन हजारों , लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का प्रकाश पुंज है ,जो अपने देश और अपनी धरती के लिए कुछ करना चाहते हैं । वरना यह मनुष्य देह भी क्या है ,जो जन्म लेकर यूँ ही निरुद्देश्य मर -खप जाती है ,लेकिन जिन लोगों के जीवन का पथ उतार -चढ़ाव से  भरे दुर्गम पर्वतों से  होकर गुजरता है और जिनकी जीवन यात्रा उस पथरीले पथ पर मानवता के कल्याण का मकसद लेकर चलती है , वे   इतिहास बनाकर  लोगों के दिलों में हरि ठाकुर की तरह हमेशा के लिए यादगार बनकर रच -बस जाते हैं ।

    -स्वराज्य करुण