Monday, September 9, 2019

(आलेख) छत्तीसगढ़ी संस्कृति का प्रतिनिधि : मचेवा का ' नाचा '

                                 - स्वराज करुण 
   एक वो भी ज़माना था ,जब हमारे देश के  हर प्रदेश की लोक संस्कृतियों  की  रंग -बिरंगी  दुनिया अपने गाँव या कस्बे की स्थानीय सरहदों तक सीमित रहा करती थी ,लेकिन नये ज़माने  की नयी संचार तकनीक ने उसे 'लोकल ' से 'ग्लोबल' बना दिया है । फ़ोटोग्राफ़ी ,वीडियोग्राफ़ी ,  सिनेमा , रेडियो , टेलीविजन,  इंटरनेट ,  मोबाइल फोन जैसे जनसंचार के अत्याधुनिक संसाधनों  से हमारी आँचलिक  प्रतिभाओं को विश्व रंगमंच पर पहचान और प्रतिष्ठा मिलने लगी है।
      छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को भी नये दौर के इन नये संचार संसाधनों का भरपूर लाभ मिल रहा है । इंटरनेट आधारित यूट्यूब में तो यहाँ के लोक रंगमंचों की रंगारंग नाट्य प्रस्तुतियों की भरमार है । यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में  अलग -अलग नामों से कई नाट्य अथवा नाचा मण्डलियां  ख़ूब सक्रिय हैं ,जो विभिन्न सामाजिक विषयों पर छत्तीसगढ़ी भाषा में तरह -तरह के गम्मतों  (प्रहसनों ) का मंचन करती हैं ।
                   
