सावधान ! होशियार !! अपनी मौलिक रचनाओं की पुस्तक छपवाना , अपनी कविताओं और कहानियों को ब्लॉग पर या फेस बुक पर डालना अब किसी भी रचनाकार के लिए खतरे से खाली नहीं है. कुछ लोग जिन्हें कुछ भी लिखना-पढ़ना नहीं आता , इन दिनों किसी भी कविता संग्रह से , कहानी संकलन से , ब्लॉग से या किसी के फेस बुक से मौलिक लेखकों और कवियों का मैटर जस का तस उठाकर पत्र- पत्रिकाओं में और सहयोगी आधार पर छपने वाले संग्रहों में स्वयं के नाम से छपवाने लगे हैं . कई अखबारों में तो लेखकों के नाम के बिना भी कई आलेख छपे हुए मिलते हैं ऐसे शौकिया और विज्ञापन आधारित अखबारों के कथित सम्पादक इन रचनाओं को किसी वेबसाईट या ब्लॉग से आसानी से डाऊनलोड कर उनका बेजा उपयोग कर रहे हैं .
साहित्यिक नक़लबाजी और चोरी की ऐसी घटनाएं अक्सर सामने नहीं आ पाती. इसके कुछ व्यावहारिक कारण होते हैं .एक तो यह कि किसी रचनाकार की कोई किताब एक बार छपने और पाठकों तक पहुँचने के बाद वह सार्वजनिक हो जाती है और एक हाथ से दूसरे ,तीसरे,चौथे तक पहुँचते हुए कहाँ-कहाँ कौन-कौन से हाथों में जाती है, कितने लोगों की अच्छी-बुरी नज़रों से गुज़रती है, इसका ध्यान रखना किसी भी रचनाकार के लिए संभव नहीं है . दूसरी बात यह कि अगर उसे मालूम हो भी जाए कि उसकी रचना की नक़ल उतार ली गयी है और वह धड़ल्ले से भी चल रही है, तो सामान्य आर्थिक हालात वाले अधिकाँश रचनाकार उसके लिए छोटी-मोटी आपत्ति दर्ज करने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं . जिंदगी की आपा-धापी में उनके पास किसी तरह की मुकदमेबाजी के लिए न तो इतना वक्त होता है और न ही बेहिसाब पैसा .सूचना प्रौद्योगिकी के इस ज़माने में इंटरनेट ,वेबसाईट , ब्लॉग और फेसबुक जैसे सामाजिक-सम्पर्क माध्यमों ने साहित्यिक नकल चोरी को और भी आसान बना दिया है. जन-संचार के इन नए संसाधनों ने स्थानीय रचनाकारों को ग्लोबल ज़रूर बना दिया है ,लेकिन उनकी बौद्धिक सम्पदा की रक्षा कर पाने में वह असमर्थ है. अगर इनमे आपकी कोई रचना आ भी गयी ,तो दुनिया के किस कोने में, कौन से देश में बैठा कौन व्यक्ति उसका क्या इस्तेमाल कर रहा है ,आपको तत्काल भला कैसे मालूम हो पाएगा ?
''सामूहिक जन हित चिन्तन हो,
मेहनतकश यह जन-जीवन हो,
किसी एक की नहीं ये धरती,
इस पर सबका श्रम सिंचन हो !''
इसी तरह दूसरी कथित क्षणिका भी मेरी एक कविता की ही पंक्तियाँ हैं--
'' इस देश की बगिया को हम संवारेंगे
ये हंसते फूल ,गाते भ्रमर भी हैं अपने ,
मेहनत से सींचेंगे सपनों के खेतों को,
जागरण के सारे प्रहर भी हैं अपने !''
उपरोक्त दोनों काव्यांश वर्ष २००२ में प्रकाशित बाल गीतों के मेरे संग्रह ' हिलमिल सब करते हैं झिलमिल ' की दो रचनाओं में से हैं.जिनकी शीतल नागपुरी ने नकल कर ली है.यहाँ तक तो चलो ठीक है कि शीतल नागपुरी ने मेरे जैसे किसी साधारण रचनाकार की कविताओं की पंक्तियों को को स्वयम की बता कर किसी सहयोगी कविता संग्रह में छपवा लिया है ,लेकिन आश्चर्य ये भी है कि उन्होंने प्रसिद्ध शायर दुष्यन्त कुमार की एक लोकप्रिय गज़ल की चार पंक्तियों को भी अपने नाम से छपवाने में कोई परहेज नहीं किया है .ये पंक्तियाँ हैं --
''कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए !''
हैरानी की बात है कि न्यू ऋतम्भरा साहित्य मंच द्वारा प्रकाशित यह अखिल भारतीय साहित्य संग्रह संत एवं क्रांतिकारी कवि कबीर को समर्पित है . गनीमत है कि शीतल नागपुरी जैसे किसी कथित कवि ने संत कबीर के दोहों को इसमें अपने नाम से नहीं छपवाया . वरना कबीर हमारे बीच होते तो क्या सोचते ? बहरहाल अपनी रचनाओं की चोरी हो जाने के डर से कोई भी रचनाकार साहित्य-सृजन बंद तो नहीं कर सकता,पर उसके संज्ञान में ऐसी कोई घटना आती है ,तो वह पत्र-पत्रिकाओं समेत ब्लॉग और फेस बुक आदि नए सामाजिक नेटवर्क के ज़रिये उसे उजागर तो कर ही सकता है. नक्कालों को रंगे हाथ हम भले ही पकड़ न पाएं ,लेकिन उन्हें बेनकाब तो किया ही जा सकता है.
--- स्वराज्य करुण
जाल जगत की दुनिया मे कुछ भी सुरक्षित नही यहा तो कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फ़लेशु कदाचन अक्षरशः लागू होता है
ReplyDeleteजागरूक करता हुआ सार्थक आलेख ..
ReplyDeleteबिल्कुल सही कह रहे हैं आप ।
ReplyDeleteक्या पता संस्था को यह खबर है या नहीं.
ReplyDeleteअब कहीं वे ये ना कह दें कि उनकी पाण्डुलिपि २००२ से पहले गुम हो गई थी :)
ReplyDeleteखैर...उस संस्था तक बात ज़रूर पहुंचा दी जाये ! हमारी ओर से आपत्ति दर्ज करें !
मेरे एक मित्र ने जून १९७९ में बिलासपुर से छपा उनका काव्य संकलन " इंद्र धनुष के टुकड़े " मुझे भेंट किया था ! सोचता हूं कि मैं भी इससे कुछ कवितायें जुगाड़ लूं और वेबसाईट में अपने नाम से डाल दूं :)
स्वराज्य जी , ज़रा स्पैम चेक कर लीजियेगा !
ReplyDeleteआपकी बातों से सहमत है...
ReplyDeleteशीतल नागपुरी जी प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है,जो उन्होने हमें उत्सव मनाने का अवसर सुलभ कराया है भैया, जब रचनाएं चोरी होने लगें तो मुल्यांकन स्वयं हो जाता है कि आप चुराने लायक लिखने लगे हैं। हमारी रचनाएं तो कोई चुराता भी नहीं है, कब से इंतजार कर रहा हूँ, कोई चुराए तो मैं भी लेखक कवि हो जाऊं :))
ReplyDeleteजल्द ही मिठाई खाने आ रहा हूँ, खुशी का अवसर सेलिब्रेट करना ही चाहिए :)
बिलकुल सही कहा आपने
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