Wednesday, September 25, 2019

(लघु कथा ) खौफ़नाक मंज़र ...!

                                              -स्वराज करुण 
   शहर से लम्बे अरसे बाद गाँव पहुंचे रामलाल गायकवाड़ अपनी आप-बीती कुछ यूं सुना रहे थे - मुम्बई महानगर के अपने दफ्तर की एक चयन समिति का मै भी सदस्य था .
    बेरोजगारी का खौफनाक मंजर देख कर मुझे दहशत होने लगी . चपरासी के दस पदों के लिए लगभग सात सौ आवेदकों का इंटरव्यू चल रहा था. कई एम्. .ए ,बी. ए. एम्.कॉम. एम् एस-सी. इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक डिग्री, डिप्लोमा धारक भी कतार में लगे हुए थे ,लेकिन उन्होंने अपनी उच्च शैक्षणिक योग्यता को छुपाकर न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता (कक्षा पांचवीं )के आधार पर आवेदन किया था और उस आधार पर इंटरव्यू में बुला लिए गए थे . चयन समिति के हम चार सदस्य जब प्रत्येक आवेदक की बोल चाल और उनके पहनावे के आधार पर जैसे-जैसे उनकी शिक्षा के बारे में पूछताछ करते थे ,यह खुलासा होता जाता था . अधिकाँश के चेहरों पर बेबसी झलकती थी. बीच-बीच में चयन समिति के अध्यक्ष यानी मेरे वरिष्ठ सहकर्मी के पास कई प्रभावशाली लोगों के फोन भी आते रहते थे .
    ऊंची सिफारिश वालों की सूची इतनी लम्बी हो गयी कि सभी दस पोस्ट अग्रिम रूप से बुक हो गए .अब जो भी इंटरव्यू चल रहा था ,वह सिर्फ दिखावे के लिए था . हमे उन बेचारे बेरोजगारों का इंटरव्यू लेना पड़ रहा था ,जिनका चयन होना ही नहीं था. यह सिर्फ एक औपचारिकता थी . मेरे दफ्तर के कुछ कर्मचारियों के नाते-रिश्तेदार भी इंटरव्यू के लिए कतार में लगे हुए थे .दफ्तर के ऐसे कर्मचारियों को मुझसे यह उम्मीद थी कि इंटरव्यू में मै उनके किसी रिश्तेदार का भला कर दूंगा .कुछ जान-पहचान वालों ने भी ऐसा ही कुछ सोचकर मुझसे आग्रह  किया था , गाँव से भी संदेशा आया था , लेकिन अफ़सोस कि मै उनमे से किसी  की भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया .
   चयन समिति के तीन अन्य सदस्यों की भी कमोबेश यही हालत थी. जिनका चयन होना था ,हो गया ,लेकिन मैं किसी का पक्ष लेकर किसी का भला नहीं कर पाया .रामलाल ने पूछा -क्या मैंने सही किया ? मेरे पास उनके इस सवाल का कोई जवाब नहीं था .( स्वराज करुण )
                          

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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