         लगभग  चार दशक पहले  छत्तीसगढ़ में अत्याधुनिक संचार माध्यमों का आज की तरह विस्तार नहीं हुआ था ,  लेकिन उस दौर में भी यहाँ मचेवा का  नाचा काफी लोकप्रिय था ,जिस पर मेरा एक आलेख रायपुर के तत्कालीन दैनिक 'युगधर्म' के 10 नवम्बर 1977 के दीपावली पूर्ति अंक में प्रकाशित हुआ था । इस नाट्य मण्डली की मंचीय प्रस्तुतियों का कोई फोटो दुर्भाग्यवश मेरे पास नहीं है।  उस वक्त भी नहीं था । लिहाजा सम्पादक महोदय ने बगैर फोटो के ही  उदारतापूर्वक मेरा यह आलेख प्रमुखता से  प्रकाशित कर दिया । शीर्षक भी यथावत है । सौभाग्य से इसकी क्लिपिंग मेरे पास अब तक सुरक्षित है ।हालांकि  समय के प्रवाह में कागज़ कुछ पीले और अक्षर कुछ धुंधले ज़रूर  पड़ गए हैं ,फिर भी इसे यथासंभव जस का तस उतारने की कोशिश मैंने की है ।
      सिर्फ़ आलेख की सजावट के लिए एक प्रतीकात्मक फोटो   इंटरनेट से  साभार लिया है ,जो ग्राम कचांदुर ,(जिला -बालोद ) की  'तुलसी के माला '  नामक छत्तीसगढ़ी नाचा मण्डली की मंचीय प्रस्तुति का है। बहरहाल ,आप मचेवा के नाचा के बारे में यह आलेख पढ़ें ।
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          छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठ भूमि मुख्यतः यहाँ का ग्रामीण जनजीवन ही है ।यहाँ की ग्रामीण संस्कृति में लोकनाटकों का प्रारंभ से ही बड़ा महत्व रहा है । छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक सौम्यता के दर्शन यहाँ के देहातों की नाट्य मण्डलियों के सीधे -सादे ,आडम्बरहीन परन्तु रोचक कार्यक्रमों में होते हैं ।ये नाट्य मण्डलियां लोक -जीवन पर आधारित नाटकों के साथ लोक -नृत्यों का  प्रदर्शन भी करती हैं ।लोक नृत्य ,जिसे आँचलिक बोली में 'नाचा कहा जाता है, नाट्य मण्डलियों के प्रदर्शन का प्रमुख अंग है ।अतः ग्रामीण अँचलों में ये नाट्य -मण्डलियां 'नाचा पार्टी ' के नाम से ही जानी जाती हैं ।
इन नाट्य या नाचा मण्डलियों में से एक है -मचेवा की नाचा मण्डली ।मचेवा महासमुन्द के समीप एक छोटा सा गाँव है ।आज से लगभग पन्द्रह -सोलह वर्ष पूर्व इसी गाँव के एक युवक श्री रामसिंह ठाकुर ने इस नाट्य -मण्डली की नींव डाली थी ।तब से लेकर आज तक छत्तीसगढ़ के छोटे -बड़े सभी गांवों और कस्बों में यह मण्डली अपने कार्यक्रमों का प्रदर्शन करती आ रही है ।
  तीन वर्ष पूर्व सन 1974 में इस्पात नगरी भिलाई के सिविक सेंटर में मचेवा नाचा पार्टी ने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण कला और संस्कृति का गौरवशाली ,प्रशंसनीय प्रदर्शन किया था ।साथ ही पिछले वर्ष इस मण्डली के प्रमुख अभिनेता ,नाटककार तथा निर्देशक श्री सूरज 'राही ' ने इस्पात नगरी भिलाई में ही आयोजित " छत्तीसगढ़ी लोक कला सम्मेलन ' में अपनी मण्डली का प्रतिनिधित्व किया था । मचेवा नाचा पार्टी (नाट्य मण्डली )  ने न केवल छत्तीसगढ़ , वरन इस अंचल की सीमाओं को लाँघ कर पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के गोंदिया शहर व उसके आस -पास के गाँवों में भी छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति के प्रतीक नाटकों और लोक नृत्यों का प्रदर्शन किया है और ख्याति अर्जित की है । इस मण्डली द्वारा सामाजिक तथा राष्ट्रीय समस्याओं पर आधारित , लोक शैली में आबद्ध अनेक नाटकों का लोक भाषा में प्रभावशाली मंचन किया जाता है ।इनमें एक  प्रमुख नाटक है 'छोटे - बड़े मण्डल' । समाज में व्याप्त आर्थिक विषमताओं तथा वर्ग -भेद की समस्याओं पर आधारित इस लोक नाटक में ग्रामीण प्रेमी युगल द्वारा शहर में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर 'कोर्ट मैरिज'  जैसी  आधुनिक प्रक्रिया के द्वारा परिणय सूत्र में बंधने की घटना का जीवंत चित्रण हुआ है ।प्रेमी युगल का परिणय समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने तथा अमीरी और ग़रीबी की खाई को पाटने के उद्देश्यों को लेकर सम्पन्न होता है । यद्यपि 'कोर्ट मैरिज " जैसी आधुनिक घटना (जो मुख्यतः शहरी संस्कृति का प्रतीक है ),का ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक में समावेश हुआ है ,परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि छत्तीसगढ़ के लोक नाटक अपने ग्रामीण परिवेश का त्याग कर रहे हैं ।'छोटे - बड़े  मण्डल ' में वस्तुतः ग्रामीण युवा वर्ग पर शहरी मानसिकता के प्रभाव का चित्रण हुआ है ,जिसे नकारा नहीं जा सकता ।
