Monday, September 26, 2022

(आलेख) हम नहीं कहते ,ज़माना कहता है ...

   (आलेख : स्वराज्य करुण )

दलबदल चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक , दोनों ही स्थितियों में ,संसद और विधान सभाओं समेत अन्य सभी  निर्वाचित संस्थाओं से दलबदलुओं की सदस्यता स्वयमेव समाप्त हो जानी चाहिए।कुछ लोगों ने लोकतंत्र का मज़ाक बना रखा है ! कोई निर्वाचित जनप्रतिनिधि अगर दल बदल रहा है तो  इसका  मतलब  है कि वह व्यक्ति जनता को धोखा दे रहा है , क्योंकि वह किसी दल विशेष का प्रत्याशी बनकर उसके चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ता है ,उस चुनाव चिन्ह के लिए व्होट मांगता है ,मतदाता भी उस पर भरोसा करके उस चिन्ह पर व्होट देकर उसे विजयी बनाते हैं। ऐसे में उस निर्वाचित व्यक्ति के द्वारा अचानक दल बदल करना एक प्रकार से मतदाताओं को धोखा देना नहीं तो और क्या है ?  अगर किसी को दलबदल करना ही है तो वह पहले अपने निर्वाचित पद से इस्तीफ़ा दे और जिस दल में जाना चाहता है ,उसका सदस्य बने , फिर चुनाव लड़कर और जीतकर दिखाए। आम जनता के भी यही विचार हैं। 

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