Wednesday, August 12, 2020

उम्र मिली सिर्फ़ 34 साल ,लेकिन बने 20 से ज़्यादा भाषाओं के विद्वान


  महान भाषाविज्ञानी  हरिनाथ डे 

  आलेख : स्वराज करुण 

आम तौर पर एक मनुष्य अपनी पूरी ज़िन्दगी में कितनी भाषाएं सीख और समझ सकता है ?  एक तो अपनी मातृभाषा जो उसे अपनी माता और अपने घर -परिवार में प्रचलित बोलचाल  से मिलती है ,दूसरी भाषा वह घर के बाहर के समाज से ग्रहण करता है । यह उसकी स्थानीय दुनिया से दिन -प्रतिदिन के सम्पर्क की भाषा होती है । इसके अलावा अपने कार्यालय अथवा कार्य -स्थल  की भाषा और अगर वह कोई व्यापारी या कारोबारी हुआ तो अपने कारोबार में सुविधा के लिए बाज़ार की भाषा। 

 यानी एक सामान्य मनुष्य अपने पूरे जीवनकाल में चार -पाँच से अधिक भाषाएं नहीं सीख सकता ,लेकिन भारत भूमि पर अनेक ऐसी महान  विभूतियों ने जन्म लिया है ,जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से एक साथ इससे भी ज़्यादा भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर समाज को आश्चर्यचकित कर दिया । इनमें   आज़ाद हिन्द फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस  और देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पी.व्ही .नरसिंहराव जैसी हस्तियां शामिल हैं। लेकिन इन्हीं  दिग्गज प्रतिभाओं में से एक भूली -बिसरी विभूति हैं स्वर्गीय हरिनाथ डे ।  वह कवि ,लेखक और चिन्तक होने के साथ -साथ एक महान भाषाविज्ञानी थे। 

  छत्तीसगढ़  और बंगाल सहित सम्पूर्ण भारत  का गौरव बढ़ाने वाले हरिनाथ डे को ईश्वर ने  सिर्फ 34 साल की ज़िन्दगी दी , लेकिन इतनी कम उम्र में उन्होंने देश -विदेश की बीस से भी ज्यादा भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था । राजधानी रायपुर को अनेक महान विभूतियों की जन्म और कर्मभूमि होने का  गौरव प्राप्त है । प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय हरि ठाकुर ने अपने ग्रन्थ 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ' में इन विभूतियों की महान उपलब्धियों से सुसज्जित जीवन यात्रा का विस्तृत वर्णन किया है । उल्लेखनीय है कि महान दार्शनिक और समाज सुधारक स्वामी विवेकानन्द ने अपने बाल्यकाल के दो स्वर्णिम वर्ष यहाँ बिताए थे । उन्हीं की तरह विलक्षण प्रतिभा के धनी हरिनाथ डे ने भी अपनी किशोरावस्था के कुछ साल रायपुर में गुज़ारे । हरिनाथ के पिता श्री भूतनाथ डे रायपुर के प्रतिष्ठित वकील और म्युनिसिपल कमेटी के उपाध्यक्ष रह चुके थे । उन्हें अंग्रेज सरकार से राय बहादुर की पदवी मिली थी। वह स्थानीय बूढ़ापारा के निवासी थे। स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ जी रायपुर प्रवास के दौरान कुछ महीने भूतनाथ डे के घर रुके थे। विश्वनाथ जी यहाँ स्वास्थ्य लाभ के लिए आए थे। ।

  वकील भूतनाथ डे के सुयोग्य सुपुत्र  हरिनाथ का  जन्म  बंगाल के एक गाँव आरिया दाबा स्थित अपने ननिहाल में  12 अगस्त 1877 को हुआ था ।  बालक हरिनाथ को अधिक से अधिक भाषाएं सीखने की प्रेरणा शायद अपनी माता एलोकेशी से मिली थी ,जो  हिन्दी ,बांग्ला , मराठी और अंग्रेजी भाषाओं की जानकार थीं। हरिनाथ  अपने वकील पिता राय बहादुर श्री भूतनाथ डे के पास रायपुर (छत्तीसगढ़ )  आने के बाद यहाँ उनकी प्राथमिक शिक्षा मिशन स्कूल में  और मिडिल स्कूल की पढ़ाई गवर्नमेंट हाई स्कूल  में हुई। इस हाई स्कूल को हम आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयनारायण पांडेय के नाम पर प्रोफेसर जे.एन.पांडेय शासकीय बहुउद्देश्यीय उच्चतर माध्यमिक शाला के रूप में   जानते हैं । रायपुर में हरिनाथ ने  मिडिल स्कूल की शिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली । हरि ठाकुर बताते हैं कि हरिनाथ यहाँ एक ईसाई संगठन के सम्पर्क में आए और उन्होंने बाइबल का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया।     इसी दरम्यान उन्होंने लैटिन भाषा का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया । उनकी गिनती इस भाषा के विद्वानों में होने लगी । रायपुर में  मिडिल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए हरिनाथ  कलकत्ता चले गए।,जहाँ सेंट जेवियर कॉलेज में दाख़िला लिया और  वर्ष 1892 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट की परीक्षा में  प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए । उन्होंने अंग्रेजी और लैटिन भाषाओं में प्रावीण्यता भी दिखाई । उस वर्ष कलकत्ता विश्वविद्यालय में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले वह इकलौते विद्यार्थी थे । उन्हें छात्रवृत्ति मिली । 

                        

