-स्वराज करुण
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सिर्फ़ 25 किलोमीटर की दूरी पर दो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मौर्यकालीन बौद्ध संस्कृति की एक नयी बसाहट का पता चला है । रायपुर जिले के तहसील मुख्यालय आरंग के पास ग्राम रींवा में एक टीले पर राज्य शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन जोर -शोर से किया जा रहा है । माना जा रहा है इस उत्खनन में दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास पर नयी रौशनी पड़ सकती है ।
यह स्थान मुम्बई -कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 के बिल्कुल किनारे पर है । विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इस टीले से एक बौद्ध स्तूप निकलने की प्रबल संभावना है । यह भी माना जा रहा है कि सुदूर अतीत में वहाँ एक विकसित बसाहट भी रही होगी ।उत्खनन के दौरान वहां स्तूप की दीवारों की बुनियाद और ईंटें भी नज़र आने लगी है । पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह मौर्यकालीन स्तूप ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का हो सकता हैं । याने आज से कोई तेईस सौ साल पुराना । जिस आकार -प्रकार की ईंटें वहां मिल रही हैं ,उन्हें देखकर यह अनुमानित काल निर्धारण किया गया है । इस आलेख के लेखक ने उस दिन देश के मशहूर पर्यटन ब्लॉगर ललित शर्मा के साथ वहाँ धरती के गर्भ से निकलते इतिहास को देखा ।
वैसे तो पुरातत्व की दृष्टि से सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ ही अत्यंत समृद्ध है । आरंग तहसील भी इस मामले में कम नहीं है। पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार आरंग शहर को राजा मोरध्वज की राजधानी माना जाता है । वहां का भांड देवल मन्दिर प्रसिद्ध है ,जो भारत सरकार द्वारा संरक्षित ऐतिहासिक स्मारक है । छत्तीसगढ़ और ओड़िशा की जीवन रेखा महानदी आरंग के नजदीक से बहती है । पुराणों में चित्रोत्पला गंगा के नाम से वर्णित इस नदी का उदगम भी छत्तीसगढ़ में है. ।यहाँ के सिहावा पर्वत से निकलकर करीब आठ सौ किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय करते हुए यह बंगाल की खाड़ी के विशाल समुद्र में समाहित हो जाती है । महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ से ओड़िशा तक अनेक प्रसिद्ध तीर्थ और ऐतिहासिक स्थान हैं ।
दक्षिण कोशल (प्राचीन छत्तीसगढ़ )में शैव ,वैष्णव और बौद्ध संस्कृतियों के त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध सिरपुर भी महानदी के किनारे स्थित है । सिरपुर को हमारे प्राचीन भारतीय इतिहास में 'श्रीपुर' के नाम से भी जाना जाता है । इतिहासकार बताते हैं कि यहाँ प्राप्त स्मारक सातवीं -आठवीं शताब्दी के हैं । सिरपुर में गन्धरेश्वर महादेव और लक्ष्मण मन्दिर के अलावा प्राचीन बौद्ध विहार भी हैं ,जिन्हें केन्द्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है ।
ब्लॉगर ललित शर्मा कहते हैं कि ग्राम रींवा ,जहां अभी टीले का उत्खनन हो रहा है ,महानदी पहले वहाँ से होकर भी बहती रही होगी । हजारों साल के समय प्रवाह में नदियाँ अपना रास्ता बदलती रहती हैं । रींवा के तालाब की मेड़ों को देखकर उन्होंने कहा कि इस जगह पर किसी राजा का मृदा भित्ती दुर्ग (मड फोर्ट ) रहा होगा ।बहरहाल ,पुरातत्व विभाग के अधिकारी स्थानीय श्रमिकों के साथ पूरी गंभीरता और तत्परता से वहाँ उत्खनन में लगे हुए हैं और भूमिगत हो चुके भारतीय इतिहास के धुंधले पन्नों की धूल झाड़कर उन्हें पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ।
- स्वराज करुण
(तस्वीरें : मेरे 'मोबाइल' की आंखों से )
