Tuesday, August 20, 2019

(आलेख) हीराकुद बाँध और अँधेरे में गाँधी मीनार की स्वर्णिम रौनक !

                         - स्वराज करुण
छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्यों की जीवन -रेखा महानदी पर ओड़िशा के जिला मुख्यालय सम्बलपुर के पास है  दुनिया के  सबसे लम्बे  बाँधों में से एक हीराकुद जलाशय  ।  यूं तो इस बीच पारिवारिक यात्राओं में सम्बलपुर कई बार  आता -जाता रहा ,लेकिन वहाँ से हीराकुद महज़ 15 किलोमीटर होने के बावज़ूद समय की कमी के कारण हर यात्रा में  ' चलो अगली बार देखेंगे' ,सोचकर हम  घर लौट आए ।
     इस बार करीब 8 साल बाद उस दिन मुझे दूसरी बार सपरिवार इसे देखने का मौका मिला ,हालांकि समय की कमी के कारण पूरा नहीं देख पाए । अस्ताचलगामी सूरज की सिन्दूरी आभा के बीच मेरे मोबाइल कैमरे की आंखों में  विहंगम दृश्यों की कुछ तस्वीरें आ ही गयीं । यह विशाल बाँध हमारे देश की एक अनमोल धरोहर है ।
                     
      सिंचाई और बिजली उत्पादन के उद्देश्य से इसका निर्माण  वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के  तत्काल बाद 1948 में शुरू हुआ और करीब एक  दशक बाद वर्ष 1957 में   पूर्ण कर  लिया गया  । मिट्टी और कांक्रीट से बने इस बाँध के तटबंध की लम्बाई 4801 मीटर यानी चार किलोमीटर और 801 मीटर है ,जबकि तटबंध सहित  इसकी कुल लम्बाई 26 किलोमीटर और ऊँचाई 61 मीटर  है । जानकारों के अनुसार यह एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है । इसकी जलग्रहण क्षमता 810करोड़ घन मीटर है । बाँध के तटबंध के कारण 743 किलोमीटर की एक मानव निर्मित झील बन गयी है ।   
     बाँध में दो जलविद्युत परियोजनाएं चिपलिमा के नज़दीक स्थित हैं ,जिनकी कुल क्षमता 307 .5 मेगावाट है । इस परियोजना से सार्वजनिक क्षेत्र के राउरकेला इस्पात संयंत्र को भी बिजली दी जाती है ।  परियोजना का जलग्रहण क्षेत्र 83 हज़ार 400 वर्ग किलोमीटर है । इस बाँध से किसानों को खरीफ़ में एक लाख 56 हज़ार हेक्टेयर  और रबी मौसम में एक लाख 08हज़ार हेक्टेयर के रकबे में फसलों के लिए पानी मिलता है ।बाँध के जल विद्युत गृहों से निकलने वाले पानी से करीब 4 लाख 36 हज़ार हेक्टेयर खेतों को पानी मिल सकता है । हाल के कुछ वर्षों में यहाँ पर्यटकों के लिए दो ऊँचे मीनार भी बनाए गए हैं -राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पर गाँधी मीनार और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के नाम पर नेहरू मीनार।। उस दिन  सपरिवार वहाँ हमारे पहुँचने तक शाम हो गयी थी और टिकट काउंटर बन्द होने में कुछ ही मिनट बाकी थे । काउंटर वाले ने चिल्ला कर कहा -जल्दी कीजिए । गेट बन्द होने वाला है ।  हमने आनन -फानन में टिकट करवाया और गाड़ी में सर्पाकार  पहाड़ी रास्ते से  होकर  गाँधी मीनार तक पहुँच गए । कई पर्यटक पहले से वहाँ मौजूद थे ।
     मीनार की चक्करदार सीढ़ियों से ऊपर पहुँचकर सूर्यास्त का दृश्य भी  मैंने  अपने मोबाइल कैमरे में दर्ज कर लिया । फिर जैसे ही नीचे आए ,मीनार का गेट बन्द करने की सीटी बज गयी ।  वहाँ से उतर कर पहाड़ी के नीचे टैक्सी स्टैण्ड पर चाय पान और  भुट्टे आदि के ठेलों में आकर सबने हल्का नाश्ता किया और घर वापसी की शुरुआत हुई । इस बीच मैंने पहाड़ी के नीचे से ही मीनार की फोटो मोबाइल से खींच ली ।
       
 
शाम ढल चुकी थी । पहाड़ी पर अँधेरा छा  गया था,  लेकिन महात्मा गाँधी के सत्य और अहिंसा के मूल्यवान विचारों की तरह हीराकुद का  गाँधी मीनार उस वक्त बिजली की स्वर्णिम रौशनी की रौनक  में सोने जैसा  दमक  रहा था ।
      - स्वराज करुण

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