Tuesday, August 9, 2022

(आलेख) वह ऐतिहासिक तस्वीर जो 'बहुरूपियों' को बारम्बार देती है चुनौती !

  (आलेख :  स्वराज करुण)

समय सबसे बड़ा इतिहासकार है। वह हमेशा गतिमान रहता है और हर तरह की घटनाओं को इतिहास के पन्नों में दर्ज करता रहता है। आज  9 अगस्त का दिन भी हमारे देश के इतिहास में दो यादगार घटनाओं के रूप में अमिट अक्षरों में दर्ज है। इन  दो बड़ी घटनाओं  से ही हमाराभारत की आज़ादी के लिए हमारे पूर्वजों का   महान संघर्ष एक निर्णायक दौर में पहुँचा । भारत छोड़ो आंदोलन  की 80 वीं और काकोरी विद्रोह की 97 वीं वर्षगाँठ के इस मौके पर आइए , हम अपने महान योद्धाओं के  इन दोनों देशभक्तिपूर्ण प्रसंगों को दिल की गहराइयों से याद करें।

      राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अगस्त को मुम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में लाखों लोगों की एक विशाल सभा को जब अपने अधनंगे बदन से सम्बोधित करते हुए अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ 'भारत छोड़ो आंदोलन' का मंत्र फूँका तो न सिर्फ़ मुम्बई ,बल्कि सम्पूर्ण भारत की जनता में राष्ट्रीय चेतना की लहर दौड़ गई। यह अवसर था अखिल भारतीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन का। गांधी जी के आव्हान पर दूसरे दिन 9 अगस्त से देश भर में अहिंसक सत्याग्रह और धरना प्रदर्शनों का सिलसिला चल पड़ा ,इसके साथ ही आज़ादी के दीवानों की गिरफ्तारियों का दौर भी शुरू हो गया। लेकिन 5 साल बाद अंततः 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ। 


                                                        


                                             एक सच्चे लोक -नेता की सादगीपूर्ण तस्वीर 

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     गांधीजी की यह तस्वीर आज के उन बहुरूपिया नेताओं को आइना दिखाती है ,जो जन सेवा के नाम पर सिर्फ़ और सिर्फ़ रुपिया कमाने को ही अपना लक्ष्य मानकर चलते हैं और तरह -तरह के रंग -बिरंगे कीमती परिधानों में , तरह -तरह का रूप धारण कर  अपने चारों ओर पहरेदारों  की कड़ी और सशस्त्र सुरक्षा लगाकर जनता के बीच आते - जाते हैं और लच्छेदार भाषण देते हैं। लेकिन बिना किसी तामझाम के , महात्मा गांधी की यह 80 साल पुरानी तस्वीर भारत के  एक सबसे सहज सरल जन -नेता की छवि उभारती है । उनकी यह सहज -सरल तस्वीर एक सच्चे लोक -नेता का प्रतिबिम्ब है । यह ऐतिहासिक तस्वीर मौन रहकर भी आज के नेताओं को बारम्बार चुनौती देती है कि वे भी जनता के बीच इसी तरह सादगी से जाकर दिखाएं और स्वयं को लोगों का सच्चा मित्र और हितैषी साबित करें। वर्ष 1947 में 15 अगस्त को जब देश आज़ादी की नई सुबह देख रहा था ,तब उस दिन महात्मा गांधी अपने इसी दुबले पतले अधनंगे बदन के साथ बंगाल के नोवाखाली की सड़कों पर दंगाइयों की हिंसक भीड़ में खड़े होकर शांति और अहिंसा का पैगाम दे रहे थे। यह आज के उन नेताओं के लिए एक नसीहत है ,जो दंगे रुकवाने के लिए नहीं ,बल्कि दंगे भड़काने के लिए जाने जाते हैं। 

                            देश भर में 60 हजार गिरफ़्तार ,940 शहीद 

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    भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होते ही  गाँधीजी और सरोजिनी नायडू को यरवदा (पुणे) के आगा खां पैलेस में और डॉ .राजेन्द्र प्रसाद को पटना के बांकीपुर जेल में नज़रबंद कर दिया गया । लालबहादुर शास्त्री को 19 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार किया गया । लगभग एक साल तक चले इस ऐतिहासिक आंदोलन में शासकीय अभिलेखों के अनुसार 940 लोग शहीद ,1630 घायल हुए ।अंग्रेज सरकार के डीआरआई कानून के तहत देश भर में 18 हज़ार  स्वतंत्रता सेनानियों को नज़रबंद किया गया और 60 हज़ार सेनानी गिरफ्तार किए गए ।

