Sunday, April 16, 2023

(आलेख) छोटी-सी पुस्तिका है बड़े काम की ....

 

लेखक -स्वराज्य करुण 

वैसे तो जिस चिकित्सा पद्धति से मनुष्य की बीमारियाँ ठीक हो जाएँ ,वही उसके लिए उपयोगी है ,बशर्ते वह अत्यधिक खर्चीली न हो ,  लेकिन मुझे लगता है कि  आज के मेडिकल बाज़ार में ,जिसमें अस्पतालों से लेकर मेडिकल स्टोर्स तक शामिल हैं , एलोपैथिक इलाज और दवाइयों का खर्चा उठाना हर किसी के वश में नहीं है। ऐसे में कई बीमारियों में जड़ी-बूटियों पर आधारित इलाज के घरेलू उपाय ही काम आते हैं ,जिन्हें हम आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति कहते हैं। यह भारत की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है। महर्षि धन्वंतरि को इसका जनक माना जाता है। हमारे मनीषियों ने इसे पाँचवें वेद के रूप में भी मान्यता दी है। वैदिक युग में देश में चार वेद रचे गए -ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,अथर्व वेद और सामवेद । आयुर्वेद वास्तव में अथर्व वेद का ही एक अंग है। उसी पर आधारित है आयुर्वेदिकचिकित्सा पद्धति ।

हजारों साल पहले आचार्य सुश्रुत ,महर्षि च्यवन , महर्षि चरक जैसे कई तपस्वी और महान आयुर्वेदाचार्य हमारे देश मे हुए। आज के युग में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का औद्योगिक उत्पादन विभिन्न नामों से किया जाता है।  जैसे -मधुमेह के लिए मधुनाशिनी वटी । पाचन संबधी विकारों के लिए आंवला ,बहेड़ा और हर्रा (हरड़ या हरितकी)  मिश्रित चूर्ण 'त्रिफला के नाम से बहुप्रचलित है। ऐलोपैथिक औषधियों की तुलना में आयुर्वेदिक दवाइयाँ हालांकि काफी सस्ती होती है  ,फिर भी कई ऐसी आयुर्वेदिक औषधियाँ ऐसी भी हैं ,जो बाज़ार में काफी महँगे दामों में मिलती हैं। आधुनिक विकास की तेज और अस्त-व्यस्त रफ़्तार में जंगल उजड़ते जा रहे हैं।इसलिए जड़ी-बूटियाँ भी कम होती जा रही हैं।


                                                     


जड़ी-बूटियाँ हमारे आस-पास के वनों और अपने स्वयं के घरों की खाली जगहों में  मिल सकती हैं ,बशर्ते हम इसके लिए पेड़-पौधों को बचाएँ  ,नये पेड़ पौधे लगाएँ और जंगलों की सुरक्षा पर गंभीरता से ध्यान दें। हममें जड़ी-बूटियों को  पहचानने की क्षमता भी होनी चाहिए। गाँवों में ऐसे वैद्य आज भी मिल जाएंगे ,जिनमें दुर्लभ से दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खोज करने और चिन्हित करने  की क्षमता होती है।इस सिलसिले में युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट ,गायत्री तपोभूमि ,मथुरा द्वारा प्रकाशित और डॉ. प्रणव पण्ड्या द्वारा सम्पादित 'जड़ी-बूटी चिकित्सा -एक संदर्शिका' एक महत्वपूर्ण पुस्तिका है। मात्र 64 पृष्ठों की यह छोटी -सी पुस्तिका   बड़े काम की है। भारत के प्रत्येक  परिवार में यह पुस्तिका होनी चाहिए।।मेरे पास इसका सन 2011 का संस्करण है ,तब इसकी कीमत मात्र 12  रुपए थी।इसमें विभिन्न शारीरिक व्याधियों के इलाज के लिए 42 प्रकार की जड़ी-बूटियों और आयुर्वेदिक महत्व के पेड़-पौधों की जानकारी दी गयी है ,जिनमें मौलश्री(बकुल),कायफल ,भृंगराज ,ब्राम्ही ,मालकंगनी ,शंखपुष्पी ,आंवला ,हरड़, बिल्व (बेल),मुलहठी, शतपुष्पा,कालमेघ ,गिलोय आदि शामिल है। डॉ. पण्ड्या इसके प्राक्कथन में लिखते हैं -"प्रकृति ने मनुष्य के लिए हर वस्तु उतपन्न की है ।औषधि उपचार के लिए जड़ी-बूटियाँ भी प्रदान की है । इस आधार पर चिकित्सा को सर्वसुलभ ,प्रतिक्रिया हीन तथा सस्ता बनाया जा सकता है।जड़ी-बूटी चिकित्सा बदनाम इसलिए हुई कि उसकी पहचान भुला दी गयी ,विज्ञान झुठला दिया गया । सही जड़ी-बूटी उपयुक्त क्षेत्र सेउपयुक्त मौसम में एकत्र की जाए ,उसे सही ढंग से रखा और प्रयुक्त किया जाए ,तो आज भी उनका चमत्कारी प्रभाव देखा जा सकता है।" 

      आधुनिक युग की अन्य चिकित्सा विधियों में ,विशेष रूप से एलोपैथी में शोध कार्यो को बहुत महत्व दिया जाता है। आयुर्वेद में भी नये अनुसंधानों पर ख़ूब काम होना चाहिए।भारत सरकार के आयुष विभाग द्वारा देश के कुछ बड़े शहरों में राष्ट्रीय आयुर्वेदिक शोध संस्थान भी संचालित किए जा रहे हैं। यह कार्य जनभागीदारी और समाज सेवी संस्थाओं के माध्यम से भी हो रहा है । इसी तारतम्य में डॉ. पण्ड्या  ने लिखा है -" युग ऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य के आशीर्वाद से ब्रम्हवर्चस्व शोध संस्थान ने इस दिशा में सफल शोध-प्रयोग किए हैं।गिनी -चुनी जड़ी-बूटियों से लगभग 80 प्रतिशत रोगों का उपचार सहज ही किया जा सकता है।ऐसी सरल ,सुगम ,सस्ती परंतु प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति जन-जन तक पहुँचाने के लिए यह पुस्तक प्रकाशित की गई है। जड़ी-बूटियों की पहचान ,गुण ,उपयोग विधि सभी स्पष्ट रूप सेसमझाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में  ऐसी जड़ी-बूटियों को प्राथमिक दी गयी है ,जो भारत के अधिकांश क्षेत्रों में पाई जाती हैं अथवा उगाई जा सकती हैं।"

    सरकारों से मेरा निवेदन है कि इस प्रकार की महत्वपूर्ण और जनोपयोगी पुस्तिकाओं का वितरण स्कूल -कॉलेजों में अध्यापकों और विद्यार्थियों में भी करवाएँ ,ताकि उनमें भी जड़ी -बूटियों को पहचानने की क्षमता विकसित हो सके। मेरे विचार से आयुर्वेदिक महत्व की ऐसी पुस्तिका प्रत्येक भारतीय परिवार के पास भी होनी चाहिए। पता नहीं ,कब और कहाँ किसी बीमार मनुष्य के लिए यह संजीवनी साबित हो जाए!     -स्वराज्य करुण 

2 comments:

  1. सुन्दर आलेख

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    1. ओंकार जी ,बहुत -बहुत धन्यवाद ।

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