       इसी प्रकार इस नाट्य मण्डली के 'किसान ' नामक नाटक में जहाँ एक किसान की असहाय विधवा के व्यथा भरे जीवन का मर्मस्पर्शी चित्रण है ,वहीं 'दही वाली ' नामक नाटक में एक पतिव्रता नारी द्वारा अपने पथभ्रष्ट पति को सही रास्ते पर लाने हेतु किए गये सफल प्रयासों को रोचक अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है ।
इन तीनों नाटकों को मचेवा नाचा मण्डली के ही युवा अभिनेता श्री सूरज 'राही" ने लिखा है और इनका निर्देशन भी किया है। उल्लेखनीय है कि श्री सूरज "राही' छत्तीसगढ़ी के कुशल नाटककार होने के अलावा उर्दू के उभरते हुए शायर भी हैं ।मचेवा नाचा मण्डली की एक विशेषता यह है कि इसके सभी कलाकार छत्तीसगढ़ के विभिन्न गाँवों के निवासी हैं । किसी स्थान से कार्यक्रम हेतु आमंत्रण मिलने पर सभी कलाकारों को मण्डली के प्रमुख श्री रामसिंह ठाकुर मचेवा से सूचना भिजवा देते हैं तथा सूचना मिलने पर सभी कलाकार मचेवा (जो मण्डली का प्रमुख केन्द्र है )में एक होकर कार्यक्रम स्थल हेतु रवाना होते हैं ।
    " जब आपके कलाकार बाकी दिनों में अपने -अपने गाँवों में अपने व्यवसायों से सम्बद्ध होते हैं ,तब अचानक किसी कार्यक्रम की  सूचना मिलने पर क्या उन्हें रिहर्सल हेतु  पर्याप्त समय मिल पाता है ? मेरी इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए श्री सूरज 'राही' कहते हैं -बिखराव का हमारे नाटकों के मंचन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । परन्तु ऐसी बात भी नहीं है कि हमें रिहर्सल नहीं करना पड़ता ।जब हमारी पार्टी कार्यक्रमों के प्रदर्शन हेतु दौरे पर निकलती है ,तब बीच में दो -तीन दिनों का अंतराल मिलने पर हम ख़ूब  रिहर्सल करते हैं ।नये नाटकों का रिहर्सल भी इसी दौरान हो जाता है । स्त्री की भूमिका भी पुरुष पात्र ही करते हैं ।
  मचेवा नाचा मण्डली के अन्य कलाकारों में ग्राम बेलसोंडा के गंगाराम , महासमुन्द के जीवनलाल , मोंगरापाली के राधेलाल , खरोरा के सर्वश्री गुलाबदास मानिकपुरी और किसुन देवांगन , सोनभट्टा के मेहरू सेन , तथा मचेवा के सर्वश्री माखन देवांगन , चैतराम यादव , डेरहा राम ठाकुर तथा रामसिंह ठाकुर हैं । खरोरा के युवा मूर्तिकार तथा चित्रकार श्री गुलाबदास मानिकपुरी मचेवा नाचा पार्टी के प्रमुख संगीतकार हैं ।ये सभी कलाकार प्रायः गाँवों के खेतिहर मजदूर वर्ग से हैं ।इस प्रकार यह नाट्य मण्डली छत्तीसगढ़ के विभिन्न गाँवों के प्रतिनिधि लोक कलाकारों का अत्यंत सादगीपूर्ण सांस्कृतिक संगम स्थल है ।यह इस अंचल के गाँवों के मध्य सौहार्द्रपूर्ण एकता का भी प्रतीक है। इन कलाकारों में प्रतिभा है ,जिसका मूल्यांकन शहरों के अत्याधुनिक चेहरों की भीड़ में न होकर छल -कपट से दूर वनाच्छादित गाँवों की प्यारी - प्यारी धरती पर भोले -भाले चेहरों द्वारा रात्रि के अंतिम प्रहर तक होता रहता है ।
    लोक नाट्य हमारी लोक संस्कृति का प्रमुख अंग है । यद्यपि आधुनिक शहरी सभ्यता के आक्रमण के प्रभाव से ये भी अब अछूते नहीं रहे ,तथापि उनमें प्रतिध्वनित होने वाली ग्रामीण संस्कृति की आँचलिक स्वर लहरी अब भी समाप्त नहीं हुई है ,कभी समाप्त भी नहीं होगी ।ग्राम्य धरातल पर अंकुरित होने वाले लोकगीत , गाँव की सामाजिक समस्याओं पर आधारित नाटक तथा सामाजिक विषमताओं पर व्यंग्यात्मक प्रहार करने वाले प्रहसन , हास्य - व्यंग्य से भरपूर गम्मत , छत्तीसगढ़ की गौरवशाली ग्रामीण कला -संस्कृति को संरक्षण देने में पूर्णतः सक्षम हैं । इस दृष्टि से यह कहना भी गलत न होगा कि लोक नाट्य तथा  'नाचा' छत्तीसगढ़ के गाँवों की मेहनतकश जनता के सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं ।
                   - स्वराज करुण

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-09-2019) को     "स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन"  (चर्चा अंक- 3454)  पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय शास्त्रीजी ! हार्दिक आभार ।

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