Tuesday, August 25, 2020

(कविता ) इस युग के हर अभिमन्यु से

चक्रव्यूह को तोड़ने की कोशिश में 
उस युग की तरह 
इस युग का हर अभिमन्यु भी 
आखिर टूट जाता है !
सच्चाई ,न्याय और नैतिकता का 
हर हथियार उसके हाथों से 
आख़िर छूट जाता है !
लम्पटों और दलालों के इस 
बेरहम और बेशर्म दौर में 
उनके बनाए चक्रव्यूह से
 निकलना आसान नहीं ,
ओ ! नादान अभिमन्यु 
ये आधुनिक कौरवों की बस्ती है, 
यहाँ कोई इंसान नहीं  .
निकलना हो अगर इस घेरेबंदी से ,
तो बन जाओ तुम भी 
कौरव दल के दलाल सैनिक ,
करो जयजयकार 
द्रौपदियों का चीरहरण कर रहे 
दुश्शासनों की ,
उनके दरबारों के 
दुर्योधनों और शकुनियों की ,  ,
एकलव्य का अंगूठा छीन लेने वाले  द्रोणाचार्यों की,  
सीखो उनकी चतुराई भरी चालबाजियां 
और कपट-नीति की कलाबाजियां !
अगर सीख लिया इतना कुछ 
तो यह तय मानो 
,गाँवों से  महानगरों तक 
इस कलियुगी महाभारत में 
तुम कभी नहीं हारोगे ,
लम्पटता क दांव-पेंच में 
होकर पारंगत 
अंत में तुम अपने पाण्डवों को ही मारोगे ! 
                    -- स्वराज करुण


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