दोस्तों ! कोई मुझे बताए कि अगर हमारी जेब में सिर्फ एक या दो रूपए बाकी रह गए हों और हमें भूख लग रही हो , तो महंगाई डायन के हंटर की मार से तड़फते अपने देश में खुले बाज़ार के किसी होटल में जाकर हम क्या कुछ खरीद सकते हैं ? एक रूपए में तो हाफ चाय भी नसीब नहीं होगी और दो रूपए में एक नग समोसा भी नहीं मिलेगा. पान खाने की इच्छा हो तो आज वह भी कहीं चार रूपए और कहीं पांच रूपए में मिलता है. सामान्य होटलों में समोसा और कचौरी दस रूपए प्लेट आज के समय में बहुत सामान्य बात है. परिवार या मित्र-मंडली के साथ नाश्ता करने किसी साधारण होटल में भी जाएँ ,तो वहां सत्तर-अस्सी रूपए खर्च हो जाना आज मामूली बात है , यह मै इसलिए कह रहा हूँ कि जितने रूपए हम जैसे औसत दर्जे के खाते -पीते कुछ शौकीन लोग बाज़ार में चाय -नाश्ते पर खर्च कर देते हैं, उतने में तो छत्तीसगढ़ का एक गरीब परिवार अपने लिए आसानी से महीने भर के अनाज का जुगाड़ कर लेता है. यह मुमकिन हुआ है -प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की एक ऐसी योजना से , जिसने देश भर में धूम मचा कर देश के सभी राज्यों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है .
यह कोई मुंहदेखी बात नहीं, दिल की बात है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ के सौम्य स्वभाव के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ही जमीन से जुड़े अपने सहज- सरल चिंतन के साथ बड़ी सहजता ,लेकिन दमदारी से देश के उन तमाम शासकों को यह सन्देश दे सकते हैं कि जिस राज्य का मेहनतकश मजदूर सबसे ज्यादा सुखी होगा , उस राज्य की सरकार भी समझो सबसे ज्यादा कामयाब होगी. गाँव की माटी में जन्मे, रचे -बसे और पले-बढ़े डॉ रमन सिंह छत्तीसगढ़ के छत्तीस लाख गरीब परिवारों को मुफ्त नमक और केवल एक रूपए और दो रूपए किलो में हर माह पैंतीस किलो अनाज देने की योजना चलाकर राज्य के मेहनतकशों का दिल जीत चुके हैं. इस योजना में गरीबों में भी सबसे गरीब याने कि 'अन्त्योदय' श्रेणी के सात लाख परिवारों को महज एक रूपए किलो में ३५ किलो अनाज दिया जा रहा हैऔर बाकी २९ लाख गरीब परिवारों को केवल दो रूपए में. अगर इन सभी छत्तीस लाख में से हर परिवार में औसत चार सदस्य भी मान लें ,तो इस वक़्त मोटे तौर पर दो करोड़ ,दस लाख की जनसंख्या वाले इस राज्य में एक करोड़ से ज्यादा आबादी को इस योजना का फ़ायदा मिल रहा है , जिनमे ज्यादातर लोग मज़दूर तबके के हैं . महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के निर्माण कार्यों में इन दिनों हर मज़दूर को रोजाना एक सौ रूपए की मज़दूरी तो मिल ही रही है.सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के दूसरे निर्माण कार्यों में भी आज के हिसाब से मजदूरी की दर इसके आस-पास है, या फिर इससे कुछ ज्यादा . ऐसे में अगर किसी परिवार में पति-पत्नी दोनों किसी काम में लगें हों , तो उनमे से किसी एक व्यक्ति की एक दिन की मजदूरी से भी कम राशि में पूरे परिवार के लिए महीने भर के अनाज का बंदोबस्त हो सकता है. फिर छत्तीसगढ़ के गावों में मजदूर सबसे ज्यादा सुखी नहीं होगा , तो और कौन होगा ?
