Friday, November 28, 2025

(पुरानी स्मृतियाँ )अचानक हुई मुलाकात एक संन्यासी कवि से /लेखक -स्वराज्य करुण


   (आलेख : स्वराज्य करुण )

कई घूमन्तु साधु -संन्यासी कवि भी होते हैं । चार साल पहले की बात है ।निर्गुण ब्रम्ह के उपासक और संन्यासी  बाबा निरालम्ब दाश से  23नवम्बर 2021को मुझे अचानक मिलने का सौभाग्य मिला। तब मालूम हुआ कि वे कवि भी हैं । उन दिनों वे 94 साल के थे।  मेरी शुभकामनाएँ हैं कि वे जहाँ भी रहें,स्वस्थ और सकुशल रहें और निरंतर काव्य सृजन करते रहें ।      मुलाकात के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि  ओड़िया भाषा  में वे अब तक 7 पुस्तकें लिख चुके हैं।इनमें से  6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इस वर्ष (2021में) आपकी  छठवीं  पुस्तक 'संन्यास  लक्षण ' का प्रकाशन हुआ है । इसके प्रकाशक भी वे स्वयं हैं । 


                                               


उनकी  अन्य पुस्तकों की तरह यह भी ओड़िया में  लिखे उनके आध्यात्मिक गीतों का संग्रह है।  उनकी अन्य 5 प्रकाशित पुस्तकें है --(1)नर -रत्न गीता,(2)नारी रत्न गीता (3)चारपदिया भजन (4) छांद भजन और (5)हित वाणी   । सातवीं काव्य पुस्तक 'चौंतीसा माधुरी' अभी प्रेस में है। यह तो चार साल पहले की बात है । सातवीं पुस्तक शायद अब तक छप चुकी होगी।   बाबाजी  अलेख महिमा सम्प्रदाय (सत्य महिमा धर्म )के अनुगामी हैं। उनकी सभी रचनाएँ इस सम्प्रदाय के विचारों पर आधारित हैं।अलेख महिमा सम्प्रदाय का मुख्यालय ओड़िशा के जरोंदा (जिला --ढेंकानाल)में है। सुखदेव बाबा वहाँ के प्रमुख हैं।चूंकि  सम्प्रदाय का उदगम ओड़िशा में है ,इसलिए वहाँ के अलावा  सीमावर्ती छत्तीसगढ़  के सरहदी इलाकों के गांवों में भी इस सम्प्रदाय के अनुयायी मिल जाते हैं।    

     बाबा निरालम्ब दाश से मेरी अचानक मुलाकात छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में महानदी के तटवर्ती और ओड़िशा प्रांत के सीमावर्ती ग्राम सरिया में हुई, जहाँ सत्य महिमा आश्रम परिसर में वे ठहरे हुए थे ।ओड़िशा राज्य की सीमा सरिया से सिर्फ़ दस -पन्द्रह किलोमीटर रह जाती है। बाबाजी आश्रम परिसर में सुबह की गुनगुनी धूप सेंक रहे थे । संन्यासी हैं ,इसलिए अपने जन्म स्थान और  घर -परिवार के बारे में कुछ नहीं बताते ।उन्होंने सिर्फ इतना  बताया कि वह 1962 में इस सम्प्रदाय में दीक्षित हुए थे। सोहेला(जिला -बरगढ़)के पास ग्राम चकर केन आश्रम में उन्होंने शंभूचरण बाबा से दीक्षा ली थी। यह पूछने पर कि सांसारिक जीवन से संन्यास क्यों ले लिया ,उन्होंने कहा -दैवीय इच्छा के सामने मानवीय इच्छाओं की भला क्या बिसात ? 

बाबा निरालम्ब दाश का आश्रम ओड़िशा के बालेश्वरडीह (कूदोपाली ,नेरीमुण्डा)में है ,जो सरिया से ज्यादा दूर नहीं है। वह कुछ अस्वस्थ हैं ,इसलिए सरिया आश्रम के भक्तगण उन्हें वहाँ से सरिया लाकर उनकी देखभाल कर रहे हैं। बाबाजी की नेत्र ज्योति इस उम्र में भी ठीक ठाक है ,लेकिन श्रवण शक्ति कमज़ोर हो गयी है। फिर भी उन्होंने मेरी कई जिज्ञासाओं का समाधान किया। बाबाजी की पुस्तकों का प्रकाशन उनके बालेश्वरडीह स्थित सत्य महिमा आश्रम के बैनर पर हुआ है। अपनी छठवीं पुस्तक के लेखक और प्रकाशक भी वह स्वयं हैं।

   सत्य महिमा आश्रम, सरिया के संचालक और वरिष्ठ  साहित्यकार त्रिलोचन पटेल के अनुसार अलेख महिमा धर्म के अनुयायी आपको पश्चिम बंगाल ,असम,आंध्र और गुजरात मे भी मिल जाएंगे।इस सम्प्रदाय के  कुछ विचार और व्यवहार जैन और बौद्ध धर्म से मिलते जुलते हैं।जैसे -सूर्यास्त के पहले भोजन । अलेख महिमा सम्प्रदाय के मानने वालों की मुख्य रूप से 2 श्रेणियां हैं। पहली श्रेणी गृहस्थ भगतों की है ,जो एक दूसरे के साथ परस्पर भातृ भाव रखकर सांसारिक जीवन यापन करते हैं।दूसरी श्रेणी संन्यासियों की है ,लेकिन इनमें भी तीन प्रकार के संन्यासी होते हैं --(1)त्यागी (2)गैरिक कोपिन धारक और (3)वल्कल धारक साधु । ये लोग आम तौर पर एक गाँव में सिर्फ़ एक रात रुकते हैं।सभी श्रेणियों के अनुयायी निर्गुण ब्रम्ह की उपासना करते हैं। पश्चिम ओड़िशा से लगे हुए छत्तीसगढ़ के  ग्राम भूथिया ,रक्सा ,दुरुगपाली और परसरामपुर सहित  कई अन्य गाँवों में भी  इनके आश्रम  हैं। (आलेख  -स्वराज्य करुण)

 


 

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