समरथ को नहीं दोष गोसाईं ,
देश की दौलत मिलकर खाई !
सबका हिस्सा आधा -आधा
सबके सब मौसेरे भाई !
उनका हर आयोजन रंगीला,
शादी हो या कोई सगाई ।
शान-शौकत देख के उनकी
थर -थर काँपे भारत माई ।
लूट रहे जो देश की धरती ,
उनके घर में दूध -मलाई ।
गाँव -शहर सब दूर मची है ,
मारा-मारी और नंगाई ।
निर्धन -निर्बल हुए निराश
अब देख -देख उनकी परछाई !
-- स्वराज्य करुण
देश की दौलत मिलकर खाई !
सबका हिस्सा आधा -आधा
सबके सब मौसेरे भाई !
उनका हर आयोजन रंगीला,
शादी हो या कोई सगाई ।
शान-शौकत देख के उनकी
थर -थर काँपे भारत माई ।
लूट रहे जो देश की धरती ,
उनके घर में दूध -मलाई ।
गाँव -शहर सब दूर मची है ,
मारा-मारी और नंगाई ।
निर्धन -निर्बल हुए निराश
अब देख -देख उनकी परछाई !
-- स्वराज्य करुण
भाई कुलदीप जी ने कल लिं लेकर सूचना दी थी सभी को पर प्रस्तुति यहा नहीं थी सो यह आकस्मिक प्रस्तुति,, "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteयशोदाजी और कुलदीपजी को बहुत-बहुत धन्यवाद .
Deleteयथार्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteओंकार जी ! बहुत-बहुत आभार .
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-01-2016) को "देश की दौलत मिलकर खाई, सबके सब मौसेरे भाई" (चर्चा अंक-2225) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्रीजी को बहुत-बहुत धन्यवाद .
Delete