(आलेख : स्वराज करुण)
रक्षाबंधन के दिन सड़क हादसे में घायल होने और दो दिन बाद , स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले इस भौतिक संसार को छोड़ जाने वाले छत्तीसगढ़ के पिथौरा निवासी साहित्यकार ,हम सबके प्रिय भाई शिवानन्द मोहंती की आकस्मिक मौत हमारे लिए कई गंभीर सवाल छोड़ गई है ।आज देश की आज़ादी की 75 वीं सालगिरह के मौके पर सजग , संवेदनशील और देशभक्त नागरिक होने के नाते हम सबको इन सवालों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ,क्योंकि ईश्वर न करे ,लेकिन ज़िन्दगी के सफ़र में किसी भी मोड़ पर ऐसे हादसे हममें से किसी के भी साथ ,किसी भी समय हो सकते हैं। इसलिए हमें शिवानन्द के शोक संतप्त परिवार के दर्द को अपना दर्द समझकर इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करनी चाहिए।
पहला तो यह कि आज़ादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश के सरकारी अस्पतालों में आपातकालीन चिकित्सा सेवाएँ इतनी चाक चौबंद क्यों नहीं हो पाई हैं कि गंभीर रूप से घायल मरीजों को वहीं भर्ती करके उनका इलाज तत्काल शुरू किया जा सके? क्यों उन सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर लगे हुए एम्बूलेंस उपलब्ध नहीं रहते ,ताकि अगर किसी गंभीर मरीज को किसी बड़े अस्पताल के लिए 'रेफर' किया जा रहा हो तो रास्ते मे उसे साँस लेने में दिक्कत न हो ? त्यौहारों के दिन भी उन अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों की अलग -अलग पालियों में आपातकालीन ड्यूटी का प्रावधान तो है ,लेकिन क्यों वो लोग समय पर उपलब्ध नहीं रहते और छोटे कस्बों ,छोटे शहरों में तो उन्हें किसी मेडिकल इमरजेंसी के दौरान घरों से बुलवाना पड़ता है ? क्यों उन अस्पतालों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं रहती कि अत्यधिक खून बह रहा हो तो उसे तत्काल रोका जा सके ?
भाई शिवानन्द को सरकारी अस्पताल से जिस स्थानीय प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया , वहाँ उनका रक्तस्त्राव तो किसी तरह बंद कर दिया गया ,लेकिन उनके पास भी वेंटिलेटर युक्त एम्बूलेंस नहीं था ,तो उस निजी अस्पताल वालों ने सौ किलोमीटर दूर रायपुर शहर के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल को फोन करके एम्बूलेंस बुलवाया । आने जाने में करीब चार घंटे लग गए। तब तक मरीज बेहोशी की हालत में एक एक साँस के तड़पते हुए मौत से संघर्ष करता रहा। किसी तरह रात लगभग 7.30 बजे उस बड़े अस्पताल में पहुँचने पर सीटी स्कैन हुआ ,जिसकी रिपोर्ट दिखाकर एक डॉक्टर ने कहा कि मरीज के बचने की संभावना सिर्फ़ एक प्रतिशत है। वह ब्रेन डेड हो चुके हैं।।लेकिन उन्हें भर्ती करने के अगले दिन एक सर्जन ने यह कहते हुए कि उनके मस्तिष्क का ऑपरेशन कर दिया कि हालत करीब पाँच प्रतिशत ठीक लग रही है । ऑपरेशन के बाद उन्हें आइसीयू में रखा गया ,जिसका एक दिन का किराया 30 हजार से 35 हजार बताया गया। दवाइयों का खर्च अलग ,जिसे मरीज के परिजनों को ही वहन करना पड़ा । तो फिर ये 30 --35 हजार रुपए की प्रतिदिन की बिलिंग किसलिए ? मरीजों के परिजनों से जो दवाइयां उसी अस्पताल के परिसर में संचालित मेडिकल स्टोर से ख़रीदवाई जाती है , उन दवाइयों को आईसीयू में ले जाने के बाद उनका क्या उपयोग होता है ,इसे परिजन नहीं जान पाते। साहित्यकार शिवानन्द के इलाज के मामले में उस प्राइवेट अस्पताल के रवैये को देखकर मैं सोचने लगा कि पता नहीं कब ,कहाँ, किसने और क्यों डॉक्टरों को 'धरती का भगवान' कह दिया ?
दिवंगत साहित्यकार शिवानन्द मोहंती
भारत सरकार और राज्य सरकार ने देश के प्रत्येक नागरिक को पाँच लाख रुपए तक निःशुल्क इलाज की सुविधा देने के लिए आयुष्मान योजना और मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता आरोग्य की शुरुआत की है ,जिनमें नागरिकों को हेल्थ कार्ड जारी किए जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवता की दृष्टि से यह एक सराहनीय जनकल्याणकारी व्यवस्था है। दोनों योजनाओं में आम जनता के लिए निजी अस्पतालों को अधिकतम पाँच लाख रुपए के चिकित्सा खर्च की गारंटी केन्द्र और राज्य सरकारें दे रही हैं। लेकिन कई प्राइवेट अस्पताल इन सरकारी योजनाओं के कार्ड स्वीकार ही नहीं करते । यानी वो सरकार द्वारा दी जा रही गारंटी को ही खारिज़ कर रहे हैं। जब उन्हें चिकित्सा व्यय भुगतान की गारंटी सरकार दे रही है ,तब इलाज करने में इतना हीलाहवाला क्यों ?
शिवानन्द जिस प्राइवेट अस्पताल में भर्ती थे ,उनके परिजनों ने वहाँ के प्रबंधन से बारम्बार निवेदन किया कि इलाज का खर्च इस हेल्थ कार्ड से ले लिया जाए ,लेकिन इनकार कर दिया गया। प्रबंधन का कहना था कि इन योजनाओं में सरकार ने इलाज के लिए जो पैकेज तय किया है ,वह हमारे अस्पताल की निर्धारित राशियों से मेल नही खाता। लगातार दो दिनों की ज़द्दोज़हद का अंततः कोई परिणाम नहीं निकला । सिर्फ इतना हुआ कि उस प्राइवेट अस्पताल के निदेशक से कुछ रियायत देने का आग्रह करने पर उन्होंने अपनी ओर से जितनी राशि की छूट दी ,वह उनकी कुल बिलिंग को देखें तो ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर थी। एक सामान्य मध्यम और निम्नमध्यवर्गीय परिवार के लिए उस प्राइवेट अस्पताल की भारी भरकम बिलिंग एक असहनीय आर्थिक उत्पीड़न झेलने के अलावा और कुछ भी नहीं ।नाम मात्र की यह छूट भी सरकारी हेल्थ कार्ड के आधार पर नहीं थी। सवाल यह उठता है कि नागरिकों को सरकारों की ओर से प्रदत्त हेल्थ कार्ड का क्या कोई महत्व नहीं है ?
आप कह सकते हैं कि मरीज़ की मौत के बाद इन सब सवालों का कोई मतलब नहीं रह जाता। लेकिन मुझे लगता है कि जब तक हमारे देश की चिकित्सा व्यवस्था में सुधार नहीं होगा , ये सवाल हमेशा हमारा और आपका पीछा करते रहेंगे ,ये सवाल हमेशा उठते रहेंगे ,उठाये जाते रहेंगे ताकि फिर किसी शिवानन्द या उनके परिवार के लिए ऐसी दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने की नौबत न आए। साहित्यकार शिवानन्द मोहंती की मौत दिनोदिन संवेदनहीन होती जा रही हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की निर्ममता का जीता जागता उदाहरण है।
- स्वराज करुण
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