Wednesday, June 5, 2019

(व्यंग्य ) श्वान -संस्कृति के स्वामी -भक्त पहरेदार !

                      - स्वराज करुण 
     मुझे 'श्वान -संस्कृति ' वालों से बहुत डर लगता है । मॉर्निंग और इवनिंग भ्रमण में ले जाना , सड़क पर ही छी -छी और सू -सू कराना ,फिर घर आकर खूब नहलाना ,फिर  सोफ़े पर  बैठाना  ,उनके बाल संवारना , अपने साथ उन्हें भी खिलाना ,पिलाना , रात को बिस्तर पर  साथ सुलाना ...!  क्या इन्हें घिन नहीं लगती ?
   श्वान -संस्कृति के   इन ' स्वामी -भक्त पहरेदारों ' को इंसानों से जितना प्यार नहीं ,उससे ज्यादा श्वानों से क्यों ? श्वान -संस्कृति के एक कट्टर समर्थक ने अपने घर में 'डबरा मेन'   पाल रखा है तो दूसरे ने अल्सेशियन ।  दोनों खतरनाक प्रजातियों के कुत्ते हैं ।  उनके घर जाने में हमारी रूह काँपती है । हमने तो जाना ही छोड़ दिया !
        वैसे  किसकी मज़ाल है ,जो उनके इन प्यारे 'बेटों' को 'कुत्ता ' कह दे ? एक दिन उनमें से एक मुझे बाज़ार में मिल गया ।  मैंने कहा -यार ! तुम्हारा कुत्ता  बड़ा  ख़तरनाक हैं ! वह मुझ पर भड़क गया ! बोला -ख़बरदार ! जो मेरे 'डॉगी' को  'कुत्ता ' कहा ! उसका नाम 'किम जोंग ' है ! मैंने कहा -ये तो उत्तर कोरिया के खूँखार तानाशाह का नाम है ,जो हज़ारों निर्दोष लोगों का क़ातिल है !
       मित्र ने कहा -  यह क़ातिलों का ज़माना है !  इस ज़माने में सिर्फ़ और सिर्फ़ क़ातिलों की ही चलती है !   क़ातिल ही क़ानून बनाते हैं ,क़ातिल ही क़ानून की रखवाली करते हैं और क़ातिल ही इंसाफ़ भी करते हैं । इसीलिए मैंने इसका नाम  इस युग के मशहूर क़ातिल के नाम पर रखा है ।
       मैंने 'श्वान -संस्कृति ' के इस  स्वामी - भक्त पहरेदार मित्र के  'श्वानोचित ज्ञान और विवेक को मन ही मन प्रणाम किया और हाथ जोड़कर वहाँ से दफ़ा हो गया ।
      - स्वराज करुण

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 06.06.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3358 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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