नये साल में इस आँगन में कुछ भी नया नहीं है ,
लगता है जैसे साल पुराना अब तक गया नहीं है !
काले धन का यह काला
व्यापार जस का तस है,
धन -पशुओं के आगे आज
मानव कितना विवश है !
बंदी बन कर बेगुनाह को अंधियारे की कैद मिली
यह बेदर्द क़ानून है जिसके दिल में दया नहीं है !
पढ़-लिख बेरोजगार घूमते
इस नये भारत को देखो,
लोकतंत्र की मंडी में हर दिन
सपनों की तिजारत को देखो !
लूटकर जनता के धन को इतराते हैं जो खूब यहाँ ,
उन शैतानी आँखों में कुछ भी शर्म-ओ -हया नहीं है !
--- स्वराज्य करुण
सटीक बात कही है ...
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत हूँ ...
ReplyDeleteवाकई नए साल में कुछ भी नया नहीं है सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteसच्चाई बयां करती अच्छी प्रस्तुति..
ReplyDeleteसच्ची एवं अच्छी रचना.....
ReplyDeleteनिःसंदेह सराहनीय रचना......
क्या यही गणतंत्र है
सच्ची एवं अच्छी रचना....
ReplyDeleteक्या यही गणतंत्र है