   उन्होंने कलकत्ता के ही प्रेसिडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया और वर्ष 1896 में वहाँ  परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रथम श्रेणी में ग्रेजुएट हुए ।  उच्च शिक्षा के लिए केम्ब्रिज  भेजने उनका चयन किया गया । वर्ष 1896 में ही हरिनाथ ने स्वाध्यायी छात्र के रूप में लैटिन भाषा में प्रथम श्रेणी में एम. ए.किया । इस उपलब्धि के लिए उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया । वर्ष 1897 में उन्होंने इटैलियन कवि दांते की कविताओं पर शोध पत्र प्रस्तुत किया । हरिनाथ ने इंग्लैंड में भी पढ़ाई के दौरान अपनी अदभुत प्रतिभा का प्रदर्शन किया ।

   वहाँ क्राइस्ट कॉलेज कैम्ब्रिज में अध्ययन करते हुए उन्होंने  प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में ग्रीक भाषा में एम.ए.की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली । वर्ष 1900 में वह क्राइस्ट कॉलेज कैम्ब्रिज स्नातक हुए । उसी वर्ष उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (आई .सी एस.) की परीक्षा में भी कामयाबी हासिल की ,लेकिन ब्रिटिश सरकार के  उच्च प्रशासनिक पद की पेशकश को उन्होंने स्वीकार नहीं किया । उन्हें  कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति दी गयी . वहां से वर्ष 1905 में उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत ,अरबी और ओडिया भाषाओं में परीक्षाएं उत्तीर्ण की । इस पर उन्हें तीन हजार रूपए का पुरस्कार मिला । सन 1906 में वह हुगली कॉलेज के प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुए । प्राचार्य के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने स्वाध्याय से पाली भाषा में भी एम.ए. कर लिया । हिन्दी और  बंगला के ज्ञाता तो वह थे ही , उन्होंने  स्वाध्याय से पाली ,संस्कृत ,तिब्बती अरबी ,ओड़िया  ,भाषाओं के साथ -साथ ग्रीक ,स्पेनिश ,लैटिन तिब्बती ,चीनी ,हिब्रू , फारसी ,रूसी ,तुर्की , रुमानियन,रूसी  पोर्तुगीज ,इटैलियन ,स्पेनिश, एंग्लो-सेक्शन , जर्मन, फ्रेंच , डच  आदि कई भाषाओं में  भी दक्षता हासिल की और  कई भाषाओं की साहित्यिक रचनाओं का  अंग्रेजी  ,बांग्ला  आदि भाषाओं में  अनुवाद भी किया । उन्हें  कई अन्य भारतीय और एशियाई भाषाओं में दक्षता हासिल थी।पंद्रह अगस्त 1911 को मोतीझीरा की बीमारी से पीड़ित हुए और 30 अगस्त 1911 को उनका निधन हो गया ।

 स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर के अनुसार -हरिनाथ डे जितने बड़े भाषा शास्त्री थे ,भाषाविद् थे ,विभिन्न भाषाओं के साहित्य के जानकार थे ,उतने ही बड़े चिन्तक और धुरंधर लेखक भी थे । हरिनाथ डे को भाषाएँ सीखने का पागलपन की सीमा तक शौक था।किसी भी भाषा को सीखने में उन्हें कुछ महीनों से अधिक समय नहीं लगता था । जिन भाषाओं को उन्होंने सीखा , उनके साहित्य का गहन अध्ययन भी उन्होंने किया । अपने संक्षिप्त जीवन काल में उन्होंने 50 से भी अधिक कृतियों का सफलतापूर्वक सृजन कर अपनी अदभुत लेखन क्षमता और दक्षता का परिचय दिया । उन्होंने  बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के कालजयी बांग्ला उपन्यास 'आनन्द मठ ' और उनकी लोकप्रिय कविता 'वंदेमातरम' का अंग्रेजी और लैटिन भाषाओं में अनुवाद किया था,जो वर्ष 1906 में प्रकाशित हुआ । पाणिनि और बुद्ध घोष पर उनकी व्याख्यात्मक समीक्षा भी वर्ष 1906 में छपी। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए गए बौद्ध ग्रंथों के त्रुटिपूर्ण अनुवादों को जहाँ संशोधन सहित प्रस्तुत किया ,वहीं महाकवि कालिदास के संस्कृत महाकाव्य ' अभिज्ञान शाकुंतलम ' के दो खण्डों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। 

हरिनाथ जी की मौलिक और अनुवादित कृतियों की एक लम्बी सूची है। स्वर्गीय हरि ठाकुर ने 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ' में उनके जीवन परिचय के साथ  इन कृतियों का  भी उल्लेख किया है। स्वर्गीय हरि ठाकुर ने 'छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ' में उनके जीवन परिचय के साथ  इन कृतियों का  भी उल्लेख किया है। ठाकुर साहब द्वारा  दी गयी सूची के एक हिस्से की फोटोकॉपी   मैंने  इस पोस्ट में संलग्न की  है।,जिसके अवलोकन से हरिनाथ जी की विलक्षण प्रतिभा का परिचय मिलता है। विलक्षण प्रतिभा के धनी , महान भाषाविद स्वर्गीय हरिनाथ डे को   विनम्र  नमन।

     --स्वराज करुण

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर। उपयोगी जानकारी।
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

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    1. हार्दिक आभार । आपको भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

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  2. नमन हरिनाथ डे एक अदभुद विलक्षण प्रतिभा को। आभार सुन्दर जानकारी हेतु।

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    1. त्वरित टिप्पणी के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।

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  3. सादर नमन हमारे नगर के गौरव को
    सादर

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    1. त्वरित प्रतिक्रिया के लि हॄदय से धन्यवाद ।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं । बधाई ।

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