                                      काकोरी सशस्त्र विद्रोह 

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      भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास हमें यह भी याद दिलाता है कि 9 अगस्त  को अंग्रेजी शासन के विरुद्ध  महान क्रांतिकारी शहीद रामप्रसाद विस्मिल के नेतृत्व में हुए काकोरी सशस्त्र विद्रोह  का भी स्मृति दिवस है । हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संघ के  क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को  लखनऊ जिले के काकोरी रेल्वे स्टेशन से छूटी सहारनपुर -लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को जंजीर खींचकर रोका और उसमें रखा हुआ ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लिया । रामप्रसाद बिस्मिल की अगुआई में  अशफाकउल्ला खान और चन्द्रशेखर आज़ाद सहित कई  क्रांतिकारियों ने इस घटना को अंजाम दिया था । 

                                क्रांतिकारियों पर मुकदमा 

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     घटना के बाद अंग्रेज सरकार ने हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संघ के 40 सदस्यों पर सम्राट के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने (राजद्रोह ) ,सरकारी ख़ज़ाने को लूटने और यात्रियों की हत्या  जैसे गंभीर आरोप लगाकर देश भर से उन्हें गिरफ़्तार कर लिया ।  उन पर  मुकदमा चलाया  गया।  बिस्मिल और उनके 8 साथी शाहजहांपुर से , शचीन्द्रनाथ सान्याल और राजेंद्र लाहिड़ी  सहित 5 सेनानी बंगाल से और अशफाक उल्ला खान दिल्ली से गिरफ़्तार हुए ।

                          फाँसी और कालेपानी की सजा 

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      वैसे शचीन्द्रनाथ और राजेंद्र लाहिड़ी दक्षिणेश्वर बमविस्फोट मामले में पहले से ही गिरफ्तार चल रहे थे । उन पर काकोरी षडयंत्र केस का भी आरोप दर्ज हुआ । मन्मथनाथ गुप्त और उनके 5 साथियों को बनारस में पकड़ा गया । मुकदमा चला और रामप्रसाद बिस्मिल ,अशफाकउल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को  फाँसी की सजा हुई और कम से कम 16 क्रांतिकारियों को चार वर्ष से लेकर आजीवन कैद (कालेपानी ) की सजा दी गयी । 

                          मेरा रंग दे बसंती चोला 

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    काकोरी सशस्त्र विद्रोह  में मुख्य रूप से 10 क्रांतिकारी शामिल थे । इनमें से चन्द्रशेखर आज़ाद सहित 5 को फ़रार घोषित किया  गया । काकोरी प्रकरण  में गिरफ़्तार रामप्रसाद बिस्मिल ने लखनऊ  जेल में रहते हुए प्रसिद्ध गीत  'मेरा रंग दे बसंती चोला ' की रचना की । दरअसल उनके मुकदमें  के दिन वसन्त पंचमी थी । गिरफ़्तार क्रांतिकारियों ने तय किया कि वे पीली टोपी पहनकर और हाथ में  पीला रूमाल लेकर गीत गाते हुए कोर्ट जाएंगे । उन्होंने बिस्मिल जी से इसके लिए गीत लिखने का अनुरोध किया । उनके लिखे गीत में बाद में क्रांतिकारी भगतसिंह ने कुछ पंक्तियाँ जोड़ी । उन दिनों भगतसिंह लाहौर जेल में बन्द थे ।

                          सरफ़रोशी की तमन्ना 

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उन्हीं दिनों इन क्रांतिकारियों के बीच पटना (अज़ीमाबाद) के प्रसिद्ध शायर विस्मिल अज़ीमाबादी की रचना बहुत पसंद की जाती थी --

 " सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है दे

  देखना है जोर कितना बाजुए क़ातिल में है ।"

  जेल में बंद रामप्रसाद बिस्मिल सहित उनके अन्य क्रांतिकारी साथी भी इसे  गाया  और गुनगुनाया करते थे । यह रचना उनके दिलों में आज़ादी की लड़ाई के लिए और भी ज़्यादा जोश भरा करती थी।

  आलेख      -- स्वराज करुण

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