Saturday, April 22, 2023

(आलेख) आइए ,हम सब मिलकर बचाएँ अपनी ख़ूबसूरत पृथ्वी को

 

            आज विश्व पृथ्वी दिवस पर एक चिन्तन 

                   (आलेख -स्वराज करुण )


क्या आप और हम चाहते हैं कि हमारी यह ख़ूबसूरत पृथ्वी सुरक्षित रहे ,जिस पर हम सबकी दुनिया बसती है ? तो फिर आज विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर ऐसे कई सवालों के  जवाब तलाशने  का दिन है । सोचने -विचारने का दिन है कि हम पृथ्वी लोक के मनुष्य हमारी इस खूबसूरत पृथ्वी को विनाश की दिशा में ढकेलना आख़िर कब  बन्द करेंगे?

अपनी धरती को युद्ध ,हिंसा और प्रतिहिंसा की आग से कैसे बचाएँगे?  हमारी दुनिया को धार्मिक कट्टरता और नफरतों की ज़हरीली हवाओं से कैसे सुरक्षित रख पाएंगे?     हमें याद रखना चाहिए कि  असीम विस्तार वाले इस विशाल ब्रम्हांड के तमाम ग्रहों और उपग्रहों के बीच अब तक पृथ्वी के सिवाय और कहीं भी मानव जीवन के संकेत नहीं मिले हैं। इसलिए भी यह  पृथ्वी  हमारी अनमोल धरोहर है। इसे बहुत नज़ाकत से  संभाल कर रखना हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। लेकिन विगत एक शताब्दी में हम पृथ्वी माता की संतानों ने दो -दो विश्व युद्धों से उसके विनाश का  त्रासद और काला इतिहास  लिख डाला है । अब विगत एक वर्ष से यूक्रेन जैसे छोटे -से देश पर जारी निर्मम और विनाशकारी रूसी हमलों ने तीसरे विश्वयुद्ध  का ख़तरा बढ़ा दिया है। सम्पूर्ण ब्रम्हांड में हमारी पृथ्वी ही एक मात्र ऐसी जगह है ,जहाँ मानव और तरह तरह -तरह के सुंदर जीव -जंतुओं का निवास है।


                               



 नैसर्गिक धन -धान्य से परिपूर्ण हमारी पृथ्वी माता हमें क्या -क्या नहीं देती ? अपने हरे -भरे  जंगलों की स्वच्छ हवा और जीवन रक्षक  वनौषधियाँ ,  हमारी प्यास बुझाने के लिए वनाच्छादित पर्वतों से निकलकर बहते रुपहले झरनों और  नदियों -नालों का अमृत तुल्य पानी हमारे लिए पृथ्वी माता का वरदान हैं। सोना ,चाँदी ,लोहा ,ताम्बा और कोयले की अनमोल खनिज सम्पदा वह अपने गर्भ से हम पर लुटा देती है। लेकिन उसकी  संतान के रूप में उसके इन बहुमूल्य उपकारों के बदले हम इंसान  उसे दे क्या रहे हैं ?महात्मा गांधी कहते  थे -- "पृथ्वी इंसानों की हर ज़रूरत को पूरा कर सकती है ,लेकिन वह इंसानों की लालच को पूरा नहीं कर सकती।'   उन्होंने धरती माता की अनमोल और अपार सम्पदा के प्रति  मनुष्य के बेहिसाब प्रलोभन को देखकर  कभी यह टिप्पणी की थी ,जो आज भी प्रासंगिक है। 

  यह कैसी विडम्बना है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने पृथ्वी माता को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ लिया है और स्वर्ण सम्पदा के लोभ में उसके शरीर को ही बेरहमी से चीरते जा रहे हैं। जल ,जंगल और ज़मीन अब हमारे लिए पृथ्वी माता  का वरदान नहीं ,बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ दौलत कमाने का औजार रह गए हैं। विनाशकारी परमाणु हथियारों का परीक्षण करने वाले देश  पृथ्वी माता को तबाही का ख़तरनाक पैगाम दे रहे हैं। हवा में और महासागरों में किए जाने वाले परमाणु परीक्षण क्या पृथ्वी के पर्यावरण को प्रदूषित नहीं कर रहे हैं ?  

    अमेरिकी सिनेटर जेराल्ड नेल्सन ने वर्ष 1969 में विस्कॉन्सिन में आयोजित एक कार्यक्रम में पृथ्वी दिवस के आयोजन का आव्हान किया था। अगले वर्ष 1970 से इसकी शुरुआत हुई । पृथ्वी को बचाने के लिए वियतनाम युद्ध का विरोध  और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जन जागरण इसका प्रमुख उद्देश्य था।  वियतनाम पर अमेरिका एक दशक तक हमले करता रहा ,लेकिन अंत में वह  वियतनामी जनता की देशभक्ति और बहादुरी के सामने नतमस्तक होकर वहाँ से भागा।  पृथ्वी पर मानव सभ्यता को बचाने के लिए  परमाणु हथियार मुक्त ,आतंक और हिंसा से मुक्त विश्व समाज का निर्माण  हमारे लिए एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए । लेकिन आज तो सम्पन्न देशों का आर्थिक साम्राज्यवाद पृथ्वी के अस्तित्व के सामने कई तरह की चुनौतियों को जन्म दे रहा है।दुनिया के कई देशों में मनुष्यों के बीच धार्मिक और सांप्रदायिक वैमनस्यता  पृथ्वी के सामाजिक और सांस्कृतिक पर्यावरण को भी प्रदूषित कर रही है ।

    भारतीय संस्कृति में तो हमारे ऋषि -मुनियों और तपस्वियों ने सम्पूर्ण वसुधा को एक परिवार मानकर  हमें   'वसुधैव कुटुम्बकम'  की भावना को आत्मसात करने की प्रेरणा दी है। हमारे यहाँ तो प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान का समापन ' विश्व का कल्याण हो ' और 'प्राणियों में सदभावना हो ' जैसी वैश्विक मंगलकामनाओं के साथ होता है ।। हालांकि रेल ,  हवाई जहाज और समुद्री जहाजों के अत्याधुनिक साधनों से धरती पर आवागमन तेज हुआ है ।इन्हें मिलाकर  टेलीफोन ,मोबाइल फोन ,इंटरनेट जैसे परस्पर सम्पर्क और संचार  के नित नवीन आविष्कारों से   आज सम्पूर्ण विश्व एक वैश्विक ग्राम या ग्लोबल विलेज का आकार ले चुका है ,लेकिन इस वैश्विक गाँव में  'वसुधैव कुटुम्बकम ' या 'वसुधा  एक कुटुम्ब ' या ' एक परिवार'  की उदात्त भावना का घोर अभाव देखा जा सकता है। 

 पृथ्वी माता की संतान के रूप में सम्पूर्ण संसार को  अपना परिवार मानने ,  हर मनुष्य को ,हर प्राणी को अपने इस  परिवार का सदस्य मानने  और हमारे दिलों में  उन सबके कल्याण की भावना विकसित होने पर ही  पृथ्वी दिवस की अवधारणा सार्थक होगी। सवाल ये है कि कब ऐसा होगा ? बहरहाल , संसार के सभी लोगों को आज पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

         --स्वराज करुण 

(फोटो : इंटरनेट से साभार )

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