उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
चीन्ह -चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
इस युग का दस्तूर है देखो ,
हम कितने मजबूर हैं देखो !
फूलों को घेरे कांटे ही कांटे,
ऐसे में पुष्प हम कैसे छांटे !
चीन्ह -चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
इस युग का दस्तूर है देखो ,
हम कितने मजबूर हैं देखो !
फूलों को घेरे कांटे ही कांटे,
ऐसे में पुष्प हम कैसे छांटे !
एक से एक है उनकी करनी
फिर भी शान से आते-जाते !
जितना हमारा मासिक वेतन
हर रोज वो उतना पीते-खाते
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
चीन्ह - चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
चीन्ह - चीन्ह के रेवड़ी बांटे !
-स्वराज्य करुण
आपने लिखा...
ReplyDeleteऔर हमने पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 03/01/2016 को...
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
आप भी आयीेगा...
बहुत -बहुत धन्यवाद कुलदीपजी । नए वर्ष ईस्वी सन् 2016 की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
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