जाने क्यों वह आज भी मुझे अपनी ओर खींचता है ?
मैं भी न जाने क्यों खिंचा चला जाता हूँ ?
ऐसा क्या है उसके पास मेरे लिए ?
बताना चाहूंगा सिर्फ तुम्हें चुपके से !
लेकिन शर्त केवल इतनी है कि
बताना मत किसी को भी ,
वरना लग जाएगी उस पर किसी की बुरी नज़र !
ऐ दोस्त ! क्या कुछ नहीं है उसके पास
जो मुझे अपनी ओर खींच न सके ?
गहरे नीले आसमान की साफ़-सुथरी छत
हरी घास पर फ़ैली सुनहरी धूप की मखमली चादर,
आम, पीपल , नीम और बरगद की छाँव
जहां घूमते बच्चे -बूढ़े बेफिक्र खाली पांव !
थोड़ी ही दूर पर तेंदू , चार- चिरौंजी और सागौन
का जंगल,
आँगन तक आ जाते हिरण और बन्दर ,
जहां स्याह रातों में आकाश की खुली छत पर
हरियर दमकते सितारों का जमघट और
पगडंडियों पर जुगनुओं का मेला !
भला कौन वहां मुझे कहेगा अकेला ?
रूपहली चांदनी रात में बचपन के दोस्तों के साथ
तालाब के शांत पानी में चन्द्रमा को निहारने
का सुख दुनिया में और कहाँ ?,
जहां खेतों से खलिहानों तक,
नदियों , पर्वत ,मैदानों तक
सुआ-ददरिया , करमा जैसे लोक-गीतों की महक ,
जहां घरों की छानी में लौकी और
कुम्हड़े के फूलों के बीच नन्हीं चिड़ियों की चहक,
भोले चेहरों की निष्कपट मुस्कान,
अभावों में भी जहां दिखे ज़िंदगी की शान !
धूल- भरी वह धरती
जहां दबी है नाल मेरी ,
ऐ दोस्त ! वही तो है मेरी ज़िन्दगी का
सबसे कीमती खजाना ,
तुम्हें इस माटी की कसम ! किसी से भी मत कहना,
किसी को भी मत बताना ,
वरना लग जाएगी भू-माफियाओं की ,
शहरी दरिंदों की बुरी निगाह
मेरे सुंदर -सलोने गाँव पर
हरे-भरे वृक्षों की शांत-शीतल छाँव पर !
स्वराज्य करुण
वाह, स्वराज जी उम्दा बिंब उकेरे हैं आपने।
एक चित्र सी कविता है
उम्दा पोस्ट-सार्थक लेखन के लिए आभार
प्रिय तेरी याद आई
आपका ब्लॉग4वार्ता पर स्वागत है
बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति है !
ReplyDeletebehad sundar kavita. gramya jeevan ki saralta aur saundarya ka khubsurat chitran. mujhe mera gaon yaad aa gaya. saadar-BALMUKUND
ReplyDeleteकिसी को भी मत बताना ,
ReplyDeleteवरना लग जाएगी भू-माफियाओं की ,
शहरी दरिंदों की बुरी निगाहों की
मेरे सुंदर -सलोने गाँव पर
हरे-भरे वृक्षों की शांत-शीतल छाँव पर !
वाह !!! कितने अच्छे विचार है .
मेरे लिए तो ऐसा सुंदर बिंब अब ज्यादातर कविताओं में ही उपलब्ध है.
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