सोशल मीडिया के इस जमाने में लोकप्रियता मिलती नहीं बल्कि खरीदी जाती है ! इस फोटो पर दीवार में चस्पा विज्ञापन को ध्यान
से देखिए ! फेसबुक पर सिर्फ 300 रूपए में 1500 लाइक ,ट्विटर पर 200 रूपए
में 1000 फॉलोवर्स और गूगल प्लस पर भी 200 रूपए में 1000 फॉलोवर्स ....!
जनाब ने अपना मोबाईल नम्बर भी दे रखा है !
(फोटो - Google से साभार )
वैसे बाज़ार में प्रचलित भावों के हिसाब से यह धंधा और सौदा बुरा नहीं है । कई लोग कर भी रहे हैं. ! तभी तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि कुछ लोगों की "चाय की प्याली" या "भोजन की थाली" के फोटो पर भी ' लाइक्स ' की बरसात होने लगती है ! कुछ लोग कुछ भी ऊल - जलूल लिख मारते हैं तो उन पर भी लाइक्स की बौछार शुरू हो जाती है ! हम जैसे लोग तो इस मामले में 'गरीबी रेखा' श्रेणी में आते हैं . हमारी भला क्या औकात ? इधर औकात वालों के बीच लोकप्रियता बेचने और खरीदने का यह बिजनेस इन दिनों खूब फल-फूल रहा है ! एजेंसियां खुल गई हैं ,जिनका करोड़ों का खेल खुल्लमखुल्ला चल रहा है . बिकाऊ लोकप्रियता के दीवाने ग्राहकों में कई नेता और अभिनेता भी शामिल हैं.
कई बड़े -बड़े स्वनामधन्य रसूखदार , महापुरुषों और महान स्त्रियों ने अपने फेसबुक और ट्विटर एकाउंट्स पर लाइक्स और फौलोवर्स बढाने के लिए कम्प्यूटर और इंटरनेट के जानकार बेरोजगारों को काम पर लगा रखा है ! ऐसे महानुभावों को दिन-रात कई प्रकार के काम रहते हैं , उन्हें यह देखने की कहाँ इतनी फुर्सत कि सोशल मीडिया में उनके बारे में कौन क्या लिख रहा है और उन्हें उसका क्या जवाब देना है .ये काम तो उनके सहायक अधिकारी और कर्मचारी करते रहते हैं . चलो , इस बहाने कुछ बेरोजगारों को रोजगार तो मिल रहा है !फिर भी सवाल ये है कि खरीदी गई लोकप्रियता आखिर कब तक काम आएगी और कब तक कायम रहेगी ? किसी दिन जब अपनी टी.आर. पी. बढ़ाने की इन तिकड़मों का भेद खुल जाएगा ,तब खरीददारों का क्या होगा ?
--स्वराज करुण
(फोटो - Google से साभार )
वैसे बाज़ार में प्रचलित भावों के हिसाब से यह धंधा और सौदा बुरा नहीं है । कई लोग कर भी रहे हैं. ! तभी तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि कुछ लोगों की "चाय की प्याली" या "भोजन की थाली" के फोटो पर भी ' लाइक्स ' की बरसात होने लगती है ! कुछ लोग कुछ भी ऊल - जलूल लिख मारते हैं तो उन पर भी लाइक्स की बौछार शुरू हो जाती है ! हम जैसे लोग तो इस मामले में 'गरीबी रेखा' श्रेणी में आते हैं . हमारी भला क्या औकात ? इधर औकात वालों के बीच लोकप्रियता बेचने और खरीदने का यह बिजनेस इन दिनों खूब फल-फूल रहा है ! एजेंसियां खुल गई हैं ,जिनका करोड़ों का खेल खुल्लमखुल्ला चल रहा है . बिकाऊ लोकप्रियता के दीवाने ग्राहकों में कई नेता और अभिनेता भी शामिल हैं.
कई बड़े -बड़े स्वनामधन्य रसूखदार , महापुरुषों और महान स्त्रियों ने अपने फेसबुक और ट्विटर एकाउंट्स पर लाइक्स और फौलोवर्स बढाने के लिए कम्प्यूटर और इंटरनेट के जानकार बेरोजगारों को काम पर लगा रखा है ! ऐसे महानुभावों को दिन-रात कई प्रकार के काम रहते हैं , उन्हें यह देखने की कहाँ इतनी फुर्सत कि सोशल मीडिया में उनके बारे में कौन क्या लिख रहा है और उन्हें उसका क्या जवाब देना है .ये काम तो उनके सहायक अधिकारी और कर्मचारी करते रहते हैं . चलो , इस बहाने कुछ बेरोजगारों को रोजगार तो मिल रहा है !फिर भी सवाल ये है कि खरीदी गई लोकप्रियता आखिर कब तक काम आएगी और कब तक कायम रहेगी ? किसी दिन जब अपनी टी.आर. पी. बढ़ाने की इन तिकड़मों का भेद खुल जाएगा ,तब खरीददारों का क्या होगा ?
--स्वराज करुण
बहुत -बहुत धन्यवाद कुलदीप जी .
ReplyDeleteरक्षा बंधन की हार्दिक बधाई और शुभेच्छाएं .
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-08-2017) को "सिर्फ एक कोशिश" (चर्चा अंक 2699) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी .
ReplyDeleteआपको भी रक्षाबन्धन की बहुत-बहुत बधाई और शुभेच्छाएं .