गरीबी-रेखा अर्थात बी. पी. एल. श्रेणी के इन परिवारों के लिए बेहद सस्ते अनाज की यह योजना गाँवों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी बेहतर ढंग से चल रही है लेकिन डॉ रमन सिंह की इस योजना ने उन लोगों को ज़रूर दुखी कर दिया है , जिनकी पूरी ज़िन्दगी पीढ़ी-दर -पीढ़ी दूसरों की मेहनत पर कायम रहती आयी है.हालांकि उनकी संख्या ज्यादा नहीं है .ऐसे लोग शिकायत करते सुने जाते हैं कि अब उन्हें घर के काम के लिए नौकर नहीं मिल रहे हैं .डॉ .रमन सिंह ने इस प्रकार के लोगों को हाल ही में ज़ोरदार जवाब दिया है कि मजदूर केवल घरेलू नौकर बनने और दूसरों के घरों में झाडू-पोंछा करने के लिए पैदा नहीं हुए हैं. उन्हें भी स्वाभिमान से जीने का अधिकार है. डॉ . रमन सिंह के अनुसार यह अजीब मध्यवर्गीय मानसिकता है कि कुछ लोग अपने घरों में दस-दस नौकर रखना चाहते हैं .लेकिन ज़माना बदल रहा है . ऐसे लोग अगर मुझसे कहते हैं कि रमन! तुम्हारे राज्य में मजदूर सबसे ज्यादा सुखी है ,तो मुझे लगता है कि मेरा काम सार्थक हो गया.
ऐसी बात भी नहीं है कि राज्य के मुखिया को समाज के दूसरे तबकों का ख्याल नहीं है . उन्होंने निम्न-मध्यम वर्ग के उन बीस लाख परिवारों के दर्द को भी महसूस किया है ,जो गरीबी -रेखा से ऊपर तो हैं ,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ती महंगाई की मार से कराह रहे हैं. राज्य की उचित मूल्य दुकानों से ए .पी. एल. श्रेणी के ऐसे राशन कार्ड धारकों को तेरह रूपए किलो में चावल और दस रूपए किलो में गेहूं दिया जा रहा है, जो वास्तव में आज के खुले बाज़ार भाव के मुकाबले काफी सस्ता है.छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सहकारी समितियों के ज़रिए दस हज़ार से ज्यादा उचित मूल्य दुकानों से आज गरीबी रेखा के नीचे और गरीबी रेखा के ऊपर के करीब छप्पन लाख राशन कार्ड धारक परिवारों को सस्ता अनाज मिल रहा है. राज्य सरकार इन दुकानों के ज़रिए हर महीने सवा लाख मीटरिक टन से भी कुछ ज्यादा अनाज छप्पन लाख घरों तक पहुंचा रही है. इसमें से एक लाख मीटरिक टन चावल गरीबी रेखा याने कि बी.पी.एल. श्रेणी के छत्तीस लाख परिवारों को महज एक और दो रूपए किलो में दिया जा रहा है . इस बेहद किफायती दर पर मिलने वाले पैंतीस किलो अनाज में उन्हें पांच किलो गेहूं लेने का भी विकल्प दिया गया है . इन बी. पी.एल. परिवारों को राज्य सरकार हर माह करीब साढ़े सात हज़ार मीटरिक टन आयोडीन-नमक प्रति परिवार दो किलो के हिसाब से बिल्कुल मुफ्त दे रही है. प्रदेश सरकार की संस्था छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा दस हज़ार से ज्यादा उचित मूल्य दुकानों को आवंटन के अनुसार राशन सामग्री हर महीने विशेष वाहनों के ज़रिए उनके दरवाजे तक पहुंचाई जा रही है, ताकि वह सभी छप्पन लाख घरों तक सही वक़्त पर पहुँच सके . यह निगम की 'द्वार प्रदाय 'योजना है . इसके अलावा प्रत्येक उचित मूल्य दुकान में हर माह की सात तारीख को 'चावल-उत्सव ' भी मनाया जाता है ,जहां उस दुकान के सभी राशन कार्ड धारकों अपनी सुविधा से राशन उठाने का मौका मिलता है. उन्हें यह भी मालूम हो जाता है कि सरकार ने उनके लिए इस दुकान को कितना राशन भेजा है ? वहां सबके सामने इसका वितरण होता है. पारदर्शिता के लिहाज से भी यह 'चावल-उत्सव ' बड़े कमाल का है . वैसे तो छत्तीसगढ़ की सार्वजानिक वितरण प्रणाली ही सचमुच कमाल की है , जिसे देखने देश की कई राज्य सरकारें अपने मंत्रियों और अधिकारियों को अध्ययन दौरे पर यहाँ भेज चुकी हैं .भारत सरकार के योजना आयोग ने इसे अन्य राज्यों में भी एक आदर्श प्रणाली के रूप में अपनाने की सलाह दी है .
सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को संभालने में शुरुआती दौर में रमन सरकार को कुछ दिक्कतें ज़रूर आयीं ,पर सूचना-प्रोद्योगिकी के आधुनिक औजारों के इस्तेमाल से इस प्रणाली को पारदर्शी बना कर तमाम दिक्कतें दूर कर ली गयीं. आज इस राज्य के सभी राशनकार्ड धारकों के नाम , उनकी राशन दुकानों के नाम, किस दुकान को किस महीने में कितना राशन सरकार ने जारी किया , किस कार्ड धारक ने कितना राशन उठाया , ऐसी तमाम सूचनाएं खाद्य विभाग की वेब-साईट पर दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी, कभी भी देख सकता है . निः शुल्क कॉल सेंटर की व्यवस्था की गयी है , जहां कोई भी कार्ड धारक राशन -वितरण को लेकर यदि कोई शिकायत हो ,तो कहीं से भी फोन पर नोट करवा सकता है. ऐसी चाक-चौबंद व्यवस्था के चलते शिकायतें लगातार कम होती चली गयी हैं और आम जनता तक राशन बड़े सलीके से पहुँच रहा है. फिर एक रूपए , दो रूपए , दस रूपए और तेरह रूपए किलो वाले उस सस्ते अनाज का तो कहना ही क्या, जिसके हर एक दाने से निकलती गरीबों के दिल की दुआएं डॉ. रमन सिंह और उनकी सरकार तक पहुँच रही हैं .
आज ' दिल्ली दरबार' की कृपा से देश में डीजल-पेट्रोल, शक्कर और तेल सहित आम जनता की घरेलू ज़िंदगी के लिए ज़रूरी हर चीज की कीमत आसमान छू रही है. ऐसे कठिन दौर में छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह ने अपनी सरकार के कुशल-प्रबंधन से जन-सामान्य के लिए सस्ते अनाज का तगड़ा बंदोबस्त कर, सचमुच उसे महंगाई के चक्रवात में संभलने का एक बहुत बड़ा सहारा दिया है .
-स्वराज्य करुण
सार्थक पहल !
ReplyDeleteaadarniya sir, aapki baat mujhe sahi lagti hai par mujhe lagta hai ki aur bhi behtar prayaas kiye jaa sakte hain. yadi apse aalochna ki anumati mili ho, to kahna chahunga ki gareebon ki duayen milna is baat ka prateek hai ki LOG GAREEB HAIN. GAREEBON ki duayen haasil karne se bhi jyada jaruri kaam hai, unko AMEER banana. Mai to chahunga ki mere rajya me koi gareeb kisi ko duaaen dene wala na mile, mere rajya ka har vyakti samriddh ho, WO DAAN DE SAKE, LENE KI USE NAUBAT NA AAYE, shayad ye hamare liye garv ka awsar hoga. vaise bhi , sir, kahawat hai, roj talaab se macchli pakad k kisi ko khilane se jyada achchha hai ki hum us aadmi ko machchhli pakadna sikha den, wo khud bhi khayega aur hamen bhi khilayega. Financial education shayad jyada jaruri hai apni LIABILITY ko ASSETS me badalne k liye. PUNAH KAHIN PADHA THA MAINE- BHARAT EK VICHITRA DESH HAI.YAHAN LOG AMEER KI JAGAH GREEB HONA JYADA PASAND KARTE HAIN (BPL ME NAAM LIKHANE HAR KOI UTSUK RAHTA HAI),FORWARD KI JAGAH BACKWARD HONA JYADA PASAND KARTE HAIN( HAR KOI CHAHTA HAI KI HUM PICHHDE VARG ME AA JAYEN) AUR AADMIYON SE JYADA JAHAN PASHUON KI CHINTA HOTI HAI.(PASHUDHAN KI RAKSHA ADHIK AWASHYAK HAI). IS MINDSET K SAATH KYA HUM USA TO CHHODIYE, CHINA KO BHI MAT DE PAAYENGE, MERE MAN ME YAH PRASHN UTPANN HOTA HAI? margdarshan ki apeksha me, saadar BALMUKUND
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