Tuesday, September 28, 2021

व्यंग्य - धनुष के बेजोड़ तीरंदाज लतीफ़ घोंघी


       (आलेख : स्वराज करुण )
जिनके व्यंग्य धनुष के नुकीले तीरों ने देश और दुनिया की तमाम तरह की सामाजिक ,आर्थिक विसंगतियों को अपना निशाना बनाया , जिनके व्यंग्य बाण  समय -समय पर  मीठी छुरी की तरह चलकर , हँसी -हँसी में ही लगभग 50 वर्षों तक  भारत के भयानक टाइप भाग्य विधाताओं को घायल करते रहे , हिन्दी व्यंग्य साहित्य के ऐसे बेजोड़  तीरंदाज स्वर्गीय लतीफ़ घोंघी का  आज जन्म दिन है। उन्हें विनम्र नमन । 
     व्यंग्य लेखन की उनकी अपनी एक विशेष शैली थी । वह व्यंग्य के तीर हास्य की चाशनी में डुबोकर चलाया करते थे।  हमारे आस -पास  होने वाली   दिन -प्रतिदिन की घटनाएं और देश -दुनिया के खलनायक जैसे लोग उनके व्यंग्य बाणों की जद में रहा करते थे। 
  लतीफ़ साहब  आधुनिक हिन्दी साहित्य की व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर थे । उन्होंने  महासमुन्द जैसे छोटे कस्बाई शहर में रहकर अपनी सुदीर्घ   साहित्य साधना के जरिए देश -विदेश के हिन्दी संसार में छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया ।  लतीफ़ साहब ने  हिन्दी साहित्य के अनमोल ख़ज़ाने को अपनी एक  बढ़कर एक व्यंग्य रचनाओं के मूल्यवान रत्नों  से समृद्ध बनाया। आज उनका जन्म दिन है।  उन्हें विनम्र नमन ।
                     
    महासमुन्द उनका गृह नगर था।  इसी नगर के पास ग्राम बेलसोंडा में 28 सितम्बर 1935 को उनका जन्म हुआ था। निधन 24 मई 2005 को महासमुन्द में हुआ।   लगभग आधी शताब्दी के  उनके लेखकीय जीवन में विभिन्न  पत्र -पत्रिकाओं में बड़ी संख्या में उनकी रचनाएं नियमित रूप से छपती रहीं।  । देश के अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों से उनके 35 से अधिक व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुए। इनमें - तिकोने चेहरे (वर्ष 1964),  उड़ते उल्लू के पंख (1968), मृतक से क्षमा याचना सहित (वर्ष 1974), बीमार न होने का दुःख (वर्ष 1977), संकटलाल ज़िंदाबाद (वर्ष 1978),  बुद्धिमानों से बचिए (वर्ष 1988) और मंत्री हो जाने का सपना (वर्ष 1994) भी उल्लेखनीय हैं।  
   मुस्कुराहटों के साथ तिलमिलाहटें उनकी व्यंग्य रचनाओं की विशेषता थी ,जो  किसी भी बेहतरीन व्यंग्य रचना की सफलता के लिए अनिवार्य है । जिसे पढ़कर पाठकों को हँसी तो आए लेकिन व्यवस्था जनित विसंगतियों पर गुस्सा भी आए और  तरह -तरह की विवशताओं में कैद ,परेशान ,हलाकान इंसानों का चित्रण देखकर मन करुणा से भर उठे। वही असली व्यंग्य है। इस मायने में लतीफ़ घोंघी राष्ट्रीय स्तर के  एक कामयाब और शानदार व्यंग्यकार थे।
    वह पेशे से वकील थे ,लेकिन जीवन के पूर्वार्ध में उन्होंने आजीविका के लिए कई काम सीखे ,कई व्यवसाय किए । दर्जी का काम भी किया। सरकारी प्राथमिक स्कूल में अध्यापक की नौकरी की। बाद के वर्षों में वकालत की पढ़ाई करने के बाद अधिवक्ता के रूप में महासमुन्द कोर्ट में प्रेक्टिस करने लगे। साहित्य के अलावा संगीत में भी उनकी गहरी दिलचस्पी थी। गायन ,वादन के शौकीन थे। व्यंग्य लेखक के रूप में उनकी एक बड़ी ख़ासियत यह थी कि वह अपनी किसी भी व्यंग्य रचना की कोई भी कॉपी पहले किसी कागज या रजिस्टर या डायरी में अलग से लिखकर नहीं रखते थे।  उसे  एक ही बार में ,एक ही स्ट्रोक में अपने छोटे-से पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप कर लेते थे और छपने के लिए भेज देते थे।
   देश के विभिन्न  विश्वविद्यालयों में  उनके व्यंग्य साहित्य पर कई  शोधार्थियों को पी-एच.डी. की उपाधि मिल  चुकी है। छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी ने भी उनके चयनित व्यंग्य लेखों का संकलन प्रकाशित किया है।   आलेख -स्वराज करुण

1 comment:

  1. घोंघीजी के बारे में इतनी जानकारियॉं पहली बार, यहीं मिलीं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

    ReplyDelete