उस युग की तरह
इस युग का हर अभिमन्यु भी
आखिर टूट जाता है !
सच्चाई ,न्याय और नैतिकता का
हर हथियार उसके हाथों से
आख़िर छूट जाता है !
लम्पटों और दलालों के इस
बेरहम और बेशर्म दौर में
उनके बनाए चक्रव्यूह से
निकलना आसान नहीं ,
ओ ! नादान अभिमन्यु
ये आधुनिक कौरवों की बस्ती है,
यहाँ कोई इंसान नहीं .
निकलना हो अगर इस घेरेबंदी से ,
तो बन जाओ तुम भी
कौरव दल के दलाल सैनिक ,
करो जयजयकार
द्रौपदियों का चीरहरण कर रहे
दुश्शासनों की ,
उनके दरबारों के
दुर्योधनों और शकुनियों की , ,
एकलव्य का अंगूठा छीन लेने वाले द्रोणाचार्यों की,
सीखो उनकी चतुराई भरी चालबाजियां
और कपट-नीति की कलाबाजियां !
अगर सीख लिया इतना कुछ
तो यह तय मानो
,गाँवों से महानगरों तक
इस कलियुगी महाभारत में
तुम कभी नहीं हारोगे ,
लम्पटता क दांव-पेंच में
होकर पारंगत
अंत में तुम अपने पाण्डवों को ही मारोगे !
-- स्वराज करुण
.
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी ।
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