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सिर्फ़ 25 किलोमीटर की दूरी पर दो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मौर्यकालीन बौद्ध संस्कृति की एक नयी बसाहट का पता चला है । रायपुर जिले के तहसील मुख्यालय आरंग के पास ग्राम रींवा में एक टीले पर राज्य शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन जोर -शोर से किया जा रहा है । माना जा रहा है इस उत्खनन में दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास पर नयी रौशनी पड़ सकती है ।
यह स्थान मुम्बई -कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 के बिल्कुल किनारे पर है । विभागीय अधिकारियों ने बताया कि इस टीले से एक बौद्ध स्तूप निकलने की प्रबल संभावना है । यह भी माना जा रहा है कि सुदूर अतीत में वहाँ एक विकसित बसाहट भी रही होगी ।उत्खनन के दौरान वहां स्तूप की दीवारों की बुनियाद और ईंटें भी नज़र आने लगी है । पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह मौर्यकालीन स्तूप ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का हो सकता हैं । याने आज से कोई तेईस सौ साल पुराना । जिस आकार -प्रकार की ईंटें वहां मिल रही हैं ,उन्हें देखकर यह अनुमानित काल निर्धारण किया गया है । इस आलेख के लेखक ने उस दिन देश के मशहूर पर्यटन ब्लॉगर ललित शर्मा के साथ वहाँ धरती के गर्भ से निकलते इतिहास को देखा ।
वैसे तो पुरातत्व की दृष्टि से सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ ही अत्यंत समृद्ध है । आरंग तहसील भी इस मामले में कम नहीं है। पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार आरंग शहर को राजा मोरध्वज की राजधानी माना जाता है । वहां का भांड देवल मन्दिर प्रसिद्ध है ,जो भारत सरकार द्वारा संरक्षित ऐतिहासिक स्मारक है । छत्तीसगढ़ और ओड़िशा की जीवन रेखा महानदी आरंग के नजदीक से बहती है । पुराणों में चित्रोत्पला गंगा के नाम से वर्णित इस नदी का उदगम भी छत्तीसगढ़ में है. ।यहाँ के सिहावा पर्वत से निकलकर करीब आठ सौ किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय करते हुए यह बंगाल की खाड़ी के विशाल समुद्र में समाहित हो जाती है । महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ से ओड़िशा तक अनेक प्रसिद्ध तीर्थ और ऐतिहासिक स्थान हैं ।
दक्षिण कोशल (प्राचीन छत्तीसगढ़ )में शैव ,वैष्णव और बौद्ध संस्कृतियों के त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध सिरपुर भी महानदी के किनारे स्थित है । सिरपुर को हमारे प्राचीन भारतीय इतिहास में 'श्रीपुर' के नाम से भी जाना जाता है । इतिहासकार बताते हैं कि यहाँ प्राप्त स्मारक सातवीं -आठवीं शताब्दी के हैं । सिरपुर में गन्धरेश्वर महादेव और लक्ष्मण मन्दिर के अलावा प्राचीन बौद्ध विहार भी हैं ,जिन्हें केन्द्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है ।
ब्लॉगर ललित शर्मा कहते हैं कि ग्राम रींवा ,जहां अभी टीले का उत्खनन हो रहा है ,महानदी पहले वहाँ से होकर भी बहती रही होगी । हजारों साल के समय प्रवाह में नदियाँ अपना रास्ता बदलती रहती हैं । रींवा के तालाब की मेड़ों को देखकर उन्होंने कहा कि इस जगह पर किसी राजा का मृदा भित्ती दुर्ग (मड फोर्ट ) रहा होगा ।बहरहाल ,पुरातत्व विभाग के अधिकारी स्थानीय श्रमिकों के साथ पूरी गंभीरता और तत्परता से वहाँ उत्खनन में लगे हुए हैं और भूमिगत हो चुके भारतीय इतिहास के धुंधले पन्नों की धूल झाड़कर उन्हें पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ।
- स्वराज करुण
(तस्वीरें : मेरे 'मोबाइल' की आंखों से )
बढ़िया लेख
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
आदरणीय अनिता जी । बहुत ;बहुत धन्यवाद ।
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