Tuesday, November 11, 2025

(पुस्तक -चर्चा ) रजत कृष्ण साहित्य के स्टीफन हॉकिंग (आलेख ; स्वराज्य करुण )

 जहाँ से मैं आता हूँ 

कविता के इस देश में...

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ये रजत कृष्ण की कविता 'छत्तीस जनों वाला घर 'की प्रारंभिक पंक्ति है.रजत कृष्ण  आधुनिक हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं.उनका जन्म 26 अगस्त 1968 को छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित ग्राम लिमतरा में हुआ था. 

सिर्फ़ 12 साल की उम्र में वह  मसक्युलर डिस्ट्राफी नामक बीमारी  के शिकार हो गए थे.मांस -पेशियों को बहुत कमजोर बना देने वाली इस लाइलाज बीमारी से उनकी बहन का निधन हो गया था.लेकिन रजत ने हिम्मत नहीं हारी.घर -परिवार की विभिन्न समस्याओं का सामना करते हुए उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की.पिता जोहन राम साहू के निधन के बाद परिवार को भी संभाला.पिताजी ने रजत के बड़े भाई मोहित के लिए जब पान ठेले की व्यवस्था की थी,उन दिनों रजत सातवीं में पढ़ते थे.   स्कूल की छुट्टी होने पर वे शाम के वक़्त इस पान दुकान के संचालन में बड़े भाई का हाथ बँटाते थे .


            


  वर्तमान में रजत छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले में स्थित शासकीय महाविद्यालय,बागबाहरा में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक हैं.  मोटराराइज्ड व्हील चेयर पर चलते हैं. वह अदम्य साहस के साथ  तमाम चुनौतियों का मुकाबला करते हुए एक रचनात्मक जीवन जी रहे हैं और एक से बढ़कर एक बेहतरीन कविताओं का सृजन कर रहे हैं. इसे देखते हुए उनके साहित्यिक मित्रों ने उनकी तुलना ऑक्सफोर्ड में जन्मे महान खगोल विज्ञानी स्वर्गीय स्टीफन हॉकिंग से की है,  जो 21साल की उम्र में मोटर न्यूरौन की  व्याधि से पीड़ित हो गए थे और जिन्होंने 76 साल की जीवन यात्रा में 55 साल  व्हील चेयर पर बैठकर ही कई बड़े अनुसंधान किए. साहित्यकार नंदन और भास्कर चौधुरी ने 'रजत कृष्ण साहित्य के स्टीफन हॉकिंग'शीर्षक से उन पर केंद्रित 240 पेज की एक पुस्तक का सम्पादन किया है. इसमें रजत के जीवन और साहित्य सृजन  पर उनसे जुड़े देश भर के अनेक साहित्यकारों के आलेख शामिल हैं.इसका विमोचन 2नवंबर 2025 को रजत के गृह नगर बागबाहरा में किया गया.इसे नई दिल्ली के न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है. पुस्तक 399 रूपए की है, लेकिन हिन्दी साहित्य के अध्येताओं के लिए यह एक ज़रूरी किताब है. 

   रजत ने 'सर्वनाम'के सम्पादक रहे स्वर्गीय विष्णु चंद्र शर्मा के सम्मान में 'अंतिम साँसों तक सीखने वाले सर्जक ' शीर्षक से एक आलेख लिखा था,जिसे इस संकलन में प्रकाशित किया गया है. इसके अलावा इसमें रजत की कुछ चयनित कविताओं सहित उनके कुछ लेख और सम्पादकीय भी हैं.   संग्रह में रजत के साहित्य लेखन पर जोधपुर (राजस्थान ) के डॉ. रमाकांत शर्मा ने 'आंचलिक रसगंध के कवि ' शीर्षक से लेख लिखा है.दिल्ली के महेश दर्पण ने 'एक अनिवार्य उपस्थिति', दिल्ली के ही एकांत श्रीवास्तव ने 'छत्तीस पंखुड़ियों वाला फूल ', दुमका (झारखण्ड)के सुशील कुमार ने 'लोकभाषा और कविता' और बाँदा (उत्तर प्रदेश)के केशव तिवारी ने 'रजत एक योद्धा' शीर्षक से कवि के प्रति अपने विचार व्यक्त किए हैं, वहीं जम्मू के अग्निशेखर ने रजत की एक कविता की पंक्ति 'इस बखत सबसे बड़ी सजा है किसान होना ' को अपने लेख का शीर्षक बनाया है. संकलन में कुसमुंडा (कोरबा )के कामेश्वर पाण्डेय का लेख 'रजत कृष्ण : जिसे साहित्य ने संजोया'भी बहुत महत्वपूर्ण है. इनके अलावा दुर्ग के अंजन कुमार, कोमा (राजिम )के निर्मल आनंद, कवर्धा के अजय चंद्रवंशी, रायपुर के इंद्र राठौर, बागबाहरा के पीयूष कुमार,  सुषमा निर्मलकर,कृष्णानंद दुबे और हाथीगढ़ (बागबाहरा)के डॉ. विजय कुमार सहित कई विशिष्ट जनों द्वारा कवि रजत प्रति अपनी -अपनी भावनाएँ व्यक्त की गईं हैं .रजत कृष्ण ने लघु पत्रिकाओं के अर्थशास्त्र पर अपनी बात रखी है, जिसमें उन्होंने  साहित्यिक पत्रिका 'सर्वनाम 'के सम्पादन के दौरान आयी कुछ दिक्क़तों का भी उल्लेख किया है.इसके साथ ही उन्होंने इस लेख में' मुक्तिबोध ' और 'संदर्श'जैसी लघु पत्रिकाओं के प्रकाशन में आयी कठिनाइयों का भी जिक्र किया है.रजत से विजय सिंह और नंदन की आत्मीय बातचीत भी इसमें प्रकाशित है.रजत कृष्ण पर अपनी पाँच छोटी -छोटी कविताओं के साथ भास्कर चौधुरी ने भी एक आलेख लिखा है, जिसका शीर्षक है -अदम्य साहस और इच्छा शक्ति का दूसरा नाम है साहित्यकार रजत कृष्ण उर्फ़ प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार साहू. संकलन में रजत कृष्ण का लिखा आलेख -समकालीन कविता में स्त्री स्वर'भी पठनीय और विचारणीय है.

