चाहे सौ टुकड़े कर डालो तुम इन्द्रधनुष के ,
मिट न सकेगा इन्द्रधनुषी प्यार हमारा !
हर टुकड़े पर होगी आंसुओं की निशानी ,
हर टुकड़े की होगी अपनी करुण कहानी !
हर टुकड़े के अधरों पर इक दर्द की भाषा
थिरक उठेगी शब्दों में हृदय की वाणी !
दिल का दर्पण चाहे बँट जाए हजार टुकड़ों में,
मिट न सकेगा उसमे झलकता श्रृंगार हमारा !
हृदय से हृदय का चिर अनुबंध प्यार है
जलप्रपात के यौवन सा स्वच्छंद प्यार है !
युग-युग से है शिलालेख की तरह अमिट
जीवन के इस महाकाव्य का छन्द प्यार है !
हृदय से हृदय का बंधन तोड़ नहीं पाओगे ,
इस बंधन में जीने का है अधिकार हमारा !
- स्वराज्य करुण
छाया चित्र : google से साभार
कार्तिक पूर्णिमा एवं प्रकाश उत्सव की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteहृदय से हृदय का चिर अनुबंध प्यार है
ReplyDeleteजलप्रपात के यौवन सा स्वच्छंद प्यार है !
युग-युग से है शिलालेख की तरह अमिट
जीवन के इस महाकाव्य का छन्द प्यार है !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब रचना लिखा है आपने ! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
खुबसूरत चित्रों के साथ ही सुन्दर पंक्तियाँ
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