Wednesday, April 26, 2023

(आलेख) आजकल ऐसी फिल्में क्यों नहीं बनतीं?

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित एक फ़िल्म को याद करते हुए मन में उठा सवाल )

        (आलेख -स्वराज करुण)
अच्छा ,आप लोग जरा ये बताइए , आजकल  ऐसी फिल्में  क्यों नहीं बनतीं ,जो हमारे समाज की ज्वलंत समस्याओं को लेकर दर्शकों की चेतना को झकझोरती हों ,उन्हें सोचने के लिए मज़बूर करती हों? फिल्में मनोरंजन का माध्यम जरूर हैं लेकिन उनमें समाज के लिए कोई स्वस्थ और सार्थक संदेश भी तो होना चाहिए।
  क्या सचमुच हमारा समाज बदल गया है ?क्या ज़ुल्म और लूट का रिवाज़ बदल गया है ? अगर नहीं तो क्या फिर आजकल ऐसी फिल्मों और ऐसे गीतों की जरूरत नहीं है ,जिनमें तरह -तरह के ज़ुल्म-ओ-सितम से घिरे मनुष्य की मुक्ति और समाज में एक बेहतर बदलाव की चाहत हो ?
    अगर ऐसी फिल्में नहीं आ रही हैं तो उन  पुरानी फिल्मों के ऐसे गीत भी तो अब रेडियो और टीव्ही पर सुनने -देखने को नहीं मिल रहे हैं। शायद आज की समाज -व्यवस्था को ऐसे गीत बर्दाश्त नहीं होते। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। व्यवस्था की विसंगतियों पर प्रहार करने वाली फिल्में भी आती थीं और उनमें ऐसे गाने भी होते थे ,जो रेडियो पर भी फ़रमाइशी कार्यक्रमों में प्रसारित भी होते थे ।

                                               


        
    उदाहरण के लिए वर्ष 1970 में आई फ़िल्म 'समाज को बदल डालो' को याद कीजिए । इस फ़िल्म का  शीर्षक ही अपने -आप में एक बड़ा सन्देश लिए हुए है। लोकप्रिय शायर साहिर लुधियानवी के लिखे इस गीत को सुप्रसिद्ध संगीतकार रवि (रविशंकर शर्मा)के संगीत निर्देशन में लोकप्रिय मोहम्मद रफ़ी ने अपनी आवाज़ दी थी।
फ़िल्म में  अजय साहनी ,शारदा ,प्रेम चोपड़ा, प्राण ,  अरुणा ईरानी ,महमूद  और कन्हैयालाल सहित  सहित कई बड़े कलाकारों ने  बेहतरीन अभिनय किया था। जेमिनी पिक्चर्स द्वारा निर्मित यह फ़िल्म राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित की गयी है । बहरहाल आप इस फ़िल्म के शीर्षक गीत को पढ़िए ,यूट्यूब के लिंक को क्लिक करके  सुनिए और मनन कीजिए कि आजकल ऐसे फ़िल्मी गाने समाज से गायब क्यों हैं ?-
https://www.facebook.com/Brij1206/videos/10203763381107017/

समाज को बदल डालो
समाज को बदल डालो
समाज को बदल डालो
जुल्म और लूट के रिवाज़  को बदल डालो
समाज को बदल डालो

कितने घर हैं जिनमे आज रौशनी नहीं
कितने घर हैं जिनमे आज रौशनी नहीं
कितने तन बदन हैं जिनमे ज़िन्दगी नहीं

मुल्क  और कौम के मिज़ाज़  को बदल डालो
मुल्क  और कौम के मिज़ाज़  को बदल डालो
समाज को बदल डालो
जुल्म और लूट के रिवाज़  को बदल डालो
समाज को बदल डालो

सैकड़ों  की मेहनतों पर एक क्यूँ पले
सैकड़ों  की मेहनतों  पर एक क्यूँ पले
ऊँच नीच से भरा निज़ाम  क्यूँ चले
आज है यही तो ऐसे आज को बदल डालो
आज है यही तो ऐसे आज को बदल डालो

समाज को बदल डालो
जुल्म और लूट के रिवाज़  को बदल डालो
समाज को बदल डालो.

     **********

2 comments: