प्रत्येक पैक्ड वस्तु पर विक्रय मूल्य के साथ उसका लागत मूल्य छापना भी अनिवार्य कर दिया जाए,फिर देखें , उत्पादन लागत और विक्रय मूल्य के बीच कितनी गहरी खाई है .फैक्टरी में जिस सामान के बनने में दस रूपए की लागत आती है, बाज़ार में पहुँचते-पहुँचते उसकी कीमत कैसे कई गुना ज्यादा हो जाती है . विक्रय मूल्य तो कुछ भी प्रिंट कर दिया जाता है ,जबकि लागत मूल्य रहस्य के ...आवरण में जान-बूझकर छुपाया जाता है .महंगाई और मुनाफे का असली रहस्य लागत मूल्य में छुपा हुआ है .जीवन रक्षक दवाइयों की कीमतें आसमान छू रही हैं , जबकि उत्पादक के अलावा कोई नहीं जानता कि उन्हें बनाने में कितनी लागत आयी है ? लागत मूल्य को गोपनीय रखकर करोड़ों ग्राहकों को धोखा दिया जा रहा है . हमें मांग करनी चाहिए कि पारदर्शिता के इस युग में वस्तुओं के विक्रय मूल्य के साथ लागत मूल्य प्रिंट करने का क़ानून बनाया जाए ,इसके अंतर्गत वस्तुओं पर कीमत के साथ लागत राशि का उल्लेख नहीं करने वाले उत्पादकों को दण्डित करने का प्रावधान किया जाए. इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे ? स्वराज्य करुण
आपकी बात में दम है ! सहमत !
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बालदिवस की शुभकामनाएँ!
बिल्कुल सही कहा है आपने ।
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत हूँ
ReplyDeleteham aapke sath hain.
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