खेत-खेत और जंगल-जंगल बरस रहा है पानी
देखो-देखो मानसून बन गया है औघड दानी !
धरती के आंगन में बिछ गयी हरियाली की चादर ,
बैठ के जिस पर प्रेम के पंछी बोलें अपनी बानी !
सोने-चांदी की चमक भी इसके आगे फीकी
बादलों से बरस रही जो प्यार की निशानी !
थाम लो अपनी अंजुरियों में,वरना पछताओगे
आज तुम्हारी बेरुखी कल होगी एक कहानी !
अमृत की ये बूँदें अनमोल तुम मोल इनका समझो ,
नहीं तो मौसम तय कर देगा कीमत मनमानी !
पढ़-लिख वाकई आज बन गए लोग बहुत ज्ञानी ,
न जाने फिर क्यों करते हैं वो ऐसी नादानी !
अम्बर से बरसते आशीषों को व्यर्थ बहा देते हैं
फिर कैसे मिल पाएगी बोलो उसकी मेहरबानी !
स्वराज्य करुण
वाब!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल पढ़ने को मिीली आज तो!
क्या बात है .....बहुत अनुकरणीय विचार हैं आपके .
ReplyDeleteSundar geet......
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