    किताब 'साहित्य के स्टीफन हॉकिंग 'में विजय प्रकाश द्वारा संकलित एक आलेख 'रजत कृष्ण के जीवन संघर्ष पर आधारित सफलता की कहानी के रूप में है,जो राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की एक पुस्तक में भी प्रकाशित है. इसमें 12साल की उम्र में रजत को मसक्युलर डिस्ट्राफी नामक असाध्य बीमारी होने और और हाई स्कूल तक आते -आते चलने -फिरने और उठने-बैठने में असमर्थ हो जाने का उल्लेख है.इसमें यह भी लिखा गया है कि रजत धैर्य और हिम्मत के साथ पढ़ाई करते रहे और भाइयों के सहयोग से पान ठेला भी चलाते रहे.

       रजत कृष्ण ने जीवन की कठिन परिस्थितियों  में हिम्मत नहीं हारी और  अध्यापन कार्य जारी रखते हुए साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपना एक मुकाम बनाया है.उन्हें हिन्दी के अत्यंत सम्मानित और वरिष्ठ साहित्यकार, दिल्ली के विष्णु चंद्र शर्मा ने वर्ष 2002  में अपनी प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका'सर्वनाम'के अतिथि सम्पादक का दायित्व सौंपा, फिर 2006 में उन्हें सम्पादक की जिम्मेदारी दे दी,जिसे उन्होंने छत्तीसगढ़ के बागबाहरा जैसे कस्बे में रहते हुए एक दशक तक  बखूबी निभाया.वर्ष 2004 में रजत ने जगदलपुर (बस्तर) से प्रकाशित, विजय सिंह की साहित्यिक पत्रिका 'सूत्र' का भी उनके आग्रह पर अतिथि सम्पादक के रूप में सम्पादन किया.रजत कृष्ण के साहित्य पर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में वर्ष 2010 में पीएच. डी. हो चुकी है, जिसका विषय था -रजत कृष्ण ; रचनात्मकता का जीवन और जीवन की रचनात्मकता. रजत के दो कविता संग्रह(1)वर्ष 2011में 'छत्तीस जनों वाला घर ' और (2) वर्ष 2020 में 'तुम्हारी बुनी हुई प्रार्थना ' प्रकाशित हो चुके हैं. उनके गंभीर साहित्य सृजन से प्रभावित होकर और उनकी शारीरिक व्याधि को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें वर्ष 2004में मोटराइज्ड व्हील चेयर प्रदान किया था.समय -समय पर उन्हें अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया है.रजत के साथ उनके साहित्यिक मित्रों और आत्मीय जनों द्वारा समय -समय पर किया गया पत्र -व्यवहार इस पुस्तक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. रजत द्वारा उन्हें लिखे गए पत्र भी इसमें सम्मिलित हैं. संकलन में शामिल रजत की कई कविताओं में ग्राम्य जीवन और आम जनता की भावनाएँ पूरी संवेदनशीलता के साथ प्रकट होती हैं.उनकी एक कविता के इस अंश में किसानों के दर्द को महसूस कीजिए -    

      *खेतों का मन आज भारी है,

        कुछ और किसानों के 

       बिकने की आज पूरी तैयारी   है / आ रहे हैं सौदागर 

       कहाँ न कहाँ से, 

        धरती मईया का सौदा करने,

          कैसा यह आपद काल,     

          मिट्टी भी जैसे आज हिम्मत हारी है.

     'छत्तीस जनों वाला घर 'शीर्षक कविता  में रजत ने अपना परिचय कुछ इस तरह दिया है -

     छत्तीसगढ़ के 

     एक छोटे -से जनपद 

      बागबाहरा में 

      छत्तीस जनों वाला 

      एक घर है /

     जहाँ से मैं आता हूँ 

     कविता के इस देश में.

रजत निरंतर लिखते रहें,  कविताएँ रचते रहें, जिनमें उनकी संवेदनाओं के रंग खिलें और जिनसे हमारा यह देश और हमारी यह दुनिया ख़ूब रंगीन और खूबसूरत बने.  रजत को बहुत -बहुत शुभकामनाएँ.

आलेख -स्वराज्य करुण 

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