Saturday, April 22, 2023

(आलेख) कोई लौटा दे हमें बीते हुए दिन ...!

 (आलेख -स्वराज करुण )

 आज तीव्र गति से हो रहे शहरीकरण के इस दौर में खेतों में भी मकान बनने लगे हैं  और अमराइयाँ विलुप्त हो रही हैं। उनके साथ -साथ कोयल जैसे पंछी और उनकी मधुर कुहूक भी अब लगभग सुनने को नहीं मिलती।

  सबको शीतल छाया और स्वादिष्ट आमों की सौगात देने वाले आम के वृक्षों पर भी पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है! अमराइयों के साथ -साथ स्वादिष्ट फल देने वाले और भी कई मूल्यवान वृक्ष भी अदृश्य होते जा रहे हैं।आज 22 अप्रैल को  विश्व पृथ्वी  दिवस के मौके पर हमें याद रखना चाहिए भारत जैसे देशों में अमराइयों का दिनों -दिन गायब होते जाना हमारी पृथ्वी  के लिए एक बड़ा खतरा है!

                                                



 शहरों में रहने वाले और शहरी वातावरण में पले -बढ़े अधिकांश बच्चे आज यह नहीं जानते कि अमराई क्या है ? गलती उनकी भी नहीं है। जब उन्होंने कभी अमराई देखी ही नहीं ,तो फिर कैसे बता पाएँगे ?शायद तस्वीर दिखाकर ही उन्हें बताया जा सकता है कि देखो ,इसे कहते हैं अमराई!  किसी यात्रा के दौरान अगर दूर कहीं कोई रही -सही अमराई दिख जाए तो हमें अपना बचपन याद आ ही जाता है। आँखों में तैरने लगते हैं उन दिनों के दृश्य ,जब गर्मियों में हममें से अधिकांश की दोपहरी अमराइयों की सुकून देने वाली छाँव में गुजरा करती थी। काश !  कोई लौटा दे हमें बीते हुए दिन! तब हॄदय अनायास कह उठता है --

ले चल मुझको किसी गाँव में ,

अमराई की घनी छाँव में ! 

-स्वराज करुण

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