पति- ''अजी सुनते हो ! अपने पड़ोस की दुकान में अण्डे और सी एफ एल बल्ब नहीं मिल रहे हैं !'' पत्नी ---''पिछले हफ्ते ही तो मुन्नू को भेज कर मंगवाए थे .आज क्या हो गया ?''
पति - ''होगा क्या ? देश की गाड़ी हांक रहे महान अर्थ शास्त्रियों की कृपा से और इटली वाली माताजी के आशीर्वाद से हमारे शहर जयपुर में भी एक फ्रांसीसी सेठ जी पेरिस से आकर रिटेल स्टोर खोलकर अपनी दुकान में बेचने के लिए शहर के सारे पोल्ट्री फार्मों के अण्डे थोक भाव से खरीदे जा रहे हैं . बल्ब वालों से भी थोक भाव में सारे के सारे सी.एफ. एल. बल्ब उन्होंने खरीद लिए हैं .शहर की किसी भी स्वदेशी दुकान में ये दोनों चीजें नहीं मिल रही हैं ''.
पति महोदय कहते जा रहे थे - ''छोटे दुकानदारों के होश उड़ गए हैं .उनमें चर्चा है कि यह सब भारत में ५१ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आने के पहले का नज़ारा है. अब तो एक बार फिर दूर देश के फिरंगी हमारे यहाँ आकर हमारे ही देश की साग-भाजी ,मिर्च-मसाला ,हमारे ही देश के दूध-फल और कपडे भी हम ही को बेचा करेंगे ! तब हमारे पड़ोस के किराना दुकानदार क्या करेंगे ?'' पत्नी को कुछ भी जवाब नहीं सूझा .कमरे में एक गहरी खामोशी छा गयी .
- स्वराज्य करुण
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी ब्लॉग की कोई पोस्ट चर्चा मे ली गई होती है तो ब्लॉगव्यवस्थापक का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह उसकी सूचना सम्बन्धित ब्लॉग के स्वामी को दे दें!
ReplyDeleteअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
आपने सच को अभिव्यक्त किया...
ReplyDeleteआरम्भ से ही हमें अपना ‘स्व’ बेचने की आदत रही है....
जिसका खामियाजा भूत में भुगत चुके हैं और भविष्य की धरातल तैयार कर रहे है....
विचारोत्प्रेरक कथा....
सादर
एक कडवा सत्य्।
ReplyDeleteहां अब जमाखोरी केवल ढपोरशंख ही नहीं किया करेंगे..
ReplyDeleteसत्य वचन ॥बढ़िया पोस्ट इस विषय से संबन्धित एक पोस्ट मैंने भी लिखी है जिसका शीर्षक है "लुप्त होता अस्तित्व" समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है ..शायद आपके और हमारे विचार मिल जायें ....
ReplyDeleteपाता नहीं हमारी सरकार क्या चाहती है ...
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