Monday, April 29, 2019

(आलेख ) वन देवी और वन देवता !


                           -स्वराज करुण   
हमारे पूर्वजों ने पेड़ -पौधों में देवी -देवताओं का निवास होने की जो धारणा समाज को दी है ,उसे अंधविश्वास कहकर एकदम से ख़ारिज नहीं किया जा सकता । उसके पीछे पर्यावरण संरक्षण की भावना भी निहित है ।  लोगों को अगर सामान्य रूप से समझाया जाए कि वृक्षों को मत काटो ,तो कम लोग ही उसे मानते हैं ,लेकिन  अगर कहा जाए कि उनमें देवी -देवता विराजते हैं तो अधिकांश लोग श्रध्दावश उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाते ।
      बचपन की याद आती है तो गाँव की विलुप्त हो चुकी अमराई की तस्वीर हमारे जेहन में उभरने लगती है ,जहाँ इमली के भी कई पेड़ हुआ करते थे ,जिनमें  कोई रंगीन चूड़ियों को  पूजा के रंग -बिरंगे धागों से बाँध कर उनकी डालियों में लटका जाता था । हम सुनते थे कि इमली में परेतिन (प्रेतनी ) रहती है और रात में टोनही आकर उसकी पूजा करती है । बच्चे और बड़े भी इसे सुनकर इमली की तरफ जाने में कतराते थे । मुझे लगता है कि इस भ्रांत धरना के चलते इमली के पेड़ वर्षों तक सुरक्षित रह पाए और स्वादिष्ट फल भी देते रहे ।
         हर किसी को मालूम है कि बरगद ,पीपल , नीम ,करंज ,आँवला  और आम जैसे वृक्ष हमें शीतल छाया और स्वास्थ्यवर्धक फल देते हैं । पीपल के बारे में कहा जाता है कि वह चौबीसों घण्टे ऑक्सीजन देने वाला  वृक्ष है । यही कारण है कि हमारे यहाँ ऐसे वृक्षों की पूजा की जाती है ।छोटे पौधों का भी प्रकृति और समाज पर कोई कम उपकार नहीं है । तुलसी पूजन की परम्परा को देखिए । प्रत्येक भारतीय परिवार के  आँगन में तुलसी चौरा अनिवार्य रूप से होता है ,  लेकिन आँवला नवमी के दिन कई शहरों में महिलाएं आँवले के पेड़ खोजने के लिए परेशान होती रहती हैं । आँवला तो आँवला ,पीपल और बरगद भी अब शहरों में दुर्लभ होते जा रहे हैं । यह चिन्ता और चिन्तन का विषय है ।
  वृक्ष -पूजन की परम्परा  हमारी भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है ।चाहे तन -मन को झुलसा देने वाली तेज धूप हो , मौसम - बेमौसम होने वाली मूसलाधार बारिश हो ,या  कड़कड़ाती ठण्ड , जंगल के पेड़ -पौधे हर समय वन्य - जीवों के साथ -साथ  प्रकृति और जन जीवन की सेवा में लगे रहते हैं ।  हमारे पूर्वजों ने वन -देवी और वन -देवता की जो परिकल्पना की थी , उसके पीछे भी शायद वनों के उपकार को देखते हुए उनके प्रति सम्मान प्रकट करने की भावना थी ।
     मानव जीवन में   पेड़ -पौधों का क्या महत्व है , इसे समझाने के लिए  धर्म और आध्यात्म का सहारा लिया जाना मेरे  विचार से गलत नहीं है , लेकिन इसकी आड़ में अगर कुछ लोग निजी स्वार्थवश  कहीं  सार्वजनिक भूमि पर या सड़क के किनारे  खाली जगह घेरने की कोशिश करते हैं ,तो उन्हें गलत माना जा सकता है ।  इससे यातायात बाधित होता है । अगर सचमुच  की आस्था है तो सबकी सहमति से और प्रशासन से अनुमति लेकर पूजा स्थल  सड़क से थोड़ा हटकर भी बनवाया जा सकता है  । - स्वराज करुण
  चित्र में : पश्चिम ओड़िशा के एक गाँव के पास सड़क किनारे  एक पूजा स्थल विकसित करने की तैयारी ।   फोटो सौजन्य : मेरा मोबाइल कैमरा ।

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-04-2019) को "छल-बल के हथियार" (चर्चा अंक-3321) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्रीजी ! हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  3. बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्रीजी ! हार्दिक शुभकामनाएं ।

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