उन्हें लड़ाने की कोशिश में शैतान भी हिम्मत हारे ,
हिल मिल सब करते हैं झिलमिल दूर गगन के तारे !
रोज धरा पर आकर सूरज
देता सबको उजियारा ,
और चाँद भी कर देता है
जगमग -जगमग जग सारा !
अम्बर की बगिया में खिलते फूल हैं कितने प्यारे,
हिल मिल सब करते हैं झिलमिल दूर गगन के तारे !
सोचो तो कुदरत का कैसा
प्यारा यह अनुशासन है ,
अंतरिक्ष के आँगन सबके
अपने-अपने आसन हैं !
कभी न होती छीना-झपटी ,न ही नफरत के नारे,
हिल मिल सब करते हैं झिलमिल दूर गगन के तारे !
धरती अपनी होगी सुंदर ,
कब होगी ऐसी दुनिया ,
दंगे न होंगे ,घर न जलेंगे
बेघर न होगी मुनिया !
आओ मिटाएं हम-तुम सब आपस के झगड़े सारे,
हिल मिल सब करते हैं झिलमिल दूर गगन के तारे !
-- स्वराज्य करुण
(छाया चित्र google से साभार )
कविता के माध्यम से शुभ सन्देश .धन्यवाद !
ReplyDeleteप्रकृति कितनी सुंदरता से नियम पालन करती है... प्रेरणा ग्रहण कर सामंजस्य मानव समाज भी स्थापित करे, तो क्या बात हो!
ReplyDeleteसुंदर कविता!
bahut sateek v sarthak rachna .aabhar
ReplyDeletesarthak prastuti .aabhar
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश ..
ReplyDeleteबहुत खूब, निर्मल और शीतल.
ReplyDeleteप्रकृति की हर बात हमको कुछ न कुछ सिखाती है मगर शायद हम ही उस बात को कभी समझ नहीं पाते बहुत सुंदर रचना !! बधाई समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
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