कई लोग यह मानकर चलते हैं कि नागरिक ज़िम्मेदारी का अभाव हमारे लिए राष्ट्रीय शर्म की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व की बात है ! कई लोग सार्वजनिक जगहों को बहुत बेशर्मी से गंदा करते रहते हैं,लेकिन अपने घरों को साफ़ -सुथरा रखते हैं.यह देखकर आश्चर्य होता है कि जनता के रूपयों से जनता के लिए बनने वाली चीजों का जनता ही सत्यानाश करती रहती है! जिन दीवारों पर लिखा रहता है कि यहाँ पर पान, गुटखा खाकर थूकना और पेशाब करना मना है, जुर्माने की भी चेतावनी लिख दी जाती है, फिर भी लोग उन्हें गंदा करने की अपनी गंदी हरकत छोड़ नहीं पाते.
सरकारी अस्पतालों, सरकारी दफ्तरों और सरकारी बैकों की सीढियों के कोनों, उनके परिसरों और आसपास की दीवारों को कई लोग पान की पीक से रंग देते हैं. रेल्वे स्टेशनों और रेलगाड़ियों के शौचालयों की भी ऐसी ही दुर्गति देखने को मिलती है.सरकार शहरों में अच्छी भली, साफ -सुथरी सड़कें बनवाती है, लेकिन जनता को उन्हें गंदा करने में कोई हिचक नहीं होती. आख़िर ये सड़कें जनता के टैक्स के लाखों -करोड़ों रुपयों से ही तो बनती हैं. लेकिन यह जानते हुए भी उन सड़कों पर गाड़ियों से आते -जाते थूकना और पान की पीक उलीचना लोग अपना अधिकार समझते हैं. यहाँ तक कि अगर किसी गली -मोहल्ले में किसी के घर या किसी की दुकान के सामने कोई साफ -सुथरी नई सड़क बनी हो तो उस घर या दुकान के मालिक अपना आंगन समझ कर रोज सवेरे पानी उलीचकर उसे धोते हैं, ऐसे में चाहे डामर की सड़क हो या सीमेंट कंक्रीट की, धीरे -धीरे उनका उखड़ना तय रहता है.
अच्छी -भली सड़कों के किनारे चाय -नाश्ते की कोई दुकान या गुमटी हो, कोई छोटा होटल हो तो उनके मालिक अपने बर्तन धोकर उसका पानी उसी साफ़ -सुथरे रास्ते पर फेंकते रहते हैं. घरों, दुकानों के सामने से कोई नाली निकली हो तो उनके लोग प्लास्टिक के खाली बोतलों और पॉलीथिन की खाली थैलियों को उस नाली में डालना अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानते हैं. फलस्वरूप नालियां बजबजाने लगती हैं.ऐसे लोगों के बारे में कब तक लिखें, कहाँ तक लिखें और क्या -क्या लिखें? आख़िर कब समझेंगे लोग?
-स्वराज्य करुण
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