क्या शब्द अपनी धार खो रहे हैं और चलन से बाहर हो
रहे हैं ? हिन्दी भाषा में ही देखें तो किंकर्त्तव्यविमूढ़ , दैदीप्यमान ,
जाज्वल्यमान ,, चेष्टा , विद्यार्जन , धनोपार्जन , अर्थोपार्जन , लोलुपता ,
मीमांसा ,प्रतिध्वनि , ,प्रतिश्रुति,प्रतिबिम्ब , प्रत्युत्पन्नमति ,
प्रवृत्ति ,प्रियतम , प्रेयसी , दुर्भिक्ष ,विभीषिका , जीजिविषा , कंठस्थ
,मुखाग्र अध्यवसाय , अधोगति , अवनि , चारुचंद्र , उत्तरोत्तर , उपस्थापना , मनोविनोद ,
गंतव्य ,मंतव्य , लोमहर्षक , निष्ठुर , निर्द्वन्द , निराहार , इत्यादि ,
अनादि जैसे शब्द जाने कब ,कहाँ , क्यों और कैसे हमारा साथ छोड़ गए , पता ही
नहीं चला !
कुछ दशक पहले लेखन और बोलचाल में जिन लोगों के द्वारा इन शब्दों का उपयोग किया जाता था , क्या वे सबके सब मूर्ख थे ? यह तो हुई शब्दों की बात ! ज़रा हिन्दी के अंकों के बारे में सोचिये ! अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ने वाले कई बच्चों को हिन्दी अंकों और हिन्दी महीनों के नाम पूछकर देखिये . उन्हें लगेगा कि आप उनसे किसी विदेशी भाषा में कोई सवाल पूछ रहे हैं . उन्हें पैंतीस या छत्तीस कहने पर समझ में नहीं आएगा ,लेकिन अगर थर्टी फाइव और थर्टी सिक्स बोलेंतो झटपट समझ लेंगे . जैसा माहौल देखा जा रहा है ,उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य भारतीय भाषाओं में भी ऐसा हो रहा होगा . हमें उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है ,लेकिन हिन्दी के विलुप्त हो रहे संस्कृतनिष्ठ शब्दों के बारे में सोचकर ऐसा लगता है जैसे खोटे सिक्कों ने असली सिक्कों को चलन से बाहर कर दिया है !
-- स्वराज करुण
कुछ दशक पहले लेखन और बोलचाल में जिन लोगों के द्वारा इन शब्दों का उपयोग किया जाता था , क्या वे सबके सब मूर्ख थे ? यह तो हुई शब्दों की बात ! ज़रा हिन्दी के अंकों के बारे में सोचिये ! अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ने वाले कई बच्चों को हिन्दी अंकों और हिन्दी महीनों के नाम पूछकर देखिये . उन्हें लगेगा कि आप उनसे किसी विदेशी भाषा में कोई सवाल पूछ रहे हैं . उन्हें पैंतीस या छत्तीस कहने पर समझ में नहीं आएगा ,लेकिन अगर थर्टी फाइव और थर्टी सिक्स बोलेंतो झटपट समझ लेंगे . जैसा माहौल देखा जा रहा है ,उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य भारतीय भाषाओं में भी ऐसा हो रहा होगा . हमें उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है ,लेकिन हिन्दी के विलुप्त हो रहे संस्कृतनिष्ठ शब्दों के बारे में सोचकर ऐसा लगता है जैसे खोटे सिक्कों ने असली सिक्कों को चलन से बाहर कर दिया है !
-- स्वराज करुण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (20-07-2017) को ''क्या शब्द खो रहे अपनी धार'' (चर्चा अंक 2672) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'