Thursday, April 18, 2019

व्यंग्य : कहीं पे निगाहें ...कहीं पे निशाना !

                                               - स्वराज करुण
कुछ सज्जन जैसे दिखने वाले लोग मन्दिर में हाथ जोड़कर पूजा करते हुए  अपनी फोटो फेसबुक में दिखाते हैं ,लेकिन फोटो में वो भगवान की तरफ न देखकर कैमरे को ताकते नज़र आते हैं !  ऐसा लगता है कि वो भगवान की नहीं , कैमरे की पूजा कर रहे हैं।
       कुछ ऐसा ही नजारा वन महोत्सवों में दिखाई देता है ,जहाँ मुख्य अतिथि और अतिथिगण गड्ढे के पास पौधे हाथ में लेकर  कैमरे को ही देखते हुए पौधे लगाने का कार्य सम्पन्न करते हैं । स्वराज करुण को  लगता है -वो लोग पौधे नहीं लगा रहे हैं ,सिर्फ़ फोटो खिंचवा रहे हैं । अरे भईया ! पौधे लगा रहे हो तो पौधे की तरफ देखो ना ..! कैमरे की तरफ टकटकी लगाए क्या ताक रहे हो ?   
         इसी तरह आज के दौर में  कुछ  'समाज सेवक' प्रजाति लोग अस्पतालों में गरीब मरीजों को फल और दूध बाँटते हुए जो फोटो खिंचवाते हैं ,उनमें उन्हें भी कैमरे को निहारते देखा जा सकता है ।  फलदार हाथ मरीजों की तरफ और चेहरा कैमरे की तरफ। । मजे की बात ये कि ऐसी तस्वीरें अखबारों में भी छप जाती हैं । ऐसे लोगों की प्रचार लिप्सा देखकर लगता है -- 'कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना'  वाली कहावत  सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्हीं  के लिए बनी है !
          -- स्वराज करुण

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-04-2019) को "जगह-जगह मतदान" (चर्चा अंक-3310) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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